रविवार, 31 जुलाई 2016

पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Description of Gurjar inscription by Pandit Balkrishna God

पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण


पं बालकृष्ण गौड लिखते है कि जिसको कहते है रजपूति इतिहास
तेरहवीं सदी से पहले इसकी कही जिक्र तक नही है और कोई एक भी ऐसा शिलालेख दिखादो जिसमे रजपूत शब्द का नाम तक भी लिखा हो। लेकिन गुर्जर शब्द की भरमार है, अनेक शिलालेख तामपत्र है, अपार लेख है, काव्य, साहित्य, भग्न खन्डहरो मे गुर्जर संसकृति के सार गुंजते है ।अत: गुर्जर इतिहास को राजपूत इतिहास बनाने की ढेरो सफल-नाकाम कोशिशे कि गई।
पं बालकृष्ण गौड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Description of Gurjar inscription by Pandit Balkrishna God 




• कर्नल जेम्स टोड कहते है कि राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश अर्थात राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं।

• प्राचीन काल से राजस्थान व गुर्जरात का नाम गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश, गुर्जराष्ट्र) था जो अंग्रेजी शासन मे गुर्जरदेश से बदलकर राजपूताना रखा गया ।

• कविवर बालकृष्ण शर्मा लिखते है :

चौहान पृथ्वीराज तुम क्यो सो गए बेखबर होकर ।
घर के जयचंदो के सर काट लेते सब्र खोकर ॥
माँ भारती के भाल पर ना दासता का दाग होता ।
संतति चौहान, गुर्जर ना छूपते यूँ मायूस होकर ॥


कर्नल जेम्स टोड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Inscription of Gurjar History by Rajput Historian James Tod

कर्नल जेम्स टोड द्वारा गुर्जर शिलालेखो का विवरण | Inscription of Gurjar History by Rajput Historian James Tod 


• कर्नल जेम्स टोड कहते है कि राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश अर्थात राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं।

• प्राचीन काल से राजस्थान व गुजरात का नाम गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश, गुर्जराष्ट्र) था जो अंग्रेजी शासन मे गुर्जरदेश से बदलकर राजपूताना रखा गया।


गुर्जर हूण वीरो की विजयनी सैना | Victorious Army of Huna Veer Gurjars

गुर्जर हूण वीरो की विजयनी सैना 

गुर्जर हूण वीरो की विजयनी सैना | Victorious Army of Huna Veer Gurjars

हूण पशुजीवी ही नही थे आयुध जीवी भी थे । बडे - बडे व दूर - दूर तक लम्बे धावे मारना इनका शोक था  ।

हूण वीरो की लडाई की एक बडी चाल थी,  दुश्मन के सामने पराजित होने का अभिनय कर के भाग पडना । ओर जब दुश्मन उनका पीछा करते कुछ दूर निकल जाता  , तो सुशिक्षित,  सुसंगठित जहां - तहां छिपे हुये हूणवीरो के दस्ते शत्रु की पीठ पर आक्रमण कर देते  ।

हूणवीर माउदून ने चीन के युद्ध मे एक बार इस तरह 3  लाख  20 हजार चीनी सेनिको को अपने जाल मे फसा लिया था  ।

चीन सम्राट अपनी सेना के साथ आधुनिक ता - तुड - फू ( शेनसी  ) से एक मील दूर एक दृढ दुर्ग- बद स्थान पर पहुच चुका था  , लेकिन  उसकी अधिकांश सेना पीछे रह गयी थी  ।

हूण वीर " माउदून " अपने 3 लाख सैनिको के साथ चीनियो पर टूट पडा ओर चीनी सम्राट चारो तरफ से घिर गया । चीनी सेना 7 दिन तक घिरी रही  । बडी मुश्किल से चीनी अपने सम्राट को घेर मे से बाहर निकाल पाये । माउदून के घेरे का एक कोना ढीला था । इस निर्बल कोने से चीनी सम्राट निकल भागने मे समर्थ हुआ । माउदून ने पीछा नही किया ।
समझोते मे चीनियो को बहुत अपमानजनक बाते स्वीकार करनी पडी । हूणवीर  माउदून के साथ चीनी सम्राट का समझोता हुआ ओर चीनियो को अपनी एक राजकुमारी  , रैशम तथा बहुमूल्य हीरे जवाहरात,  रत्न,  चावल,  अगूंरी शराब तथा बहुत तरह के खाद्य पदार्थ  भेंट देने के लिये मजबूर होना पडा  ।

इस तरह चीनी राजकुमारीयो का शक्तिशाली हूण वीरो से ब्याह करने की प्रथा चली ।
क्योकि राजकुमारी का लडका मातृपक्ष का पक्षपाती होगा  ।

चीन सम्राट  हूड-ती के मरने के बाद उसकी विधवा रानी को -ठूँ अपने पुत्र  ( वैन - ती  ) को बैठा कर बारह साल  ( 187 - 179  ईसापूर्व ) तक स्वय राज करती रही । हूण वीरो मे पितृ - सताक समाज होने के कारण कुछ सुभीता था,  जिसके कारण कितने ही चीनी भाग कर उनके राज्य मे चले आते थे ।

 ऐसे ही किसी दरबारी की बातो मे पडकर माउदून ने रानी को सदेंश-पत्र- भेजकर अपने हाथ ओर ह्रदय को देने का प्रस्ताव किया ।
दरबारीयो ने युध्द की आग भडकाने की कोशिश करी , लेकिन किसी समझदार ने चीनी रानी को समझाया

  " कि अभी भी हमारी आम जनता हमारी ही सडको पर चीनी सम्राट के युध्द से भागने के गीत गाते फिरते हे "

 चीनी रानी ने कूटनीतिक रूप से हूणवीर सम्राट   माउदून को बहुत नरम सा  पत्र लिखा -- " मेरे  दाँत ओर केश परम भटारक ( आप ) को प्राप्त करने के योग्य नही हे "  साथ ही दो राजकीय रथ  , बहुत से अच्छे घोडे तथा दूसरी बहुमूल्य भैंट भेजी ।

 तब जाकर " माउदून " को दरबारीयो की अनावश्यक युध्द करवाने की चाल समझ आई ओर इस पर हूण वीर माउदून अत्यंत लज्जित हुआ ओर उसने बहुत से हूणी घोडे भेज कर चीनी रानी से  क्षमा मागी ।
हूणवीर माउदून ने बहुत लम्बे समय तक  ( 36 साल ) राज्य किया ।

सन्दर्भ :--
1. A Thousands years of Tattars :- E.  H. Parker,  Shanghai - 1895
2. Histoire d ' Attila et De ses successures : Am. Thierry -- Paris - 1856 
3. History of the Hing - nu in their Relations with China :-- Wylie - Journal of Anthropological institute -- London,  Volume III - 1892 -93

संसद भवन पर आतंकी हमले मे शहीद वीर गुर्जर | Saheed Veer Gurjars in Terrorist attack of Indian Parliament on 2001

संसद भवन पर आतंकी हमले मे शहीद वीर गुर्जर | Saheed Veer Gurjars in Terrorist attack of Indian Parliament on 2001

संसद भवन पर आतंकी हमले मे शहीद वीर गुर्जर | Saheed Veer Gurjars in Terrorist attack of Indian Parliament on 2001

जब 11 सितम्बर सन 2001 को तालिबानी आतंकियों ने अमेरिका के पेंटागन की इमारत को हवाई जहाज की टक्कर मारकर धवस्त कर दिया था तब सारा संसार विस्मित था कि सर्वशक्तिशाली समझे जाने वाले अमेरिका पर हमला करने का दुस्साहस किसको हो गया है।
कुछ दिनों के बाद स्पष्ट हो गया था कि यह सब ओसामा बिन लादेन की करतूत है।
उसी तर्ज पर पाक-प्रशिक्षित आंतकवादियों ने भारतीय संसद को उड़ाने का 13.12.2001 को उड़ाने का दुस्साहस किया वे सभी मंत्रियों,प्रधानमंत्री तथा सांसदों को मारना चाहते थे।
उस दिन आंतकवादी छद्मम वेश में कार में बैठकर आये थे कार पर दिल्ली पुलिस के चिन्ह लगा दिये थे।
उस समय ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मी उन्हें पहचान नही पायें तभी आंतकवादियों की कार ने महामहिम उपराष्ट्रपति की कार में हल्की सी टक्कर मार दी।
उस कार का ड्राइवर बिजेन्द्र सिंह हवलदार(गुर्जर)वहीं खड़ा था उसने उन्हें डाट दिया आतंकियों ने दनादन गोलियाँ बरसानी शुरु करदी।
संसद के प्रहरियों ने भी बड़ी मुस्तैदी से गोली चलानी शुरू करदी।
5 आंतकी वहीं ढ़ेर हो गये और एक भागने में सफल हो गया परन्तु संसद भवन को बचाने में भारत के भी सात जवान शहीद हो गये।
इन सात सपूतों में चार गुर्जर वीर थे।

जिनके नाम इस प्रकार है।
(1) श्री नानकचंद ए.एस.आई पलवल हरियाणा
(2) श्री महिपाल कांस्टेबल मथुरा उत्तर प्रदेश
(3) श्री बिजेन्द्र सिंह हैड कांस्टेबल ग्राम मोलड़बंद दिल्ली
(4) श्री वीरेन्द्र सिंह ग्राम टील्ला गाजियाबाद उत्तर प्रदेश

इन गुर्जर वीरों के बलिदान से यह सिद्ध हो जाता है कि गुर्जर जाति महान देशभक्त जाति है जिनके वीरों ने सदैव अपनी जान की परवाह न करके आक्रमणकारियों के इरादों को असफल करने का प्रयास किया है।


नववर्षोत्सव / Navvarsoutsav - Huna Gurjars

 नववर्षोत्सव 

Hoon / Huna Gurjars

महान धनुर्धर हूणो का प्राचीन इतिहास
(  ईसापूर्व )

यह हूणो का सबसे बडा राष्ट्रीय मैला था,  जिसमे शान - यू ( हूण राजा ) बडी शान  - शोकत से मनाता था । पितरो  , तिडःरी ( दैव ) , पृथिवी ओर भूत- प्रेतो के लिये बलि इसी समय दी जाति थी  ।
शरद मे दूसरा महोत्सव मनाया जाता था  , जिसमे ओर्दू की जनगणना ,  सम्पत्ति ओर पशुओं पर कर लगाने का काम किया जाता था ।

हूण - जनो मे अपराध कम था ओर उसके दण्ड देने मे देरी नही की जाती थी ।
 वह दोनो महोत्सवो के समय किया जाता था । महोत्सव मे घुड - दोड  , ऊटो की दोड व ऊटो की लडाई तथा दूसरे कितने ही सैनिक ओर नागरिक मनोरंजन के खैल होते थे ।

हूणो के अपराध दण्ड मे मृत्यु -  दण्ड तथा घुटना तोड देना भी शामिल था  । सम्पति के विरूद्ध अपराध का  दण्ड था सारे परिवार का दास बना दिया जाना ।

नववर्षोत्सव ओर शरदोत्सव दोनो सामाजिक , राजनीतिक ओर धार्मिक महा - सम्मेलन थे  ।

" इनके अतिरिक्त भी शान - यू  ( हूण राजा) को कुछ धार्मिक कृत्य रोज करने पडते थे । दिन मे  राजा सूर्य को नमस्कार करता ओर सन्ध्या को चन्द्रमा की पूजा ओर नमस्कार  । "

चीनीयो की भांति हूण जन भी पूर्व ओर वाम दिशा को श्रेष्ठ मानते थे । हूण राजा सभा मे उतर की ओर मुंह करके बैठता  था ।
 जबकि चीन सम्राट का बेठना दक्षिणाभिमुख होहोता  था ।

 चांन्द्रमास की तिथियो को प्रधानता दी जाती थी ।
सेना अभियान के लिये शुक्ल पक्ष तथा वहा से लोटने कै लिए कृष्ण पक्ष प्रशस्त माना जाता था ।

लूट मे सम्पत्ति ओर बंदी हुये दासो का स्वामी वही होता था  , जिसने दुश्मन से उन्हे छीना था ।

दुश्मन का सिर काट लेना  ,
बहुत बडी वीरता मानी जाती थी ।

सन्दर्भ :--
1 . A Thousand Years of  Tatars : E.  H . Parker, Shanghai - 1895
2. हुन्नू इ गुन्नी : क. इनस्त्रान्त्सेफ,  लेनिनग्राद - 1926 
3. Histoire des Huns : Desqugue - Paris : 1756
4. Excavation in Northan Mangolia - C.  Trever - Leiningrad

शनिवार, 30 जुलाई 2016

प्राचीन हूण (गुर्जर) - ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (1400 ई. पूर्व से -200 ईसा पूर्व ) | Historical background of Ancient Huna Gurjars

प्राचीन हूण (गुर्जर) - ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (1400 ई. पूर्व से -200 ईसा पूर्व )

Huna / Hoon Gurjars

शको को उनके मूल स्थान से निकाल कर उस पर अपना अधिकार जमाना हूणो का ही काम था  यही नही  ,  बल्कि मध्य ऐशिया के उतरापथ ओर दक्षिणा पथ दोनो मे जो आज सभी जगह मंगोलियन चैहरे देखे जाते है,  यह भी हूणो की ही दैन हे ।

शको की तरह हूण भी घूमन्तू कबीले थै । मध्य -  ऐशिया मे दोनो एक दूसरे के पडोसी थे । यू- ची के निकाले जाने से पहले शक -  भूमि त्यानशान ओर अल्ताई से पूरब हूणों की गोचर भूमि से मिल जाती है । इसलिये अन्तिम सघर्ष के पहिले भी इनका कभी - कभी आपस मे युध्द ,  वस्तु विनिमय के लिऐ सघर्ष हो जाया करता था । चीन के इतिहास से पता लगता हे कि वहा पर भी धातुयुगीन सांस्कृतिक विकास मे पश्चिम से जाने वाली जाति का विशेष हाथ रहा हे ।

यह जाति शक - हूणो  से समबन्ध रखने वाली थी  , इसमे सन्देह नही  । तातार ओर तुर्क यह दोनो शब्द हूणो के वंशजों के लिये इस्तेमाल हुये हे  , लकिन चीनी इतिहास मे ईसा की दूसरी सदी के पूर्व तातार शब्द का पता नही  लगता है , ओर पाँचवी सदी से पहिले तुर्क शब्द भी उनके लिये अज्ञात था ।
ग्रीक ओर ईरानी स्त्रोत जब सूखने लगते हे  , इसी समय से चीनी स्त्रोत हमारे लिये खुल जाते हे ।

शको व हूणो  के बारे मे चीनी इतिहिसकारो ने बहुत कुछ लिखा हे लेकिन अभी तक उसमे से थोडा ही यूरोप की भाषाओ मे आ सका हे । रूसी विद्वानो का इस सामग्री को प्रकाश मे लाने तथा व्यवस्थित रूप से छानबीन करने का काम बहुत सराहनीय हे ।

किन्तु वह रूसी भाषा मे लिपिबद्ध होने से हमारे लिये बहुत उपयोगी नही हुआ । नवीन चीन ओर सोवियत -  रूस आज सारी शक-हूण भूमी का स्वामी है । वहा इतिहास के अनुसंधान मे जितनी दिलचस्पी दिखाई जाती है  , उससे आशा हे कि उनके बारे मे पुरातत्व  - सामग्री तथा लिखित सामग्री से बहुत सी बाते मालूम होगी  । त्यानशान ( किरगिजिया ) मे नरीन की खुदाई मे हूणो के विशेष तरह के बाण के फल तथा मट्टी के गोल कटोरे ओर दूसरी चीजे भी मिली हे ।

इस्सि कुल सरोवर के किनारे त्यूप स्थान मे भी इस काल की कुछ चीजे मिली है  । जो कि मास्को के राजकीय ऐतिहासिक म्यूजियम मे रखी हुई है ।

कजाक गणराज्य के बैरकारिन स्थान मे निकली कब्र मे भी कुछ चीजे मिली है । वही कराचोको ( ईलीपत्यका ) मे खुदाई करने पर शक - हूणो के पीतल के बाण मिले । जो मिन सुन ओर उनके उत्तराधिकारीयो से सबंध रखने वाले हे । हूणो के पीतल के हथियार पूर्वी यूरोप  ( चेरतोम लिक ) से बेकाल ओर मन्चूरिया की सीमा तक है इनकी गोचर भूमि समय  - समय पर बहुत दूर तक फैली हुयी थी ।
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डाक्टर बेर्नश्ताम - सप्तनद , अल्ताई ओर त्यानशान के प्राचीन इतिहास ओर पुरातत्व के बडे विद्वान --- का कहना हे कि ईसापूर्व  6  ठी  शताब्दी मे इस सारे इलाके मे घूमन्तु हूण- जनो का निवास था । यह भी पता लगा हे कि हूणो ने कुछ काम खेती का भी सीखा था  , तब भी वह प्रधानतया पशुपालक ही थे ।
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चीन मे भी अपने इतिहास को बहुत अधिक प्राचीन दिखलाने का आग्रह रहा हे  , किन्तु चीन का यथार्थ इतिहास ईसापूर्व  6 ठी शताब्दी से शुरू होता हे  । उसके पहले की सारी बाते पोराणिक जनश्रुतियो से अधिक महत्व नही रखती हे ।

चीन का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश चिन  ( 255 - 206  ईसापूर्व ) है । इस वंश के सस्थापक चिन-शी-हाग्ड-ती ( 255 - 250  ईसापूर्व ) ने बहुत सी छोटी  - छोटी  सामन्तियो मे बटे हुयै चीन को एक राज्य मे संगठित किया । इससे पहले उतर के घूमन्तू हूण चीन को अपने लूटपाट का क्षेत्र बनाये हुये थे ।

यह अश्वारोही  , मांसभक्षी कूमिशपायी - खतरनाक लडाके बराबर अपने पडोस के चीनी गावो ओर नगरो पर धावा-आक्रमण किया करते थे। उनकी संपत्ति घोडा  , ढोर  ओर भेड थी कभी कभी ऊंट  , गदहे  , खच्चर भी इनके पास देखे जाते थे  ।

वर्तमान मगोलिया  , मंचूरिया तथा इनके उतर के साईबेरिया के भू- भाग  इनकी चरागाह भूमी थी ।

हूण कबीलो को चीनी मे

 " हाण्ड-नू "

कहते थे । तुर्क  , किरगिज , मगयार ( हूंगर )  आदि इनके ही उतराधिकारी हुए । हाण्ड- नू ( हूण ) के अतिरिक्त चीनी इतिहास एक ओर घूमन्तु मगोलायित जन का पता देता हे ,
जिसको  " तुड- हू " कहते थे ।

इन्ही के उतराधिकारी पीछे कित्तन  ( खिताई ) , मन्चू आदि हुऐ  । विशाल हूणो के बहुत छोटे - छोटे  उप - जन ( कबीले ) थे जिनके अपने अपने  सरदार हुआ करते थे । हमारे यहा तथा दूसरे  देशो मे भी " ओर्दू  ( उर्दु ) शब्द सेना का पर्याय माना जाता हे । इन घुमन्तू ओ मे एक पूरे जन - जिसमे उसके सभी नर  - नारी , बाल वृद्ध सम्मिलित थे  - को  ओर्दू  कहा जाता था ।

 इनका शासन जनतान्त्रिक था  , सरदारों को जनके ऊपर अपना स्वतंत्र दर्जा कायम करने का अधिकार नही था । हूणो के  बच्चे बचपन से ही पशुओ को चराना सीखते थे,  वहा उससे  भी पहिले अपनी छोटी सी धनुष - बाण से  सियार ओर खरगोश  का शिकार करते  थे  ।

नंगी पीठ  पर  घुडसवारी करना भी बचपन ही से इन्हे सिखाया जाता था ओर अधिक क्षमता प्राप्त करने पर वह घोडे पर बेठे - बेठे  ही धनुष चलाने लगते थे । दूध व मांस का भोजन तथा चमडे की पोशाक इन्हे अपने पशुओ के ऊपर निर्भर करती थी । ऊन के नम्दे भी ये बना लेते थे ।  दया - माया  की इनके यहा कम ही गुंजाइश थी  इनके हथियार धनुष - बाण,  तलवार ओर छुर्रे होते थे ।

 साल मे तीन बार इनकी जन- सभा होती थी  , जबकि सारा ओर्दू ( कबीला ) एकत्रित होकर धार्मिक और सामाजिक कृत्यों को पूरा करता  , वहा साथ ही राजनीतिक ओर दूसरे झगडे भी मिटाता ।

बहुत से सरदारों के ऊपर निर्वाचित राजा को " शान्य" कहा जाता था ।

 1400 - 200 ईसापूर्व  तक चीन मे इन घूमन्तूओ की लूटपाट बराबर होती रहती थी ।
ईसापूर्व तीसरी शताब्दी मे  सान-'शी , शेन- शी , ची- ही मे  इनके  ओर्दू विचरा करते थे । इसी समय हाण्ड - हो नदी के मुडाव पर भी इनका ओर्दू रहा करता था  , जिसके कारण आज भी उस प्रदेश को " ओर्दू स" कहते हे ।

 चिन - शी  - हाण्ड- ती ( 255-206  ईसापूर्व ) ने  चीन के बडे  भू - भाग  को एक राज्य मे परिणत कर सोचा  , कि इन हूणो  की  लूटमार  सै  केसे चीन की रक्षा की जाये  ।
इसके लिये उसने

"चीन की महान दीवार "

के कितने ही भाग को एक रक्षा प्राकार के तोर पर निर्मित करवाया ओर ओर्दू तथा तथा शान - सी आदि प्रदेशो मे से हूणो के डर से काम जल्दी - जल्दी करवाया । समुन्द्र तट से पश्चिम मे लनचाउ तक इस दिवार
 को बनाने मे 5  लाख  आदमी मर -  मर कर वर्षो तक कोडो के नीचे काम करते रहै  ।

निर्माण काल से लेकर हजार वर्षो तक हूणो ओर चीन की सेना का खूनी संघर्ष होता रहा  , उसके परिणाम स्वरूप लाखो खोपडीयां दीवार के सहारे जमा होती गई  ।

 चीन की यह दिवार हूणो के ईसी आक्रमणो से बचने के लिये चीनी राजवंशो के दवारा बनवाई गई ।

सन्दर्भ :--
1 . A Thousand Years of  Tatars : E.  H . Parker, Shanghai - 1895
2. हुन्नू इ गुन्नी : क. इनस्त्रान्त्सेफ,  लेनिनग्राद - 1926 
3. Histoire des Huns : Desqugue - Paris : 1756
4. Excavation in Northan Mangolia - C.  Trever - Leiningrad 
5. The Story of Chang Kien :  Journal of American Oriental Society Sept -"1917 Page - 77
6.  Histoire d' Attila et de ses successures : Am. Thierry - Paris : 1856
7. History of the  Hing - nu in their Relations with China - Wylie : Journal of Anthropological institute - London,  volume III  - 1892 -93
8. Sur I'origine des Hiung - nu :- Shiratori -- Journal Asiatigus : CC -  II no. I,  1923
9. ओचेर्क इस्तोरिइ सेमिरेचय :-- वरतोल्द - 1868

संसद भवन और गुर्जरो का चौसठ योगिनी मंदिर | Indian Parliament & Gurjar Pratihar Temple (64 Yogini Temple)

संसद भवन और गुर्जरो का चौसठ योगिनी मंदिर 


हमारा संसद भवन ब्रिटिश वास्तुविद् सर एडविन ल्युटेन की मौलिक परिकल्पना माना जाता है. लेकिन,इसका मॉडल हू-ब-हू मुरैना जिले के मितावली में मौजूद गुर्जर वंशी प्रतिहार राजाओ द्वारा बनवाये गए चौंसठ योगिनी शिव मंदिर से मेल खाता है. इसे 'इकंतेश्वर महादेव मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है।
मुरैना जिले के मितावली गांव में स्थित चौंसठ योगिनी शिवमंदिर अपनी वास्तुकला और गौरवशाली परंपरा के लिए आसपास के इलाके में तो प्रसिद्ध है, लेकिन मध्यप्रदेश पर्यटन के मानचित्र पर जगह नहीं बना सका है।
स्थानीय लोग इसे ‘चम्बल की संसद' के नाम से भी जानते हैं. इस मंदिर की ऊंचाई भूमि तल से 300 फीट है. इसका निर्माण तत्कालीन गुर्जर प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने किया था. यह मंदिर गोलाकार है. इसी गोलाई में बने चौंसठ कमरों में एक-एक शिवलिंग स्थापित है. इसके मुख्य परिसर में एक विशाल शिव मंदिर है.
भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक़, इस मंदिर को नौवीं सदी में बनवाया गया था. कभी हर कमरे में भगवान शिव के साथ देवी योगिनी की मूर्तियां भी थीं, इसलिए इसे चौंसठ योगिनी शिवमंदिर भी कहा जाता है. देवी की कुछ मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं और कुछ मूर्तियां देश के विभिन्न संग्रहालयों में भेजी गई हैं. यह मंदिर कई तरह से अद्वितीय है।
भारत में चार चौंसठ-योगिनी मंदिर हैं, दो ओडिशा में तथा दो मध्य प्रदेश में. मंदिर को एक जमाने में तांत्रिक विश्वविद्यालय कहा जाता था. मंदिर के निर्माण में लाल-भूरे बलुआ पत्थरों का उपयोग किया गया है।

ये गुर्जर धरोहर है इसलिए जर्जर हालात में है यदि यही मंदिर महाराणा प्रताप ने बनवाया होता तो मध्य प्रदेश के बड़े पर्यटन स्थल में से एक होता पर गलती गुर्जर राजाओ की ये रही की उन्होंने अपने वंश को गुर्जर नाम दिया अगर गुर्जर नाम ना दिया होता तो सायद राजपुत कहलाकर ही सही पर उनकी धरोहर को सही जगह मिल जाती।
सबलगढ़ का दुर्ग चौशठ योगिनी मंदिर धौलपुर दुर्ग सब जर्जर हालात में है क्योंकि गुर्जरो के है।
ऐसे तो गुर्जर विदेशी है इतिहास भी नही दिखाएंगे इतिहास भी राजपुतो का बना देंगे ओर ऐसे संसद का मॉडल गुर्जर राजाओ से लिया गया वो भी विदेशी के नाम कर देंगे।
कमाल है!!

Chausath Yogini Temple of Gurjars vs Indian Parliament

तूमन- शान - यू ( 250 ईसा पूर्व ) - महान धनुर्धर हूणो का प्राचीन इतिहास | Tuman Shan Hoon (250 B.C)

तूमन- शान - यू  ( 250  ईसा पूर्व ) - महान धनुर्धर हूणो का प्राचीन इतिहास 



जिस समय चिन - वंश के नेतृत्व मे चीन एकता बद्ध हो रहा था उसी समय  ( 250  ईसा पूर्व ) हूणो मे भी एकता पैदा हुई  । चीन सम्राट की मृत्यु के बाद जो अराजकता पैदा हुई  , उससे  हूणो के प्रथम  शान - यू - तुमन ने लाभ उठाया ओर ओर्दू तथा दूसरे प्रदेशो पर लूटमार की  , ओर ओर्दूस को फिर से अपने  जन  की  गोचर भूमि बना लिया  ।

उतर से हूण आकर फिर पश्चिमी कानू - सू के निवासी यूचियो के पडोसी बन गये । तुमन का प्रभाव अपने जन पर बहुत था । किन्तु हूणो मे सबसे बडा शान - यू ( राजा ) उसका पुत्र माउदून हुआ बुढापे मे पिता ने अपनी तरूणी पत्नी के फेर मे पडकर ज्येष्ठ पुत्र  माउ - दून को  वंचित करके छोटे को राज देना चाहा  ।

सोतेली माॅ ने माउ - दून को रास्ते से अलग करने के लिये उसने अपने पश्चिमी पडोसी  यूची लोगो के पास अमानत रखा ओर फिर यूची- यो पर आक्रमण कर दिया । जिसका अर्थ यह था कि यूची माउदून को मार डालेगे  लैकिन माउ- दून एक तेज घोडे पर चढ कर भाग निकला । पिता ने झूठी प्रसन्नता प्रकट करने के लिये माउ  - दून  को  दस हजारी सरदार बना दिया ।

कहते हे कि माउ - दून ने मिडःली (गाने वाला बाण ) का आविष्कार किया था ओर माउ-दून शब्द भेदी बाण चलाने मे अभ्यस्त था ओर कई बार उसने इस कला का प्रदर्शन  भी  किया था । पिता की  ( तूमन- शान - यू ) असामयिक  मृत्यु  के बाद माउदून शान - यू ( राजा ) बना  ।

सन्दर्भ :--
1 . A Thousands years of tatars -- E.  H.  Parker,  Sanghai - 1895

तेली कत्था नरसंहार | Teli Katha Massacre - Sacrifice of Veer Gurjars

तेली कत्था नरसंहार

तेली कत्था नरसंहार | Teli Katha Massacre 

तेली कत्था नरसंहार जिसमे आतंकवादियों ने उन १२ गुर्जरो को जिन्होंने  भारतीय सेना के साथ मिलकर ऑपरेशन सर्प विनाश चलाया था, सुरणकोट के तेली कत्था गांव में रात में सोते समय बेरहमी से मार दिया था.. इसमें 12 गुर्जरो की जान गयी थी. वास्तव में ऑपरेशन सर्प विनाश बिना गुर्जरो के सहयोग के संभव ही नहीं था. 

https://en.wikipedia.org/wiki/2004_Teli_Katha_massacre

"तुम सजाते ही रहना नए काफिले,
राह कुर्बानियों की ना वीरान हो..."
इन वीर गुर्जरो को मेरी तरफ से श्रद्धांजलि भगवान इन वीरो को जन्नत में जगह दे.

माउ-दून महान - चक्रवर्ती गुर्जर सम्राट (183 ईसा पूर्व ) : महान धनुर्धर घुमन्तु हूण गुर्जरो का प्राचीन इतिहास | History of Ancient Huna Gurjars

 माउ-दून महान - चक्रवर्ती गुर्जर सम्राट (183  ईसा पूर्व ) : महान धनुर्धर घुमन्तु हूण गुर्जरो का प्राचीन इतिहास 

Huna / Hoon Gurjars


शान - यू  ( राजा ) बनते ही माउदून ने अपने तेवर दिखा दिये थे क्योंकि इस समय तक चीन ओर यूची ही नही  , बल्कि पुराने तुंगुस ( तुडःहू, हाण्न ) भी अपने जन का एक बडा संगठन कर चुके थे । हूणो की उनके साथ लडाई होने लगी थी । गोबी की बालु का भूमी के बीच मे दोनो जनो ( दोनो कबीले )  का एक भीषण संघर्ष हुआ ।

वह माउदून का मुकाबला कर बुरी तरह से हारे थे । बहुत से तुंगुसो को हूणो ने अपना दास बना लिया था । उनमे से कुछ भागकर मंगोलिया के उतर - पूर्व मे जाने मे सफल हुये जो बाद मे शक्ति संचय कर के हूणो के प्रतिद्वन्दी  बन गये ।

माउदून एक चतुर सेनानायक था । जन ( कबीला ) के संगठन ओर शासन मे भी उसने वेसी ही प्रतिभा दिखलाई । उसने अपने तीन प्रतिद्वन्दी जनो को परास्त कर हूणो की शक्ति को बढाया ।

उसे कोरोस , दारयोश ओर सिकन्दर की श्रेणी का विजेता माना जाता है ।

तुंगुसों को परास्त करके उत्तर से अपने को सुरक्षित कर पश्चिमी पडोसी यूचियो की खबर लेने की ठानी । यूची ( यूची जो कि कुषाणो के नेतृत्व में फिर से संगठित हुए)भी बडे वीर योध्दा थे  , हूणो की तरह ही घूमन्तू पशुपालन तथा घुडसवारी के साथ धनुष चलाना जानते थे । यह भी संभव है कि हथियार ओर युद्ध की शिक्षा मे हूणो के गुरू ईन्ही के पूर्वज हो ।

यूची ओर माउदून की सेना कितने ही समय तक मुकाबला करते रहे  , किन्तु अंत मे  ( 176 या 174 ईसा पूर्व ) मे उन्हे हूणो के सामने पराजय स्वीकार कर कोकोनोर ओर लोबनोर की अपनी पितृ - भूमी को छोडने के लिऐ मजबूर होना पडा ।

माउदून ने चीन सम्राट वेन-ती( 169 - 156  ईसापूर्व )  को लिखा था :----

 " जितनी जातिया ( तातार ) घोडे पर चढ कर धनुष को झुका सकती हे  , उन्हे एकता बद्ध कर मैने एक विशाल साम्राज्य  कायम कर लिया । यूचियो ओर तरबगताइयो को भी मैने नष्ट कर दिया है । लोबनोर तथा आसपास के  26  राज्य,  मेरे हाथ मे है । अगर तुम नही चाहते  , कि  हाण्ड-नू ( हूण ) महादिवार को पार करे तो तुम्हे चीनीयो को महादिवार के पास हर्गिज नही आने देना चाहिये साथ ही मेरे दूत को नजरबंद न कर तुरन्त लोटा देना चाहिये " ।

माउदून का राज्य पूरब मे कोरिया से लेकर पश्चिम मे बल्काश तक ओर उत्तर मे बैकाल से दक्षिण मे किवनलन पर्वत माला तक फैला हुआ था । उसके पिता के समय हूण राज्य केवल अपने कबीले तक सीमित था ओर दक्षिण मे चीन के भीतर लूटमार भर कर लिया करते थे ।

इतने बडे राज्य संचालन के लिए पुरानी व्यवस्था उपयुक्त नही हो सकती थी  , इसलिए माउदून को नई व्यवस्था कायम करनी पडी ।

यह स्मरण रहना चाहिए  , कि  हूणो का राज्य पितृसत्ताक था , अभी वहा सामन्तशाही नही फैली थी । चीन मे किसान अर्धदास  ओर दास जैसे थे । उनके बाल बच्चे सामन्तो की चल सम्पति थे ।

सन्दर्भ :-
1. A thousands years of Tatars - E. H. Parker, Shanghai - 1895
2. आर्खे . ओर्चेक .  - वेर्नश्ताम

हूणराज कुयुक ( कुयुक- 162 ईसा पूर्व ) - महान धनुर्धर हूण गुर्जरो का प्राचीन इतिहास | Hunraj Kuyuk 162 B.C

हूणराज कुयुक ( कुयुक - 162 ईसा पूर्व ) - महान  धनुर्धर  हूण गुर्जरो का प्राचीन इतिहास



यह हूणराज माउदून महान का पुत्र था जिसे चीनी लेखक लाऊशान शान - यू के नाम से याद करते  है । चीनी सम्राट ने इसके लिए एक खूबसूरत राजकुमारी भेजी थी साथ मे एक ख्वाजासरा  ( किन्नर - हिंजडा ) भी भेजा जो जल्द ही शान - यू का विश्वास पात्र मन्त्री बन गया । चीनी भेंटो ,  राजकुमारीयो के प्रभाव मे आकर हूण ज्यादा विलासी होते जा रहे थे  । ख्वाजासरा इसे पसन्द नही करता था

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 उसने हूणो को समझाया ----

 " तुम्हारे ओर्दू की सारी जनसंख्या मुश्किल से चीन के कुछ परगनो के बराबर होगी  , किन्तु तब भी तुम चीन को दबाने मे समर्थ होते रहे । इसका रहस्य हे तुम्हारा अपनी वास्तविक आवश्यकताओ के लिये चीन से स्वतंत्र होना । मै देखता हू कि तुम दिन पर दिन अधिक ओर अधिक चीनी चीजो के प्रेमी बनते जा रहे हो ।

 सोच लो  , चीनी सम्पत्ति का  5 वां  भाग तुम्हारे  सारे लोगो को पूरी तोर से खरीद लेने के लिये काफी हे । तुम्हारी भूमि के कठोर जीवन के रैशम ओर साटन उतने उपयुक्त नही है ।

जितना की ऊनी नम्दा चीन के तुरन्त नष्ट हो जाने वाले व्यंजन उतने उपयोगी नही हो सकते हे  , जितनी तुम्हारी कूमीश ओर पनीर । "
वह बराबर हूणो को इस तरह से सजग करता रहा ।

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चीन के जवाब मे शान - यू की ओर से जो चिट्ठी उसने लिखवाई थी  , वह चर्म पत्र की लम्बाई चोडाई मे ही अधिक बडी नही थी  , बल्कि उसमे शान - यू  ( कुयुक हूण)की अधिक लम्बी उपाधि भी लिखी गई थी ----

" हूणो के महान शान - यू जेंगी ओर पृथ्वी के पुत्र , सूर्य - चन्द्र - समान आदि "  आदि ।

हूणो का रिवाज हे कि अपनी भैडो ओर ढोरो के मांस को खाना ओर दूध को पीना । वह मोसम कै अनुसार अपने पशुओ को लेकर भिन्न - भिन्न  चारागाहो मे घूमा करते थे ।

" हर एक हूण पुरूष दक्ष धनुर्धर  होता था,"

 शांति के समय उसका जीवन सरल ओर सुखी होता हे । उनके शासन के नियम बिलकुल सरल हे । शासक ओर जनता का सबंध उचित ओर चिरस्थायी है  ।

7 साल शासन करने के बाद ची - यू ( कुयुक हूण) को  चीन कै ऊपर आक्रमण करने की आवश्यकता पडी ।
वह 1 लाख  40 हजार  ( 1, 40,000 ) हूण सेना के साथ लूटपाट करता वर्तमान सियान -  फू तक चला आया ओर बडी भारी संख्या मे लोगो,  पशुओ ओर धन - सम्पति को अपने साथ ले गया । चीनी बडी तैयारी करने मे लगे थे  , किन्तु तब तक ची - यू  अपना काम करके लोट चुका था । कई सालो तक यह ऑतक छाया रहा , फिर इस बात पर सुलह हुई  -----

" महा - दिवार  से  उतर की सारी भूमि धनुर्धरो  ( हूणो  ) की हे  , उससे दक्षिण की भूमि टोपी ओर कमरबंद वालो की "


यू -  ची ---- पलायन :---
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यू ची पलायन ची -  यू की सबसे बडी  विजय थी,  कान्सूस यूची शको को भगाना । माउदून उन्हे सिर्फ परास्त भर कर पाया था । उस समय लोबनोर से हाण्ड- हो ( हूण ) के मुडाव तक यूचियो की विचरण भूमि थी ।

लोबनोरसेउतर- पूरब सइवाडः(शक ) रहते थे । ची - यू ने अपनी सुसंगठित सेना से यूचियो पर लगातार ऐसे जबर्दस्त आक्रमण किये  , जिसके कारण यूचियो को भारी क्षति हुई ओर 176  ईसा पूर्व या 174 ईसा पूर्व मे वह अपनी भूमि छोडकर पश्चिम की ओर भागने के लिये मजबूर हुए ।

सइवाडः ( शको ) की भूमि मे थोडा जाने के बाद यूचियो का एक भाग तरिम- उपत्यका की ओर चला गया ओर दूसरा इली - उपत्यका के रास्ते आगे बढा -- पहले भाग को लघु - यूची कहते हे ओर दूसरे को महा- यूची ।

लघु यूची के आने से पहले तरिम - उपत्यका उन्ही खसो ( कशो ) की थी  , जो कि उस समय भी कशमीर ओर पश्चिमी हिमालय तक फैले हुए थे । अब कुछ शताब्दीयो के लिए तरिम - उपत्यका लघु - यूचियो की हो गई ।
महा यूचियो ने सइवडः ( शको ) को खदेड कर उनकी जगह अपने हाथ मे ले ली ।

शक लोग अपने पश्चिमी पडोसी तथा त्यानशान ओर सप्तनद के निवासी वूसुन पर पडै । महा यूचियो को हूणो ने यहा भी चैन से नही रहने दिया ओर वह बराबर पश्चिम की बढते हुये सिर - दरिया ओर अराल समुन्द्र तक फैल गये । फिर वहा से दक्षिण की ओर घूमे । कुछ समय तक उनका केन्द्र वक्षु नदी के उतर मे था ।

इसी समय ग्रीको - बाख्त्री राजा हैलिवोक मरा था । कास्पियन तटवासी पार्थियो ओर सोग्द- उपत्यका मे पहुचे यूचियो ने उसके राज्य को आपस मे बाटकर इस यवन-राजवंश को खतम कर दिया ।

 सन्दर्भ :--
1 . A Thousand Years of  Tatars : E.  H . Parker, Shanghai - 1895
2. हुन्नू इ गुन्नी : क. इनस्त्रान्त्सेफ,  लेनिनग्राद - 1926
3. Histoire des Huns : Desqugue - Paris : 1756
4.  Histoire d' Attila et de ses successures : Am. Thierry - Paris : 1856

हूणराज - चूचेन (चीयू) (172 - 127 ईसापूर्व) महान धनुर्धर प्राचीन हूण राजवंश

हूणराज - चूचेन (चीयू) (172 - 127  ईसापूर्व)

महान धनुर्धर प्राचीन हूण राजवंश

Ancient Huna / Hoon Gurjars

ची यू के स्थान पर चूचेन शान - यू  ( राजा ) बना । चीनी ख्वाजासरा  ( किन्नर - हिजडा  ) अब भी प्रभावशाली मंत्री था । चीयू के पास भी चीन से नई राजकुमारी आई थी । तत्कालीन चीन सम्राट बू- ती ने उसे धोखे से पकडना चाहा भारी युध्द हुआ लेकिन हूण शान - यू फिर विजेता बन कर निकले ओर अब चीन ओर हूण के निरन्तर सघर्ष होने लगै ओर चीनी सीमांत हूणो की आक्रमण भूमि बना रहा ।

हूण राज ईचिसे - ( 127-117  ईसापूर्व ) 


यह पाँचवा शान - यू  ( राजा )  हूणराज चू- चैन  का भाई था । इसने भी चीन पर लगातार हमले जारी रखे उस समय चीन का सम्राट बूती था जो कि एक शक्तिशाली सम्राट था उसने भी हूणो का बल तोडने के लिये एक शक्तिशाली सेना का गठन किया ओर बडी भारी तैयारी करी चीन की इस बडी भारी सेना ने बूती के नेत्तृत्व मै हूणो की भूमि के एक भाग पर आक्रमण किया ओर कान्सू पर अधिकार कर लिया ।

कान्सू मे एक नगर चाड - वे था जहा कोई हूणो का सरदार रहता था ।
 इस नगर पर विजय के समय चीनी सेना को एक सोने की मूर्ति  ( स्वर्ण - मूर्ति ) मिली जिसकी हूण पूजा किया करते थे ।

 { इस स्वर्ण - मूर्ति  के  बारे मे जानकारी बाद मे विस्तार से दी जायेगी  }

यधपि  चीनी सेना हूणो को  यूचीयो की इस भूमि से  उतर की ओर धकेलने मे कामयाब हुई किन्तु उसे सदा की विजय नही समझती थी इसलिए चीनी सम्राट बूती ने अपने सेनापति चाडः - क्यान को अपने शत्रु हूणो के शत्रु यूचियो के पास भेजा,  कि पश्चिम से यूची भी हूणो पर आक्रमण करे ,  चीनी सम्राट ने यूचियो को अपनी पुरानी भूमि पर आकर वापस बसने का निमंत्रण दिया ।

चाडः - क्यान ( चीनी सेनापति ) 138 ईसा पूर्व मे अपनी यात्रा पर चला । यह चीन का प्रथम यात्री हे जिसका यात्रा विवरण बडा ही ज्ञानवर्धक हे । चाडः - क्यान दस साल हूणो का बन्दी रहा । जब वू- सूनो ने अपने को हूणो से स्वतंत्र कर लिया,  तो यह हूणो की नजरबंदी से भागकर वू - सून भूमि मे होते हुये खोकन्द पहुंचा । वहा के निवासी घुमन्तू नही थे बल्कि नगरो ओर ग्रामो के निवासी थे  ।

वहा से समरकंद होते वह यूचियो के केन्द्र बाख्तर मे पंहुचा । चाडः  - क्यान ने यूचियो को बहुत समझाने की कोशिश करी कि चीनी सम्राट बूती ने तुम्हारी जन्म भूमि  हूणो से खाली करवा ली हे ओर चीनी समाज सम्राट चाहते हे कि यूची लोटकर अपनी भूमि सम्हाल ले । लेकिन यूची भली प्रकार जानते थे कि घुमन्तु हूणो को जीतना वेसा ही अचिरस्थायी हे जैसा डेला फेकने पर काई का फटना ।

 यूची बाख्तर के विशाल राज्य के स्वामी हो आनन्द से जीवन बिता रहे थे इसलिये हूणो से झगडा मोल लेने के लिये तेयार नही थे ।

चाडः - क्यान को बदख्शां , पामीर ओर सिडःक्यि।डः होकर लोटना पडा । जहा वह हूणो की पहुच से बाहर नही रह सकता था । उसे फिर उनकी कैद मे रहना पडा ओर बारह वर्ष  ( 138 - 126  ईसापूर्व ) के बाद चीन लोटने का मोका मिल सका ।

115 ईसा पूर्व मे फिर उसे वसूनो के पास भेजा गया , जो इस्सिकुल महा सरोवर के पास त्यानशान मे रहा करते थे । चीन पश्चिम जाने वाले रेशम पथ ( Silk Routes ) को सुरक्षित तोर से अपने पास रखना चाहता था  , इसलिए  चाडः  - क्यान को दूसरी बार भेजा गया था ।
उसने पार्थिया आदि दूसरे देशो मे पता लगाने के लिये अपने दूत भेजे ओर लोटकर उसने चीनी सम्राट को पश्चिमी देशो के बारे मे रिपोर्ट दी ।

" मूल रिपोर्ट प्राप्य नही हे "

लेकिन सूमा- च्याडःने  99  ईसापूर्व मे अपनी पुस्तक  " शी - की " ओर पाडःकी ने 92  ईस्वी मे  " च्यान-शान-शूकी" मे उपयोग किया हे ।

पिछली पुस्तक मे 206  ईसापूर्व  स  24  ईस्वी तक का वर्णन हे । चाडः- क्यान पश्चिम से लोटने के बाद 114   ईसापूर्व मे मर गया । उसके विवरण के जो अंश मिलते हे  , उससे बहुत सी बातो का पता चलता हे । पार्थियन लोग चर्मपत्र पर आडी लाइन मे लिखते थे । फर्गाना से पर्थिया तक शक-भाषा बोली जाती थी ।

इशी- ज्या  ( 127 - 117 ईसापूर्व )
अच्ची( 117- 107  ईसापूर्व )
चान - सी - लू  ( 107  - 104  ईसापूर्व )
शूली- हू  ( 104 - 103  ईसापूर्व )
शू-ती- हू  ( 103 - 68  ईसापूर्व )
हू-लू-हू( 68 -  87  ईसापूर्व )

यह हूणो के 5 वे  शान - यू ( राजा ) के बाद शान -यू  ( राजा )  हुये ।
 जिनका समकालीन हान- वंशी सम्राट बूती ( 140  - 86 ईसापूर्व ) था  ।

 चिन वंश ने हूणो की शक्ति को तोडने के लिये जो प्रयत्न किया था  , समाप्ति  हान  वंश ने की थी ।

सन्दर्भ : 

1 . A Thousand Years of  Tatars : E.  H . Parker, Shanghai - 1895
2. हुन्नू इ गुन्नी : क. इनस्त्रान्त्सेफ,  लेनिनग्राद - 1926
3. Histoire des Huns : Desqugue - Paris : 1756
4. Excavation in Northan Mangolia - C.  Trever - Leiningrad

कुषाण सेनापति शूरवीर शालिवाहन - भाटी वंश के आदिपूर्वज | Origin History of Bhati Dynasty

कुषाण सेनापति शूरवीर शालिवाहन - भाटी वंश के आदिपूर्वज

शूरवीर शालीवाहन | वीर गुर्जर | कुषाण गुर्जर साम्राज्य | कुषाण सेनापति | भारत का इतिहास | भाटी वंश

'शूरवीर शालिवाहन' गुर्जर कसाणा सम्राट कनिष्क महान के महान सेनापति थे, जिन्होने गुर्जर कसाणा साम्राज्य के लिये,सम्राट कनिष्क के साथ मिलकर शक्तिशाली शको (क्षत्रप व महाक्षत्रप)  को हराकर कसाणा गुर्जर साम्राज्य के अधीन किया था.शको को पराजित करने पर सम्राट कनिष्क महान ने अपना राज्याभिषेक किया व शक संवत आरम्भ किया,शालिवाहन के पराक्रम के कारण इसे शालिवाहन शक संवत भी कहा जाता है। अफगानिस्तान व स्वात घाटी में शूरवीर शालिवाहन के वंशज आज भी पाये जाते है. आगे चलकर शूरवीर शालिवाहन के वंशज रिसाल गुर्जर ने पंजाब में रिसालकोट बसाया व कसाणो के अधीन राज किया,बहुत बाद में गुर्जरो के हूण राजवंश के सम्राट व तंवर(तोमर,तुअर) गोत्र के प्रवर्तक गुर्जर सम्राट तोमराण हूण ने स्यालकोट (रिसालकोट) को राजधानी बनाकर भारतीय उपमहादीप के बडे हिस्से पर शासन किया। आगे चलकर इसी वंश में भाटीराव के नाम पर इन्हें भाटी कहा जाने लगा।
कुषाण सेनापति शूरवीर शालिवाहन - भाटी वंश के आदिपूर्वज

सरस्वती - कण्ठाभरण (ग्रन्थ) - राजा भोज परमार | Saraswati Kanthabharan of Gurjar Raja Bhoj Parmar

 सरस्वती - कण्ठाभरण ग्रन्थ : गुर्जर सम्राट भोज परमार 


गुर्जर सम्राट भोज परमार  ( ईस्वी - 1010 ) अपने ग्रन्थ सरस्वती - कण्ठाभरण ग्रन्थ मे  भारत के विभिन्न प्रदेशो मे प्रचलित भाषाओ का उल्लेख करते हे लिखते हे  कि

"" अपभ्रंशेन तुष्यन्ति स्वेन नान्येन गुर्जरा : " 

अर्थात :

गुर्जर अपनी गुर्जरी अपभ्रंश भाषा से ही सन्तुष्ट रहते हे  , वे अन्य भाषा पसन्द नही करते हे ।


गुर्जर सम्राट राजा भोज परमार / Gurjar Samrat Raja Bhoj Parmar

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

महान धनुर्धर प्राचीन हूण गुर्जरो की शासन व्यवस्था का विवरण (ईसापूर्व)

महान धनुर्धर प्राचीन हूण गुर्जरो की शासन व्यवस्था  ( ईसापूर्व )

हूण गुर्जर साम्राज्य । Hun Gurjar | Hoon Gurjar | History | Huna Gurjar 

हूण गुर्जर वीरों की शासन व्यवस्था का विवरण 


1. शान -'यू :

राजा वाची चीनी शब्द शान - यू का हूण भाषा रूप  जैंगी कहा जाता है। शायद इसकी रूपान्तर " चंगीज" हुआ । राजा की पूरी उपाधि थी

" तेंग्री - कुदू - शान - यू " ( दैव पुत्र महान )

आज भी मंगोल ओर तुर्की भाषा मे देवता वाचक ""तेंग्री " शब्द मोजूद है । शान- यू  प्रभावशाली योध्दा ओर नेता होता , लेकिन उसके ऊपर हूण ओर्दू का नियन्त्रण रहता था

2. दूगी :--

इसका अर्थ होता हे धर्मात्मा या न्यासी । शान-यू के नीचे दूगी हुआ करते थे , जिनमे एक को पूर्वी - दूगी ओर दूसरे को पश्चिम - दूगी कहते थे ।

 पूर्वी दूगी का दर्जा ऊॅचा समझा जाता था,  ओर आमतौर से वह युवराज माना जाता था ।
हूण साम्राज्य के पूर्व भाग पर पूर्वी - दूगी का शासन था ओर पश्चिम पर पश्चिमी दूगी का ।

 राज्य के मध्य भाग पर अर्थात हूण - जन क्षैत्र पर स्वयं शान - यू सीधे शासन करता था ।

3. रूक - ले  ( कुनलू ) :----

यह भी दक्षिण ओर उतर दो होते थै , उत्तर का दर्जा ऊॅचा होता था

4 . इनके नीचे उतर ओर दक्षिण के दो सेनापति होते थे
5. इनके नीचे वाम दक्षिण के दो दिवान होते थे । आगे भी दो वाम दक्षिण कुतलू जेसे दस हजारी ओर हजारी तक के चोबीस सेनिक अधिकारी होतै थे । हूण - शासन मे सेनिक- असेनिक अधिकार का भेद नही था  ।

इनके अतिरिक्त हूण - शासको की उपाधि श्रृंगो से समझी जाती थी ,  जो शायद समय - समय पर उनके श्रंगार होते हो  ।

 दोनो दूनी ओर दोनो रूकले चतुःश्रृंग कहे जाते थे ।

उनके नीचे षट -'श्रृंग अधिकारी थे ।
दोनो कुतलू शासन प्रबंध को देखते थे ।

दूगी आदि  24  श्रेष्ठ अधिकारीयो के अपने क्षैत्र थे,  जिनके भीतर ही वह अपने ओर्दू तथा पशुओं को लेकर  विचरण कर सकते थे उनको अपने हजारी,  शतिक ओर दक्षिक आदि अफसरो के नियुक्ति के अधिकार थे ।

शान - यू की रानी की पदवी इन - ची ( येडःची )  थी ।

 हूणो के तीन - चार ऊंचे कुलो मे से उसे  लिया जाता था । शान - यू का अपना कुल भी बहुत सम्मानित समझा जाता था ।
 हूणो की जो श्रैणिया ओर पदवीयां स्थापित की थी ।

वह तुर्को ओर मंगोलो के समय तक मानी जाती रही
हजारी,  पंच हजारी,  दस हजारी दर्जे स्वीकार किये गये थे ।

सन्दर्भ :--
1 . A Thousand Years of  Tatars : E.  H . Parker, Shanghai - 1895
2. हुन्नू इ गुन्नी : क. इनस्त्रान्त्सेफ,  लेनिनग्राद - 1926
3. Histoire des Huns : Desqugue - Paris : 1756

शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

रानी का वाव - गुर्जर चालुक्या / सोलंकी वंश | Rani ka Vav - Gurjar Chalukya / Solanki Dynasty

रानी का वाव (पाटन, गुर्जरदेश) - गुर्जर चालुक्य वंश 

रानी उदयमति गुर्जरानी | गुर्जरानी | चालुक्या वंश | सोलंकी वंश | गुर्जरेश्वर भीमदेव चालुक्य |पाटन गुजरात | गुर्र देश | गुर्जरात्रा | गुर्जराष्ट्र | भारत का मध्यकालीन इतिहास | 
Rani ka vav - Gurjar Solanki Dynasty 


 "रानी का वाव" का निर्माण चालुक्य गुर्जर वंश के शासक की स्मृति में उनकी विधवा रानी उदयमति द्वारा निर्मित, यह शानदार चरण में अच्छी तरह से भारत की ऐतिहासिक चमत्कार के लिए कहा जा रहा है।
जमीन के नीचे आप 27 मीटर कदम लेते हैं, हर कदम पहले खंबों मंडप है जहां आप अपनी समृद्ध मूर्तियां प्रशंसा कर सकते हैं। वहाँ भी एक गुप्त सुरंग (अब कीचड़ और पत्थरों से अवरुद्ध) उस के पास के शहर की ओर जाता है

एक सीढ़ी युक्‍त कुआं, रानी की वाव का निर्माण रानी उदयामती द्वारा अपने पति गुर्जरेश्वर भीमदेव चालुक्या की प्‍यार भरी स्‍मृति में 1063 में कराया गया था।  ज्‍यादा तर सीढ़ी युक्‍त कुओं में सरस्वती नदी के जल के कारण कीचड़ भर गया है।

अभी भी वाव के खंभे अभी तक गुर्जर चालुक्या वंश (सोलंकी वंश) और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाते हैं। वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं। गुर्जर हूण और गुर्जर प्रतिहार की तरह गुर्जर चालुक्या भी वराह उपासक थे। वराह गुर्जरो के राजशाही चिन्ह रहा है। जिसे विष्णु का अवतार कहा जाता है।
हाल ही में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में इसको शामिल किया गया है।

• गुर्जरानी का वाव के अन्य चित्र :

Rani ka vav , Patan, Gujarat | Chalukya / Solanki Dynasty 

Rani ka vav , Patan, Gujarat | Chalukya / Solanki Dynasty

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Rani ka vav , Patan, Gujarat | Chalukya / Solanki Dynasty

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