शनिवार, 30 जुलाई 2016

प्राचीन हूण (गुर्जर) - ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (1400 ई. पूर्व से -200 ईसा पूर्व ) | Historical background of Ancient Huna Gurjars

प्राचीन हूण (गुर्जर) - ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (1400 ई. पूर्व से -200 ईसा पूर्व )

Huna / Hoon Gurjars

शको को उनके मूल स्थान से निकाल कर उस पर अपना अधिकार जमाना हूणो का ही काम था  यही नही  ,  बल्कि मध्य ऐशिया के उतरापथ ओर दक्षिणा पथ दोनो मे जो आज सभी जगह मंगोलियन चैहरे देखे जाते है,  यह भी हूणो की ही दैन हे ।

शको की तरह हूण भी घूमन्तू कबीले थै । मध्य -  ऐशिया मे दोनो एक दूसरे के पडोसी थे । यू- ची के निकाले जाने से पहले शक -  भूमि त्यानशान ओर अल्ताई से पूरब हूणों की गोचर भूमि से मिल जाती है । इसलिये अन्तिम सघर्ष के पहिले भी इनका कभी - कभी आपस मे युध्द ,  वस्तु विनिमय के लिऐ सघर्ष हो जाया करता था । चीन के इतिहास से पता लगता हे कि वहा पर भी धातुयुगीन सांस्कृतिक विकास मे पश्चिम से जाने वाली जाति का विशेष हाथ रहा हे ।

यह जाति शक - हूणो  से समबन्ध रखने वाली थी  , इसमे सन्देह नही  । तातार ओर तुर्क यह दोनो शब्द हूणो के वंशजों के लिये इस्तेमाल हुये हे  , लकिन चीनी इतिहास मे ईसा की दूसरी सदी के पूर्व तातार शब्द का पता नही  लगता है , ओर पाँचवी सदी से पहिले तुर्क शब्द भी उनके लिये अज्ञात था ।
ग्रीक ओर ईरानी स्त्रोत जब सूखने लगते हे  , इसी समय से चीनी स्त्रोत हमारे लिये खुल जाते हे ।

शको व हूणो  के बारे मे चीनी इतिहिसकारो ने बहुत कुछ लिखा हे लेकिन अभी तक उसमे से थोडा ही यूरोप की भाषाओ मे आ सका हे । रूसी विद्वानो का इस सामग्री को प्रकाश मे लाने तथा व्यवस्थित रूप से छानबीन करने का काम बहुत सराहनीय हे ।

किन्तु वह रूसी भाषा मे लिपिबद्ध होने से हमारे लिये बहुत उपयोगी नही हुआ । नवीन चीन ओर सोवियत -  रूस आज सारी शक-हूण भूमी का स्वामी है । वहा इतिहास के अनुसंधान मे जितनी दिलचस्पी दिखाई जाती है  , उससे आशा हे कि उनके बारे मे पुरातत्व  - सामग्री तथा लिखित सामग्री से बहुत सी बाते मालूम होगी  । त्यानशान ( किरगिजिया ) मे नरीन की खुदाई मे हूणो के विशेष तरह के बाण के फल तथा मट्टी के गोल कटोरे ओर दूसरी चीजे भी मिली हे ।

इस्सि कुल सरोवर के किनारे त्यूप स्थान मे भी इस काल की कुछ चीजे मिली है  । जो कि मास्को के राजकीय ऐतिहासिक म्यूजियम मे रखी हुई है ।

कजाक गणराज्य के बैरकारिन स्थान मे निकली कब्र मे भी कुछ चीजे मिली है । वही कराचोको ( ईलीपत्यका ) मे खुदाई करने पर शक - हूणो के पीतल के बाण मिले । जो मिन सुन ओर उनके उत्तराधिकारीयो से सबंध रखने वाले हे । हूणो के पीतल के हथियार पूर्वी यूरोप  ( चेरतोम लिक ) से बेकाल ओर मन्चूरिया की सीमा तक है इनकी गोचर भूमि समय  - समय पर बहुत दूर तक फैली हुयी थी ।
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डाक्टर बेर्नश्ताम - सप्तनद , अल्ताई ओर त्यानशान के प्राचीन इतिहास ओर पुरातत्व के बडे विद्वान --- का कहना हे कि ईसापूर्व  6  ठी  शताब्दी मे इस सारे इलाके मे घूमन्तु हूण- जनो का निवास था । यह भी पता लगा हे कि हूणो ने कुछ काम खेती का भी सीखा था  , तब भी वह प्रधानतया पशुपालक ही थे ।
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चीन मे भी अपने इतिहास को बहुत अधिक प्राचीन दिखलाने का आग्रह रहा हे  , किन्तु चीन का यथार्थ इतिहास ईसापूर्व  6 ठी शताब्दी से शुरू होता हे  । उसके पहले की सारी बाते पोराणिक जनश्रुतियो से अधिक महत्व नही रखती हे ।

चीन का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश चिन  ( 255 - 206  ईसापूर्व ) है । इस वंश के सस्थापक चिन-शी-हाग्ड-ती ( 255 - 250  ईसापूर्व ) ने बहुत सी छोटी  - छोटी  सामन्तियो मे बटे हुयै चीन को एक राज्य मे संगठित किया । इससे पहले उतर के घूमन्तू हूण चीन को अपने लूटपाट का क्षेत्र बनाये हुये थे ।

यह अश्वारोही  , मांसभक्षी कूमिशपायी - खतरनाक लडाके बराबर अपने पडोस के चीनी गावो ओर नगरो पर धावा-आक्रमण किया करते थे। उनकी संपत्ति घोडा  , ढोर  ओर भेड थी कभी कभी ऊंट  , गदहे  , खच्चर भी इनके पास देखे जाते थे  ।

वर्तमान मगोलिया  , मंचूरिया तथा इनके उतर के साईबेरिया के भू- भाग  इनकी चरागाह भूमी थी ।

हूण कबीलो को चीनी मे

 " हाण्ड-नू "

कहते थे । तुर्क  , किरगिज , मगयार ( हूंगर )  आदि इनके ही उतराधिकारी हुए । हाण्ड- नू ( हूण ) के अतिरिक्त चीनी इतिहास एक ओर घूमन्तु मगोलायित जन का पता देता हे ,
जिसको  " तुड- हू " कहते थे ।

इन्ही के उतराधिकारी पीछे कित्तन  ( खिताई ) , मन्चू आदि हुऐ  । विशाल हूणो के बहुत छोटे - छोटे  उप - जन ( कबीले ) थे जिनके अपने अपने  सरदार हुआ करते थे । हमारे यहा तथा दूसरे  देशो मे भी " ओर्दू  ( उर्दु ) शब्द सेना का पर्याय माना जाता हे । इन घुमन्तू ओ मे एक पूरे जन - जिसमे उसके सभी नर  - नारी , बाल वृद्ध सम्मिलित थे  - को  ओर्दू  कहा जाता था ।

 इनका शासन जनतान्त्रिक था  , सरदारों को जनके ऊपर अपना स्वतंत्र दर्जा कायम करने का अधिकार नही था । हूणो के  बच्चे बचपन से ही पशुओ को चराना सीखते थे,  वहा उससे  भी पहिले अपनी छोटी सी धनुष - बाण से  सियार ओर खरगोश  का शिकार करते  थे  ।

नंगी पीठ  पर  घुडसवारी करना भी बचपन ही से इन्हे सिखाया जाता था ओर अधिक क्षमता प्राप्त करने पर वह घोडे पर बेठे - बेठे  ही धनुष चलाने लगते थे । दूध व मांस का भोजन तथा चमडे की पोशाक इन्हे अपने पशुओ के ऊपर निर्भर करती थी । ऊन के नम्दे भी ये बना लेते थे ।  दया - माया  की इनके यहा कम ही गुंजाइश थी  इनके हथियार धनुष - बाण,  तलवार ओर छुर्रे होते थे ।

 साल मे तीन बार इनकी जन- सभा होती थी  , जबकि सारा ओर्दू ( कबीला ) एकत्रित होकर धार्मिक और सामाजिक कृत्यों को पूरा करता  , वहा साथ ही राजनीतिक ओर दूसरे झगडे भी मिटाता ।

बहुत से सरदारों के ऊपर निर्वाचित राजा को " शान्य" कहा जाता था ।

 1400 - 200 ईसापूर्व  तक चीन मे इन घूमन्तूओ की लूटपाट बराबर होती रहती थी ।
ईसापूर्व तीसरी शताब्दी मे  सान-'शी , शेन- शी , ची- ही मे  इनके  ओर्दू विचरा करते थे । इसी समय हाण्ड - हो नदी के मुडाव पर भी इनका ओर्दू रहा करता था  , जिसके कारण आज भी उस प्रदेश को " ओर्दू स" कहते हे ।

 चिन - शी  - हाण्ड- ती ( 255-206  ईसापूर्व ) ने  चीन के बडे  भू - भाग  को एक राज्य मे परिणत कर सोचा  , कि इन हूणो  की  लूटमार  सै  केसे चीन की रक्षा की जाये  ।
इसके लिये उसने

"चीन की महान दीवार "

के कितने ही भाग को एक रक्षा प्राकार के तोर पर निर्मित करवाया ओर ओर्दू तथा तथा शान - सी आदि प्रदेशो मे से हूणो के डर से काम जल्दी - जल्दी करवाया । समुन्द्र तट से पश्चिम मे लनचाउ तक इस दिवार
 को बनाने मे 5  लाख  आदमी मर -  मर कर वर्षो तक कोडो के नीचे काम करते रहै  ।

निर्माण काल से लेकर हजार वर्षो तक हूणो ओर चीन की सेना का खूनी संघर्ष होता रहा  , उसके परिणाम स्वरूप लाखो खोपडीयां दीवार के सहारे जमा होती गई  ।

 चीन की यह दिवार हूणो के ईसी आक्रमणो से बचने के लिये चीनी राजवंशो के दवारा बनवाई गई ।

सन्दर्भ :--
1 . A Thousand Years of  Tatars : E.  H . Parker, Shanghai - 1895
2. हुन्नू इ गुन्नी : क. इनस्त्रान्त्सेफ,  लेनिनग्राद - 1926 
3. Histoire des Huns : Desqugue - Paris : 1756
4. Excavation in Northan Mangolia - C.  Trever - Leiningrad 
5. The Story of Chang Kien :  Journal of American Oriental Society Sept -"1917 Page - 77
6.  Histoire d' Attila et de ses successures : Am. Thierry - Paris : 1856
7. History of the  Hing - nu in their Relations with China - Wylie : Journal of Anthropological institute - London,  volume III  - 1892 -93
8. Sur I'origine des Hiung - nu :- Shiratori -- Journal Asiatigus : CC -  II no. I,  1923
9. ओचेर्क इस्तोरिइ सेमिरेचय :-- वरतोल्द - 1868

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