प्राचीन हूण (गुर्जर) - ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (1400 ई. पूर्व से -200 ईसा पूर्व )
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Huna / Hoon Gurjars |
शको को उनके मूल स्थान से निकाल कर उस पर अपना अधिकार जमाना हूणो का ही काम था यही नही , बल्कि मध्य ऐशिया के उतरापथ ओर दक्षिणा पथ दोनो मे जो आज सभी जगह मंगोलियन चैहरे देखे जाते है, यह भी हूणो की ही दैन हे ।
शको की तरह हूण भी घूमन्तू कबीले थै । मध्य - ऐशिया मे दोनो एक दूसरे के पडोसी थे । यू- ची के निकाले जाने से पहले शक - भूमि त्यानशान ओर अल्ताई से पूरब हूणों की गोचर भूमि से मिल जाती है । इसलिये अन्तिम सघर्ष के पहिले भी इनका कभी - कभी आपस मे युध्द , वस्तु विनिमय के लिऐ सघर्ष हो जाया करता था । चीन के इतिहास से पता लगता हे कि वहा पर भी धातुयुगीन सांस्कृतिक विकास मे पश्चिम से जाने वाली जाति का विशेष हाथ रहा हे ।
यह जाति शक - हूणो से समबन्ध रखने वाली थी , इसमे सन्देह नही । तातार ओर तुर्क यह दोनो शब्द हूणो के वंशजों के लिये इस्तेमाल हुये हे , लकिन चीनी इतिहास मे ईसा की दूसरी सदी के पूर्व तातार शब्द का पता नही लगता है , ओर पाँचवी सदी से पहिले तुर्क शब्द भी उनके लिये अज्ञात था ।
ग्रीक ओर ईरानी स्त्रोत जब सूखने लगते हे , इसी समय से चीनी स्त्रोत हमारे लिये खुल जाते हे ।
शको व हूणो के बारे मे चीनी इतिहिसकारो ने बहुत कुछ लिखा हे लेकिन अभी तक उसमे से थोडा ही यूरोप की भाषाओ मे आ सका हे । रूसी विद्वानो का इस सामग्री को प्रकाश मे लाने तथा व्यवस्थित रूप से छानबीन करने का काम बहुत सराहनीय हे ।
किन्तु वह रूसी भाषा मे लिपिबद्ध होने से हमारे लिये बहुत उपयोगी नही हुआ । नवीन चीन ओर सोवियत - रूस आज सारी शक-हूण भूमी का स्वामी है । वहा इतिहास के अनुसंधान मे जितनी दिलचस्पी दिखाई जाती है , उससे आशा हे कि उनके बारे मे पुरातत्व - सामग्री तथा लिखित सामग्री से बहुत सी बाते मालूम होगी । त्यानशान ( किरगिजिया ) मे नरीन की खुदाई मे हूणो के विशेष तरह के बाण के फल तथा मट्टी के गोल कटोरे ओर दूसरी चीजे भी मिली हे ।
इस्सि कुल सरोवर के किनारे त्यूप स्थान मे भी इस काल की कुछ चीजे मिली है । जो कि मास्को के राजकीय ऐतिहासिक म्यूजियम मे रखी हुई है ।
कजाक गणराज्य के बैरकारिन स्थान मे निकली कब्र मे भी कुछ चीजे मिली है । वही कराचोको ( ईलीपत्यका ) मे खुदाई करने पर शक - हूणो के पीतल के बाण मिले । जो मिन सुन ओर उनके उत्तराधिकारीयो से सबंध रखने वाले हे । हूणो के पीतल के हथियार पूर्वी यूरोप ( चेरतोम लिक ) से बेकाल ओर मन्चूरिया की सीमा तक है इनकी गोचर भूमि समय - समय पर बहुत दूर तक फैली हुयी थी ।
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डाक्टर बेर्नश्ताम - सप्तनद , अल्ताई ओर त्यानशान के प्राचीन इतिहास ओर पुरातत्व के बडे विद्वान --- का कहना हे कि ईसापूर्व 6 ठी शताब्दी मे इस सारे इलाके मे घूमन्तु हूण- जनो का निवास था । यह भी पता लगा हे कि हूणो ने कुछ काम खेती का भी सीखा था , तब भी वह प्रधानतया पशुपालक ही थे ।
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चीन मे भी अपने इतिहास को बहुत अधिक प्राचीन दिखलाने का आग्रह रहा हे , किन्तु चीन का यथार्थ इतिहास ईसापूर्व 6 ठी शताब्दी से शुरू होता हे । उसके पहले की सारी बाते पोराणिक जनश्रुतियो से अधिक महत्व नही रखती हे ।
चीन का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश चिन ( 255 - 206 ईसापूर्व ) है । इस वंश के सस्थापक चिन-शी-हाग्ड-ती ( 255 - 250 ईसापूर्व ) ने बहुत सी छोटी - छोटी सामन्तियो मे बटे हुयै चीन को एक राज्य मे संगठित किया । इससे पहले उतर के घूमन्तू हूण चीन को अपने लूटपाट का क्षेत्र बनाये हुये थे ।
यह अश्वारोही , मांसभक्षी कूमिशपायी - खतरनाक लडाके बराबर अपने पडोस के चीनी गावो ओर नगरो पर धावा-आक्रमण किया करते थे। उनकी संपत्ति घोडा , ढोर ओर भेड थी कभी कभी ऊंट , गदहे , खच्चर भी इनके पास देखे जाते थे ।
वर्तमान मगोलिया , मंचूरिया तथा इनके उतर के साईबेरिया के भू- भाग इनकी चरागाह भूमी थी ।
हूण कबीलो को चीनी मे
" हाण्ड-नू "
कहते थे । तुर्क , किरगिज , मगयार ( हूंगर ) आदि इनके ही उतराधिकारी हुए । हाण्ड- नू ( हूण ) के अतिरिक्त चीनी इतिहास एक ओर घूमन्तु मगोलायित जन का पता देता हे ,
जिसको " तुड- हू " कहते थे ।
इन्ही के उतराधिकारी पीछे कित्तन ( खिताई ) , मन्चू आदि हुऐ । विशाल हूणो के बहुत छोटे - छोटे उप - जन ( कबीले ) थे जिनके अपने अपने सरदार हुआ करते थे । हमारे यहा तथा दूसरे देशो मे भी " ओर्दू ( उर्दु ) शब्द सेना का पर्याय माना जाता हे । इन घुमन्तू ओ मे एक पूरे जन - जिसमे उसके सभी नर - नारी , बाल वृद्ध सम्मिलित थे - को ओर्दू कहा जाता था ।
इनका शासन जनतान्त्रिक था , सरदारों को जनके ऊपर अपना स्वतंत्र दर्जा कायम करने का अधिकार नही था । हूणो के बच्चे बचपन से ही पशुओ को चराना सीखते थे, वहा उससे भी पहिले अपनी छोटी सी धनुष - बाण से सियार ओर खरगोश का शिकार करते थे ।
नंगी पीठ पर घुडसवारी करना भी बचपन ही से इन्हे सिखाया जाता था ओर अधिक क्षमता प्राप्त करने पर वह घोडे पर बेठे - बेठे ही धनुष चलाने लगते थे । दूध व मांस का भोजन तथा चमडे की पोशाक इन्हे अपने पशुओ के ऊपर निर्भर करती थी । ऊन के नम्दे भी ये बना लेते थे । दया - माया की इनके यहा कम ही गुंजाइश थी इनके हथियार धनुष - बाण, तलवार ओर छुर्रे होते थे ।
साल मे तीन बार इनकी जन- सभा होती थी , जबकि सारा ओर्दू ( कबीला ) एकत्रित होकर धार्मिक और सामाजिक कृत्यों को पूरा करता , वहा साथ ही राजनीतिक ओर दूसरे झगडे भी मिटाता ।
बहुत से सरदारों के ऊपर निर्वाचित राजा को " शान्य" कहा जाता था ।
1400 - 200 ईसापूर्व तक चीन मे इन घूमन्तूओ की लूटपाट बराबर होती रहती थी ।
ईसापूर्व तीसरी शताब्दी मे सान-'शी , शेन- शी , ची- ही मे इनके ओर्दू विचरा करते थे । इसी समय हाण्ड - हो नदी के मुडाव पर भी इनका ओर्दू रहा करता था , जिसके कारण आज भी उस प्रदेश को " ओर्दू स" कहते हे ।
चिन - शी - हाण्ड- ती ( 255-206 ईसापूर्व ) ने चीन के बडे भू - भाग को एक राज्य मे परिणत कर सोचा , कि इन हूणो की लूटमार सै केसे चीन की रक्षा की जाये ।
इसके लिये उसने
"चीन की महान दीवार "
के कितने ही भाग को एक रक्षा प्राकार के तोर पर निर्मित करवाया ओर ओर्दू तथा तथा शान - सी आदि प्रदेशो मे से हूणो के डर से काम जल्दी - जल्दी करवाया । समुन्द्र तट से पश्चिम मे लनचाउ तक इस दिवार
को बनाने मे 5 लाख आदमी मर - मर कर वर्षो तक कोडो के नीचे काम करते रहै ।
निर्माण काल से लेकर हजार वर्षो तक हूणो ओर चीन की सेना का खूनी संघर्ष होता रहा , उसके परिणाम स्वरूप लाखो खोपडीयां दीवार के सहारे जमा होती गई ।
चीन की यह दिवार हूणो के ईसी आक्रमणो से बचने के लिये चीनी राजवंशो के दवारा बनवाई गई ।
सन्दर्भ :--
1 . A Thousand Years of Tatars : E. H . Parker, Shanghai - 1895
2. हुन्नू इ गुन्नी : क. इनस्त्रान्त्सेफ, लेनिनग्राद - 1926
3. Histoire des Huns : Desqugue - Paris : 1756
4. Excavation in Northan Mangolia - C. Trever - Leiningrad
5. The Story of Chang Kien : Journal of American Oriental Society Sept -"1917 Page - 77
6. Histoire d' Attila et de ses successures : Am. Thierry - Paris : 1856
7. History of the Hing - nu in their Relations with China - Wylie : Journal of Anthropological institute - London, volume III - 1892 -93
8. Sur I'origine des Hiung - nu :- Shiratori -- Journal Asiatigus : CC - II no. I, 1923
9. ओचेर्क इस्तोरिइ सेमिरेचय :-- वरतोल्द - 1868