सोमवार, 11 अप्रैल 2016

गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल प्रतिहार - Gurjar Samrat Mahendrapal Pratihar

Gurjar Samrat Mahendrapal Pratihar - गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल प्रतिहार

• उत्तराधिकार   - 7th गुर्जर प्रतिहार सम्राट
• शासनकाल   -  से 885 - 910 ई.
• पूर्ववर्ती        - गुर्जर सम्राट मिहिरभोज
• उत्तराधिकारी - गुर्जर सम्राट महीपाल

महेन्द्रपाल (885-910) मे गुर्जर-प्रतिहार वंश के एक महान प्रतापी शासक थे और गुर्जर सम्राट मिहिर भोज और रानी चंद्रभट्टा-राकादेवी के पुत्र थे।
महेन्द्रपाल का साम्राज्य हिमालय से विध्यांचल एवं पूर्वी समुद्रीतट से पश्चिमी समुद्रीतट तक फैला था। इनका संरक्षित विद्वान राजशेखर था । राजशेखर ने कर्पूरमंजरी, बालरामायण, काव्यमिमासा, बालमहाभारत, प्रचंड पांडय, विद्धसालभंजिका, हरविलास, भुवनकोप की रचना की थी[1]
 महेन्द्रपाल को काठियावाड़, पंजाब और मध्य प्रदेश में विभिन्न शिलालेख पर उन्हे महेन्द्रपाल, महेन्द्रयुध्द, महीसापालदेव, निर्भयराजा, और निर्भयनरेन्द्र के राजशेखर नामो से भी उल्लेख किया था। [2][3]

रामगया मे कई शिलालेख पाये गए 
• बिहार के गया जिले के दक्षिणी भाग में 
• बिहार के हजारीबाग जिले में 
• पहाडपुर पर बंगाल की राजशाही जिले के उत्तरी भाग में पता चला 'गदाघर मंदिर के सामने गुनेरिया पर इटखोरी पर गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल के शासनकाल का वर्णन करते है।

यहां तक ​​कि उत्तरी बंगाल के लिए ऊपर मगध का बड़ा हिस्सा सम्राट महेन्द्रपाल के आधिपत्य के तहत आया था [4]

उत्तर में महेन्द्रपाल ने अपने राज अधिकार को हिमालय की तलहटी तक बढ़ाय। और ग्वालियर अपने नियंत्रण में भी किया गया था।  Siyadoni शिलालेख पर महेन्द्रपाल के 903 और 907 ई. के शासन का उल्लेख मिलता है । में सत्तारूढ़ संप्रभु .. उल्लेख इस प्रकार है, 
कि उसने अपने पिता मिहिर भोज के साम्राज्य बरकरार रखा और बंगाल के पालो को हराकर जीते हुए भाग अपने साम्राज्य मे जोड़ा जाता है। [6]
• दिनाजपुर मे 'सम्राट महेन्द्रपाल' का एक शिलालेख स्तंभ पाया गया है। नदी Srimati के तट पर एक समृद्ध गांव "प्रतिराजपुर" कहा जाता है। [7]

• संदर्भ :
1. सामान्य अघ्यन मध्यकालिन भारत का इतिहास, पेज ८
2.^ Rama Shankar Tripathi (1989). History of Kanauj: To the Moslem Conquest. Motilal Banarsidass Publ. p. 248. ISBN 812080404XISBN 978-81-208-0404-3
3.^ Radhey Shyam Chaurasia (2002). History of Ancient India: Earliest Times to 1000 A. D. Atlantic Publishers & Distributors. p. 208. ISBN 81-269-0027-X,ISBN 978-81-269-0027-5
4. ^ Sen, S.N., 2013, A Textbook of Medieval Indian History, Delhi: Primus Books, ISBN 9789380607344
5. ^ Rama Shankar Tripathi (1989). History of Kanauj: To the Moslem Conquest

6. Motilal Banarsidass Publ. pp. 248–254. ISBN 812080404XISBN 978-81-208-0404-3
7. ^ The Archaeological report of dinajpur.

गुर्जर सम्राट मिहीर भोज - भारत का महान शासक

गुर्जर सम्राट मिहिर भोज महान

गुर्जर सम्राट | मिहिर भोज | गुर्जर प्रतिहार राजवंश । आदिवराह । भारत का महान शासक । गुर्जर प्रतिहार

Gurjar Samrat Mihir Bhoj Mahaan 


 • उत्तराधिकार   - 6th गुर्जर प्रतिहार सम्राट
• शासनकाल   -  से 836 - 885 ई.
• पूर्ववर्ती        - रामभद्र गुर्जर प्रतिहार
• उत्तराधिकारी - गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल 
• अन्य नाम - गुर्जरेश्वर, भारत की घरती का संरक्षक, भोज महान

गुर्जर सम्राट मिहिरभोज भारत के महानतम  सम्राटों मे से जाने जाते हैंI  इन्होने  लगभग  पचास सालो तक  इस देश को  सुशासन  दिया    देश की विदेशियो से  रक्षा की  लेकिन अफसोस की बात है कि इतने बड़े महान सम्राट का नाम भी बहुत सारे भारतीय लोगों को मालूम नही हैं  सम्राट मिहिर भोज का जन्म सम्राट रामभद्र के पुत्र थे

Gurjar Samrat Mihir Bhoj - Animated 
Gurjar Samrat Mihir Bhoj - Bateshwar Temple


गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के बारे में इतिहास की पुस्तकों के अलावा बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल तक राज किया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल में गुर्जरपुर तक अौर कश्मीर से कर्नाटक तक था। मिहिर भोज के

साम्राज्य को तत्कालीन समय में गुर्जर देश के नाम से जाना जाता था। सम्राट मिहिर भोज बलवान, न्यायप्रिय और धर्म रक्षक सम्राट थे। मिहिर भोज शिव शक्ति के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है। गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष 
के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। 
Gurjar Samrat Mihir Bhoj
मिहिर भोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था। उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की। 50 वर्ष तक राज करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्र पाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। गुर्जर सम्राट मिहिर भोज का सिक्का जो गुर्जर देश की मुद्रा था उसको गुर्जर सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को गुर्जर देश की राजधानी बनाने पर चलाया था। 

मिहिर भोज के सिक्के

गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णू के अवतार के तौर पर 
जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी। गुर्जर सम्राट मिहिर भोज का नाम आदि वाराह भी है। ऐसा होने के पीछे दो कारण हैं 
1. जिस प्रकार वाराह भगवान ने पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार मिहिर भोज ने मलेच्छों को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की।
2.  दूसरा कारण, गुर्जर सम्राट का जन्म वाराह जयंती को हुआ था जोकि भादों महीने की शुक्ल पक्ष के द्वितीय दोज को होती है। सनातन धर्म के अनुसार इस दिन चंद्रमा का दर्शन करना बहुत शुभ फलदायक माना जाता है। इस दिन के 2 दिन बाद महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का उत्सव प्रारंभ हो जाता है। जिन स्थानों पर सम्राट मिहिर भोज के जन्मदिवस का पता है वे इस वाराह जयंती को बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

मिहिर भोज के सिक्के पर भगवान विश्णु का वराह अवतार

• अरब यात्रियों ने किया सम्राट मिहिर भोज का यशोगान
अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में लिखी जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के बारे में लिखता है
कि गुर्जर सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह
भी लिखा है कि भारत में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रू नहीं था । मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। ये भी कहा जाता है कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी।

गुर्जर देश भारतवर्ष का सबसे सुरक्षित क्षेत्र था । इसमें डाकू और चोरों का डर भी नहीं था । मिहिर भोज राज्य की सीमाएं दक्षिण में राजकूटों के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती है। शत्रू उनकी क्रोध अग्नि मे आने के उपरांत ठहर नहीं पाते थे। धर्मात्मा,
साहित्यकार व विद्वान उनकी सभा में सम्मान पाते थे। उनके

दरबार में राजशेखर कवि ने कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की। कश्मीर के राज्य कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक राज तरंगणी मेंगुर्जराधिराज मिहिर भोज का उल्लेख किया है। उनका विशाल
साम्राज्य बहुत से राज्य मंडलों आदि आदि में विभक्त था। उन पर
अंकुश रखने के लिए दंडनायक स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किए जाते थे। योग्य सामंतों के सुशासन के कारण समस्त साम्राज्य में



पूर्ण शांति व्याप्त थी। सामंतों पर सम्राट का दंडनायकों द्वारा पूर्ण नियंत्रण था। किसी की आज्ञा का उल्लंघन करने व सिर उठानेकी हिम्मत नहीं होती थी। उसके पूर्वज सम्राट नागभट्ट

प्रथम ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और गुर्जर साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास
का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।

 मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और  कश्मीर से कर्नाटक तक था। सिंहासन पर बैठते ही भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। भोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे सम्राट भोज, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है।


सुलेमान तवारीखे अरब में लिखा है, कि गुर्जर सम्राट अरब लोगों का सभी अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक घोर शत्रु है। सुलेमान आगे यह भी लिखता है कि हिन्दोस्ता की सुगठित और विशालतम सेना भोज की थी-इसमें आठ लाख  से  ज्यादा पैदल  सेना   हजारों हाथी, हजारों घोड़े और हजारों रथ थे। भोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिर भोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी। मिहिर भोज ने बिहार समेत सारा क्षेत्र कन्नौज में मिला लिया। भोज को पूर्व में उलझा देख पश्चिम भारत में पुनः उपद्रव और षड्यंत्र शुरू हो गये। इस अव्यवस्था का लाभ अरब डकैतों ने उठाया और वे सिंध पार पंजाब तक लूट पाट करने लगे। भोज ने अब इस ओर प्रयाण किया। उसने सबसे पहले पंजाब के उत्तरी भाग पर राज कर रहे थक्कियक को पराजित किया, उसका राज्य और 2000 घोड़े छीन लिए। इसके बाद गूजरावाला के विश्वासघाती सुल्तान अलखान को बंदी बनाया- उसके संरक्षण में पल रहे 3000 तुर्की और अरबी डाकुओं को बंदी बनाकर खूंखार और हत्या के लिए अपराधी पाये गए पिशाचों को मृत्यु दण्ड दे दिया।

जिस प्रकार भगवान विष्णु ने वाराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष आदि दुष्ट राक्षसों से पृथ्वी का उद्धार किया था, उसी प्रकार विष्णु के वंशज मिहिर भोज ने देशी आतताइयों, यवन तथा तुर्क राक्षसों को मार भगाया और भारत भूमि का संरक्षण किया- उसे इसीलिए युग ने आदि वाराह महाराजाधिराज की उपाधि से विभूषित किया था। वस्तुतः गुर्जर सम्राट मिहिरभोज सिर्फ गुर्जर प्रतिहार वंश का ही नहीं वरन  हर्षवर्धन के बाद और भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना के पूर्व पूरे गुर्जर प्रतिहार काल का सर्वाधिक प्रतिभाशाली सम्राट और चमकदार सितारा था। सुलेमान ने लिखा है-इस राजा के पास बहुत बडी सेना है और किसी दूसरे राजा के पास वैसी घुड़सवार सेना नहीं है। भारतवर्ष के राजाओं में उससे बढ़कर अरबों का कोई शत्रु नहीं है। उसके आदिवाराह विरूद्ध से ही प्रतीत होता है कि वाराहवतार की मातृभूमि को अरबों से मुक्त कराना अपना कर्तव्य समझता था  

 अपनी महान राजनीतिक तथा सैनिक योजनाओं से उसने सदैव इस साम्राज्य की रक्षा की। गुर्जर सम्राट का शासनकाल पूरे मध्य युग में अद्धितीय माना जाता है। इस अवधि में देश का चतुर्मुखी विकास हुआ। साहित्य सृजन, शांति व्यवस्था स्थापत्य, शिल्प, व्यापार और शासन प्रबंध की दृष्टि से यह श्रेष्ठतम माना गया है। भयानक युद्धों के बीच किसान मस्ती से अपना खेत जोतता था, और वणिक अपनी विपणन मात्रा पर निश्चिंत चला जाता था। मिहिर भोज को गणतंत्र शासन पद्धति का जनक भी माना जाता है, उसने अपने साम्राज्य को आठ गणराज्यों में विभक्त कर दिया था। प्रत्येक राज्य का अधिपति राजा कहलाता था, जिसे आज के मुख्यमंत्री की तरह आंतरिक शासन व्यवस्था में पूरा अधिकार था। परिषद का प्रधान सम्राट होता था और शेष राजा मंत्री के रूप में कार्य करते थे। वह जितना वीर था, उतना ही दयाल भी था, घोर अपराध करने वालों को भी उसने कभी मृत्यदण्ड नहीं दिया, किन्तु दस्युओं, डकैतों, इराकी,मंगोलो , तुर्कों अरबों, का देश का शत्रु मानने की उसकी धारणा स्पष्ट थी और इन्हे क्षमा करने की भूल कभी नहीं की और न ही इन्हें देश में घुसने ही दिया। उसने मध्य भारत को जहां चंबल के डाकुओं से मुक्त कराया, वही उत्तर, पश्चिमी भारत को विदेशियों से मुक्त कराया। सच्चाई यही है कि जब तक परिहार साम्राज्य मजबूत  रहा, देश की स्



    Mihir Bhoj Sculpture, Near Teli Mandir, Gwalior Fort

रविवार, 10 अप्रैल 2016

गुर्जर सम्राट रामभद्र प्रतिहार - Gurjar Samrat Rambhadra Pratihar


गुर्जर सम्राट रामभद्र प्रतिहार - Gurjar Samrat Rambhadra Pratihar

गुर्जर सम्राट रामभद्र प्रतिहार
• उत्तराधिकार   - 5वां गुर्जर प्रतिहार सम्राट
• शासनकाल   - ८३३ से ८३६ ई.
• पूर्ववर्ती        - नागभट द्वितीय
• उत्तराधिकारी - गुर्जर सम्राट मिहिर भोज

'रामभद्र' गुर्जर प्रतिहार वंश के पांचवे सम्राट थे। रामभद्र नागभट नागभट (द्वितीय) के पुत्र थे । जैन प्रभावक्रिता के अनुसार, गुर्जर सम्राट नागभट द्वितीय रामभद्र द्वारा सफल हो गया था, रामभद्र को राम और रामदेवा के नाम से भी जाना जाता था । उनकी माता का नाम इस्तादेवी था।  रामभद्र का तीन साल का एक संक्षिप्त शासनकाल था। उन्हे अपने शासनकाल मे कई युघ्द जीते और बाहरी आक्रमणो से देश की रक्षा की । उनके दौरान कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। एक ग्वालियर शिलालेख के अनुसार यह जाना जाता है कि रामभद्र ने अपना साम्राज्य ग्वालियर कि ओर बढ़ाया था। 
रामभद्र के बाद उनका पुत्र 'मिहिर भोज' गुर्जर प्रतिहार वंश का उत्तराघिकारी बना और 50 साल तक शासन किया। मिहिर भोज गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की शक्ति को सुदृढ बनाया और और भारत के इतिहास मे एक गौरवमय अध्याय जोडा। 

Gurjar Samrat Nagbhat II (नागभट द्वित्तीय)

Nagabhata II

• उत्तराधिकार = 3rd गुर्जर प्रतिहार शासक
• राज           = 810 - 833 ई०
• पूर्वज         = गुर्जर सम्राट वत्सराज प्रतिहार 
• वारिस        = गुर्जर सम्राट रामभद्र प्रतिहार
• वंश           = गुर्जर प्रतिहार राजवंश

नागभट्ट द्वितीय (795 से 833 ई.), वत्सराज का पुत्र एवं उसका उत्तराधिकारी था।
वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. के लगभग गंगा की घाटी पर हमला किया, और कन्नौज पर अधिकार कर लिया। वहाँ के राजा को गद्दी से उतार दिया और वह अपनी राजधानी कन्नौज ले आया। 
उसने गुर्जर प्रतिहार वंश की प्रतिष्ठा को बहुत आगे बढ़ाया।
ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने कन्नौज से चक्रायुध को भगाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
नागभट्ट द्वितीय ने सम्राट की हैसियत से 'परभट्टारक', 'महाराजाधिराज' तथा 'परमेश्वर' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।मुंगेर के नजदीक उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया था, परन्तु उसे राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय से हार खानी पड़ी।
ग्वालियर अभिलेखों में नागभट्ट द्वितीय को 'तुरुष्क', 'किरात', 'मत्स्य', 'वत्स' का विजेता कहा गया है।
चन्द्रप्रभास कृत 'प्रभावकचरित' से जानकारी मिलती है कि, नागभट्ट द्वितीय ने पवित्र गंगा नदी में जल समाधि के द्वारा अपना प्राण त्याग किया।
नागभट्ट द्वितीय के बाद कुछ समय (833 से 836 ई.) के लिए उसका पुत्र रामभद्र गद्दी पर बैठा।
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उसने गुर्जर प्रतिहार वंश की प्रतिष्ठा को बहुत आगे बढ़ाया।
ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने कन्नौज से चक्रायुध को भगाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
नागभट्ट द्वितीय ने सम्राट की हैसियत से 'परभट्टारक', 'महाराजाधिराज' तथा 'परमेश्वर' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।मुंगेर के नजदीक उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया था, परन्तु उसे राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय से हार खानी पड़ी।
ग्वालियर अभिलेखों में नागभट्ट द्वितीय को 'तुरुष्क', 'किरात', 'मत्स्य', 'वत्स' का विजेता कहा गया है।
चन्द्रप्रभास कृत 'प्रभावकचरित' से जानकारी मिलती है कि, नागभट्ट द्वितीय ने पवित्र गंगा नदी में जल समाधि के द्वारा अपना प्राण त्याग किया।
नागभट्ट द्वितीय के बाद कुछ समय (833 से 836 ई.) के लिए उसका पुत्र रामभद्र गद्दी पर बैठा।

गुर्जर सम्राट वत्सराज प्रतिहार - Gurjar Samrat Vatsraj Pratihar

Gurjar Samrat Vatsraj Pratihar 

वत्सराज सम्राट की उपाधी धारण करने वाला गुर्जर प्रतिहार वंश का पहला शासक था। इसे प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।

नागभट्ट प्रथम के दो भतीजे 'कक्कुक' एवं 'देवराज' के शासन के बाद 'देवराज' का पुत्र वत्सराज (775 - 810ई.) गद्दी पर बैठा।
वत्सराज के समय में ही कन्नौज के स्वामित्व के लिए त्रिदलीय संघर्ष आरम्भ हुआ।
उसने राजस्थान के मध्य भाग एवं उत्तर भारत के पूर्वी भाग को जीत कर अपने राज्य में मिलाया।
उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को भी पराजित किया,

जोधपुर से 65 किलोमीटर दूर औसियाँ जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
इन मंदिरों का निर्माण गुर्जर-प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया।
गुर्जर शासक वत्सराज (778-794 ईस्वी) के समय निर्मित महावीर स्वामी का मंदिर स्थापत्य का उत्कृष्ट नमूना है, इसके अतिरिक्त सच्चिया माता का मंदिर, सूर्य मंदिर, हरीहर मंदिर इत्यादि गुर्जर-प्रतिहारकालीन स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं!
ये मंदिर महामारू अर्थात गुर्जर शैली में निर्मित है!

उत्तर भारत में वर्धनवंश के पतन के बाद उत्तर भारत पर एकक्षत्र शासक गुर्जर प्रतिहार थे।
नागभट्ट नाम के एक गुर्जर नवयुवक ने इस नये गुर्जर साम्राज्य की नींव रखी। संभव है कि ये भडौच के गुर्जर प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र ।
पूरे उत्तर भारत में छोटे छोटे राज्य थे जो किसी भी बाह्य आक्रमण को विफल करने में पंगु बने हुए थे।

भडौच के गुर्जर प्रतिहार, वल्लभी के गुर्जर मैत्रक, वातापी के गुर्जर चालुक्य, भीनमाल के चपराणे,चित्तौड के मोरी गुर्जर,अजमेर के चेची व फिर चौहान, भटनेर के भाटी, बयाना के भडाणा, दिल्ली के तंवर,जालौर के प्रतिहार, वेंगी के चालुक्य ये सब गुर्जरो की शाखाए केवल गुर्जरत्रा तक सीमित थी। इन सबमें केवल बादामी के चालुक्य साम्राज्य के स्वामी थे।
वह काल विश्व इतिहास में उथल पुथल का था, संस्कृति व सभ्यताओ पर अतिक्रमण का था।
अरब से उठने वाली इस्लामिक लपटो ने बहुत सी संस्कृतियो व सभ्यताओ को निगल कर उन स्थानो को इस्लामिक रंग में रंग दिया था। यह सब ज्यादातर तलवार व भय के बल पर हो रहा था। जो काम इसाइयो ने सदियो पहले यूरोप में किया था वहीं काम एशिया में अरब के खलीफा कर रहे थे।
अरब ने ईरान की विश्वप्रसिद्ध सभ्यता का खात्मा करके नया ईरान गढ दिया था, वहाँ के कुछेक पारसियो ने पलायन करके भारत में शरणागत होकर अपनी बेहद प्राचीन संस्कृति को लुप्त होने से बचा लिया।
इराक की महान सभ्यता अब इस्लामिक संस्कृति का केन्द्र बन गयी थी।
मिस्त्र की सभ्यता अब बदल गयी थी, तुर्की कबीले इस्लाम के नये सिपाहसलार थे, कुवैत,लीबिया पूरा का पूरा मध्य एशिया इस्लामिक संस्कृति में रंगता जा रहा था व अरब के खलीफा एक नये साम्राज्य के मालिक बन गये थे जो जिधर को रूख करता वहाँ की प्राचीन सभ्यता व विरासत को नष्ट करके नया रंगरूप दे देते।
बर्बरता,नरसंहार,बलात्कार,मारकाट,हाहाकार ये सब ही दिखाई देता था एशिया महाद्वीप में।
जो भी इस्लाम स्वीकारता वहीं एक नया युद्ध छेड देता किसी अन्य देश के खिलाफ जैसे कि तुर्की, मंगोल व अफगानिस्तान उदाहरण हैं।
खलीफाओ ने अरबी साम्राज्य को बेहद बडा व मजबूक बनाने के बाद आखिरकार भारत की ओर रूख किया। अरबी साम्राज्य बहुत ही बडा व संसाधनो से परिपूर्ण हो गया था। कई देश इसके अन्दर थे। अरबी सैनिको की वेशभूषा अस्त्र शस्त्रो से लैस थी वे हर प्रकार के हथियारो से शत्रु पर आक्रमण करते थे। लाखो की संख्या में सैनिक, बहुत से सैनिक दल, हजारो घुडसवार सब तरह की सैन्य शक्तियाँ अरबो के पास थी। यूरोप भी घुटने टेक रहा था तुर्की सैन्यदल के सामनेे। सब का लक्ष्य एक ही था।
भारत सदा से ही एक उत्सुकता का केन्द्र व पहेली की तरह रहा है जिसे हर कोई जानना समझना चाहता है।
अरबी यौद्धा किसी भी प्रकार से भारत को जीतना चाहते थे व बुतपरस्ती को खत्म करके इस्लामिक देश बनाना चाहते थे।
भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है जहाँ राजस्थान व गुजरात व दूर चलकर पंजाब है। गुजरात व राजस्थान को तब गुर्जरत्रा यानी गुर्जरदेश कहा जाता था जिसकी रक्षा का दायित्व वीर गुर्जरो पर था। ये इन्हीं की भूमि कही जाती थी।
अरबो की विशाल आँधी के सामने कुछ हजार वीर गुर्जर अपने रणनृत्य का प्रदर्शन करते हुए भिडे जिसे इतिहास राजस्थान के युद्ध जोकि गुर्जरो व अरबो के बीच हुए के नाम से जानता है। ये एक दो युद्ध नहीं बल्कि युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक वीर गुर्जरो व अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। जिसमें गुर्जरो ने अभूतपूर्व साहस व पराक्रम दिखाते हुए अरबो को बाहर खदेडा ।
भारत की हजारो साल से बनने वाली सभ्यता व संस्कृति को अरबो द्वारा होने वाली हानि से गुर्जरो ने बचाया व लगभग साढे तीन सौ सालो तर गुर्जर भारत के रक्षक व प्रहरी बने रहे ।
प्रतिहार यानी द्वारपाल।
इन आरम्भिक युद्धो में वीर गुर्जरो का नेतृत्व गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रतिहार प्रथम ने किया । नागभट्ट के नेतृत्व में चित्तौड के मोरी गुर्जर, बादामी के चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य गुर्जर, चौहाण,भडाणा, मैत्रक सबने अरबो को बुरी तरह हर बार पराजित किया।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने अरबी आक्रमण से होने वाली उथल पुथल व अस्त व्यस्तता का अवसर उठाते हुए बहुत से राज्यो को अपने अधीन करके गुर्जर साम्राज्य की स्थापना की।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने उज्जैन को नयी राजधानी बनाया। नागभट्ट ने भारतीय संस्कृति व सभ्यता के लिये जो किया वह अतुलनीय है। इसीलिये इन्हें राष्ट्रनायक की उपाधि से विभूषित किया जाता है।
राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर यह कथन उन्हीं के कारण चरितार्थ हुआ।
इसी समय गुर्जरो ने एक नये युद्धनृत्य की रचना की जिसे गुर्जर रणनृत्य कहा जाता है। गुर्जरो के संख्या बल में कम होने के कारण व शत्रुओ की विशाल सेना से भिडने से पूर्व यह नृत्य किया जाता था जिससे शत्रु को भ्रम होता था कि गुर्जर सेना बहुत अधिक है।
गुर्जर रणनृत्य कला पर आज भी रिसर्च जारी है!
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने के कारण ही गुर्जरों को वीर गुर्जर कहा जाता है!
अरबों को सफलकापूर्वक परास्त करने के कारण ही गुर्जरों को "राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर" कहा गया है!
बाद में गुर्जर प्रतिहार वंश में कई बेहद प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए जैसे कि गुर्जर सम्राट वत्सराज, गुर्जर सम्राट नागभट्ट द्वितीय, आदिवराह गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान, गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल, गुर्जर सम्राट महिपाल प्रथम आदि।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट का नाम सदा भारतीय संस्कृति संरक्षण के लिये याद किया जाता रहा रहेगा।
वे भारतीय इतिहास के महान यौद्धा।

Gurjar Samrat - Kakkuka and Devraj


Gurjar Samrat Kakuka & Devraj
• उत्तराधिकार = 2nd गुर्जर प्रतिहार शासक
• राज           = 760 - 780 ई०
• पूर्वज         = गुर्जर सम्राट नागभट प्रतिहार
• वारिस        = गुर्जर सम्राट वत्सराज प्रतिहार
• वंश           = गुर्जर प्रतिहार राजवंश

ककुष्ठा और देवराज गुर्जर प्रतिहार वंश के दुसरे शासक थे और गुर्जर सम्राट नागभट के भतीजे थे। ककुष्ठा को ककुका भी कहा जाता है। देवराज गुर्जर प्रतिहार इनके छोटे भाई थे। अपने शासन काल मे इन दोनो ने बाहरी आक्रमणो को सफल नही होने दिया। देवराज की शादी भूईकादेवी गुर्जरी से हुई। 783 ई० मे देवराज के पुत्र और उत्तराधिकारी वत्सराज का जन्म हुआ।
गुर्जर सम्राट वत्सराज भीनमाल प्रतिहार वंष का वास्तिवक संस्थापक था। वत्सराज को रणहस्तिन की उपाधि प्राप्त थी। वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया। औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसके समय उद्योतन सूरी ने "कुवलयमाला" की रचना 778 में जालौर में की। औसियां के मंदिर गुर्जर मरू शैली में बने है।  औसियां का हरिहर मंदिर मरू गुर्जरशैली में बना है।

- औसियां राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था।
- औसिंया (जोधपुर)के मंदिर गुर्जर कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेष्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- जिनसेन ने "हरिवंश पुराण " की रचना की।
वत्सराज ने त्रिपक्षिय संर्घष की शुरूआत की तथा वत्सराज राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से पराजित हुआ।

त्रिपक्षिय/त्रिराष्ट्रीय संर्घष
कन्नौज को लेकर उत्तर भारत के गुर्जर, पूर्व में बंगाल का पाल वंश तथा दक्षिणी भारत का राष्ट्रकूट वंश के बीच 100 वर्षो तक के चले संघर्ष को रिपक्षिय/त्रिराष्ट्रीय संर्घष कहा गया।

गुर्जर सम्राट नागभट प्रतिहार - Gurjar Samrat Nagbhat Pratihar

गुर्जर सम्राट नागभट प्रतिहार


Gurjar Samrat Nagbhat Pratihar


नागभट्ट प्रथम गुर्जर प्रतिहार वंश का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष था। इसे 'हरिशचन्द्र' के नाम से भी जाना जाता था।गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना नागभट्ट नामक ने 725 ई. में की थी। उसने राम के भाई लक्ष्मण को अपना पूर्वज बताते हुए अपने वंश को सूर्यवंश की शाखा सिद्ध किया। अधिकतर गुर्जर सूर्यवंश का होना सिद्द करते है तथा गुर्जरो के शिलालेखो पर अंकित सूर्यदेव की कलाकृर्तिया भी इनके सूर्यवंशी होने की पुष्टि करती है।आज भी राजस्थान में गुर्जर सम्मान से मिहिर कहे जाते हैं, जिसका अर्थ सूर्यहोता है।

हरिशचन्द्र की दो पत्नियाँ थीं
माना जाता है कि, पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र 'माला' पर शासन कर रहा था तथा दुसरी पत्नी से उत्पन्न पुत्र जोधपुर पर शासन कर रहा था।
किन्तु इस वंश का वास्तविक महत्त्वपूर्ण राजा नागभट्ट प्रथम (730 - 760 ई.) था।
उसके विषय में ग्वालियर अभिलेख से जानकारी मिलती है, जिसके अनुसर उसने अरबों को सिंध से आगे नहीं बढ़ने दिया।
इसी अभिलेख में बताया गया है कि, वह नारायण रूप में लोगों की रक्षा के लिए उपस्थित हुआ था तथा उसे मलेच्छों का नाशक बताया गया है।
नागभट्ट प्रथम के दो भतीजे 'कक्कुक' एवं 'देवराज' के शासन के बाद 'देवराज' का पुत्र वत्सराज (783 - 795 ई.) गद्दी पर बैठा।

• त्रिपक्षीय संघर्ष:- 8 वीं से 10 वीं सदी के मध्य लगभग 200 वर्षो तक पष्चिम के प्रतिहार पूर्व के पाल और दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट वंष ने कन्नौज की प्राप्ति के लिए जो संघर्ष किया उसे ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा जाता है।





Gurjar Pratihar Rajvansh - गुर्जर प्रतिहार राजवंश




गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य और उसके प्रतापी सम्राट
उत्तर भारत में वर्धनवंश के पतन के बाद उत्तर भारत पर एकक्षत्र शासक गुर्जर प्रतिहार थे।
नागभट्ट नाम के एक गुर्जर नवयुवक ने इस नये गुर्जर साम्राज्य की नींव रखी। संभव है कि ये भडौच के गुर्जर प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र ।
पूरे उत्तर भारत में छोटे छोटे राज्य थे जो किसी भी बाह्य आक्रमण को विफल करने में पंगु बने हुए थे।

भडौच के गुर्जर प्रतिहार, वल्लभी के गुर्जर मैत्रक, वातापी के गुर्जर चालुक्य, भीनमाल के चपराणे,चित्तौड के मोरी गुर्जर,अजमेर के चेची व फिर चौहान, भटनेर के भाटी, बयाना के भडाणा, दिल्ली के तंवर,जालौर के प्रतिहार, वेंगी के चालुक्य ये सब गुर्जरो की शाखाए केवल गुर्जरत्रा तक सीमित थी। इन सबमें केवल बादामी के चालुक्य साम्राज्य के स्वामी थे। 
वह काल विश्व इतिहास में उथल पुथल का था, संस्कृति व सभ्यताओ पर अतिक्रमण का था।
अरब से उठने वाली इस्लामिक लपटो ने बहुत सी संस्कृतियो व सभ्यताओ को निगल कर उन स्थानो को इस्लामिक रंग में रंग दिया था। यह सब ज्यादातर तलवार व भय के बल पर हो रहा था। जो काम इसाइयो ने सदियो पहले यूरोप में किया था वहीं काम एशिया में अरब के खलीफा कर रहे थे।
अरब ने ईरान की विश्वप्रसिद्ध सभ्यता का खात्मा करके नया ईरान गढ दिया था, वहाँ के कुछेक पारसियो ने पलायन करके भारत में शरणागत होकर अपनी बेहद प्राचीन संस्कृति को लुप्त होने से बचा लिया।
इराक की महान सभ्यता अब इस्लामिक संस्कृति का केन्द्र बन गयी थी।
मिस्त्र की सभ्यता अब बदल गयी थी, तुर्की कबीले इस्लाम के नये सिपाहसलार थे, कुवैत,लीबिया पूरा का पूरा मध्य एशिया इस्लामिक संस्कृति में रंगता जा रहा था व अरब के खलीफा एक नये साम्राज्य के मालिक बन गये थे जो जिधर को रूख करता वहाँ की प्राचीन सभ्यता व विरासत को नष्ट करके नया रंगरूप दे देते।
बर्बरता,नरसंहार,बलात्कार,मारकाट,हाहाकार ये सब ही दिखाई देता था एशिया महाद्वीप में।
जो भी इस्लाम स्वीकारता वहीं एक नया युद्ध छेड देता किसी अन्य देश के खिलाफ जैसे कि तुर्की, मंगोल व अफगानिस्तान उदाहरण हैं।
खलीफाओ ने अरबी साम्राज्य को बेहद बडा व मजबूक बनाने के बाद आखिरकार भारत की ओर रूख किया। अरबी साम्राज्य बहुत ही बडा व संसाधनो से परिपूर्ण हो गया था। कई देश इसके अन्दर थे। अरबी सैनिको की वेशभूषा अस्त्र शस्त्रो से लैस थी वे हर प्रकार के हथियारो से शत्रु पर आक्रमण करते थे। लाखो की संख्या में सैनिक, बहुत से सैनिक दल, हजारो घुडसवार सब तरह की सैन्य शक्तियाँ अरबो के पास थी। यूरोप भी घुटने टेक रहा था तुर्की सैन्यदल के सामनेे। सब का लक्ष्य एक ही था।
भारत सदा से ही एक उत्सुकता का केन्द्र व पहेली की तरह रहा है जिसे हर कोई जानना समझना चाहता है।
अरबी यौद्धा किसी भी प्रकार से भारत को जीतना चाहते थे व बुतपरस्ती को खत्म करके इस्लामिक देश बनाना चाहते थे।
भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है जहाँ राजस्थान व गुजरात व दूर चलकर पंजाब है। गुजरात व राजस्थान को तब गुर्जरत्रा यानी गुर्जरदेश कहा जाता था जिसकी रक्षा का दायित्व वीर गुर्जरो पर था। ये इन्हीं की भूमि कही जाती थी।
अरबो की विशाल आँधी के सामने कुछ हजार वीर गुर्जर अपने रणनृत्य का प्रदर्शन करते हुए भिडे जिसे इतिहास राजस्थान के युद्ध जोकि गुर्जरो व अरबो के बीच हुए के नाम से जानता है। ये एक दो युद्ध नहीं बल्कि युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक वीर गुर्जरो व अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। जिसमें गुर्जरो ने अभूतपूर्व साहस व पराक्रम दिखाते हुए अरबो को बाहर खदेडा ।
भारत की हजारो साल से बनने वाली सभ्यता व संस्कृति को अरबो द्वारा होने वाली हानि से गुर्जरो ने बचाया व लगभग साढे तीन सौ सालो तर गुर्जर भारत के रक्षक व प्रहरी बने रहे ।
प्रतिहार यानी द्वारपाल।
इन आरम्भिक युद्धो में वीर गुर्जरो का नेतृत्व गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रतिहार प्रथम ने किया । नागभट्ट के नेतृत्व में चित्तौड के मोरी गुर्जर, बादामी के चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य गुर्जर, चौहाण,भडाणा, मैत्रक सबने अरबो को बुरी तरह हर बार पराजित किया।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने अरबी आक्रमण से होने वाली उथल पुथल व अस्त व्यस्तता का अवसर उठाते हुए बहुत से राज्यो को अपने अधीन करके गुर्जर साम्राज्य की स्थापना की।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने उज्जैन को नयी राजधानी बनाया। नागभट्ट ने भारतीय संस्कृति व सभ्यता के लिये जो किया वह अतुलनीय है। इसीलिये इन्हें राष्ट्रनायक की उपाधि से विभूषित किया जाता है।
राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर यह कथन उन्हीं के कारण चरितार्थ हुआ।
इसी समय गुर्जरो ने एक नये युद्धनृत्य की रचना की जिसे गुर्जर रणनृत्य कहा जाता है। गुर्जरो के संख्या बल में कम होने के कारण व शत्रुओ की विशाल सेना से भिडने से पूर्व यह नृत्य किया जाता था जिससे शत्रु को भ्रम होता था कि गुर्जर सेना बहुत अधिक है।
गुर्जर रणनृत्य कला पर आज भी रिसर्च जारी है!
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने के कारण ही गुर्जरों को वीर गुर्जर कहा जाता है!
अरबों को सफलकापूर्वक परास्त करने के कारण ही गुर्जरों को "राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर" कहा गया है!
बाद में गुर्जर प्रतिहार वंश में कई बेहद प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए जैसे कि गुर्जर सम्राट वत्सराज, गुर्जर सम्राट नागभट्ट द्वितीय, आदिवराह गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान, गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल, गुर्जर सम्राट महिपाल प्रथम आदि।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट का नाम सदा भारतीय संस्कृति संरक्षण के लिये याद किया जाता रहा रहेगा।
वे भारतीय इतिहास के महान यौद्धा

** गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य|  **

राजवंश - गुर्जर प्रतिहार वंश
वंश - सूर्यवंशी गुर्जर।

यूँ तो गुर्जर प्रतिहारो की उत्पत्ति पर कई सारे मत है,किन्तु उनमे से अधिकतर कपोल कल्पनाओं के अलावा कुछ नहीं है। प्राचीन साहित्यों में प्रतिहार का अर्थ "द्वारपाल" मिलता है। अर्थात यह वंश विश्व के मुकुटमणि भारत के पश्चिमी द्वारा अथवा सीमा पर शासन करने के चलते ही प्रतिहार कहलाया।

अब गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के बारे में जो भ्रांतियाँ है उनका निराकारण करते है। एक मान्यता यह है की ये वंश अबू पर्वत पर हुए यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुआ है,जो सरासर कपोल कल्पना है। हो सकता है अबू पर हुए यज्ञ में इस वंश की हाजिरी के कारण इस वंश के साथ साथ अग्निवंश की कथा रूढ़ हो गई हो। खैर अग्निवंश की मान्यता कल्पना के अलावा कुछ नहीं हो सकती और ऐसी कल्पित मान्यताये इतिहास में महत्त्व नहीं रखती।

अधिकांश  इतिहासकार,अग्निवंश के कुलो को गुर्जर मूल का होना स्वीकारते हैं ,यह प्रमाणित हो चुका है। इस वंश की उत्पत्ति के संबंध में प्राचीन साहित्य,ग्रन्थ और शिलालेख आदि क्या कहते है इस पर भी प्रकाश डालते है।

१)सोमदेव सूरी ने सन ९५९ में यशस्तिलक चम्पू में गुर्जरत्रा  का वर्णन किया है। वह लिखता है कि न केवल प्रतिहार बल्कि चावड़ा,चालुक्य,आदि गुर्जर वंश भी इस भूमि की रक्षा करते रहे व गुर्जरत्रा को एक वैभवशाली देश बनाये रखा।

२) विद्व शाल मंजिका,सर्ग १,श्लोक ६ में राजशेखर ने कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज महान के पुत्र महेंद्रपाल को रघुकुल तिलक अर्थात सूर्यवंशी गुर्जर बताया है।

३)कुमारपाल प्रबंध के पृष्ठ १११ पर भी गुर्जर देशदेश( गुर्जरत्रा)  का वर्णन है...

कर्णाटे,गुर्जरे लाटे सौराष्ट्रे कच्छ सैन्धवे।
उच्चाया चैव चमेयां मारवे मालवे तथा।।

४) महाराज कक्कुक का घटियाला शिलालेख भी इसे सूर्यवंशी वंश प्रमाणित करता है....अर्थात रघुवंशी गुर्जर

रहुतिलओ पड़ीहारो आसी सिरि लक्खणोत्रि रामस्य।
तेण पडिहार वन्सो समुणई एत्थ सम्प्तो।।

५) बाउक प्रतिहार के जोधपुर लेख से भी इनका रघुवंशी होना प्रमाणित होता है।(९ वी शताब्दी)

स्वभ्राता राम भद्रस्य प्रतिहार्य कृतं सतः।
श्री प्रतिहारवड शोयमत श्रोन्नतिमाप्युयात।

इस शिलालेख के अनुसार इस वंश का शासनकाल गुजरात में प्रकाश में आया था।

६) चीनी यात्री हुएन्त त्सांग ने गुर्जर राज्य की राजधानी पीलोमोलो,भीनमाल या बाड़मेर कहा है।है। वहाँ का तत्कालीन गुर्जर राजा व्याघ्रमुख चपराणा था।

७) गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान की ग्वालियर प्रशस्ति

मन्विक्षा कुक्कुस्थ(त्स्थ) मूल पृथवः क्ष्मापल कल्पद्रुमाः।
तेषां वंशे सुजन्मा क्रमनिहतपदे धाम्नि वज्रैशु घोरं,
राम: पौलस्त्य हिन्श्रं क्षतविहित समित्कर्म्म चक्रें पलाशे:।
श्लाध्यास्त्स्यानुजो सौ मधवमदमुषो मेघनादस्य संख्ये,
सौमित्रिस्तिव्रदंड: प्रतिहरण विर्धर्य: प्रतिहार आसी।
तवुन्शे प्रतिहार केतन भृति त्रैलौक्य रक्षा स्पदे
देवो नागभट: पुरातन मुने मुर्तिर्ब्बमूवाभदुतम।

अर्थात - सूर्यवंश में मनु,इश्वाकू,कक्कुस्थ आदि राजा हुए,उनके वंश में पौलस्त्य(रावण) को मारने वाले राम हुए,जिनका प्रतिहार उनका छोटा भाई सौमित्र(सुमित्रा नंदन लक्ष्मण) था,उसके वंश में नागभट्ट हुआ। इसी प्रशस्ति के सातवे श्लोक में वत्सराज के लिए लिखा है क़ि उस क्षत्रिय पुंगव(विद्वान्) ने बलपूर्वक भड़ीकुल का साम्राज्य छिनकर इश्वाकू कुल की उन्नति की।

८) देवो यस्य महेन्द्रपालनृपति: शिष्यों रघुग्रामणी:(बालभारत,१/११)

तेन(महिपालदेवेन)च रघुवंश मुक्तामणिना(बालभारत)

बालभारत में भी महिपालदेव को रघुवंशी कहा है।

९)ओसिया के महावीर मंदिर का लेख जो विक्रम संवत १०१३(ईस्वी ९५६) का है तथा संस्कृत और देवनागरी लिपि में है,उसमे उल्लेख किया गया है कि-

तस्या कार्षात्कल प्रेम्णालक्ष्मण: प्रतिहारताम ततो अभवत प्रतिहार वंशो राम समुव:।।६।।
तदुंदभशे सबशी वशीकृत रिपु: श्री वत्स राजोडsभवत।

अर्थात लक्ष्मण ने प्रेमपूर्वक उनके प्रतिहारी का कार्य किया,अनन्तर श्री राम से प्रतिहार वंश की उत्पत्ति हुई। उस प्रतिहार वंश में वत्सराज हुआ।

१०) गौडेंद्रवंगपतिनिर्ज्जयदुर्व्विदग्धसदगुर्ज्जरेश्वरदिगर्ग्गलतां च यस्य।
नीत्वा भुजं विहतमालवरक्षणार्त्थ स्वामी तथान्यमपि राज्यछ(फ) लानि भुंक्ते।।
-बडोदे का दानपत्र,Indian Antiquary।

११)ब्राह्मण उत्पत्ति के विषय में इस वंश के साथ द्विज,विप्र यह दो संज्ञाए प्रयुक्त की गई है,तो द्विज का अर्थ ब्राह्मण न होकर द्विजातिय(जनेउ) संस्कार से है न की ब्राह्मण से। ठीक इसी तरह विप्र का अर्थ भी विद्वान पंडित अर्थात "जिसने विद्वत्ता में पांडित्य हासिल किया है।
१२) कन्नड के महाकवि पम्प ने गुर्जर सम्राट महिपालदेव को दहाडता हुआ गुर्जर लिखा है पम्प महाभारत में।
१३) राष्ट्रकूट राजा अपने शिलालेखो में उन्हें गुर्जर राजा व गुर्जर वंश की ही लिखते हैं।
१४) अरब लेखक गुर्जरो को इस्लाम का सबसे बडा दुश्मन लिखते हैं । गुर्जर को अलजूजर लिखा है।
वराह को बौरा लिखते हैं।
१५) प्रतिहारो को हूण राजवंश के विघटन से जन्मा राजवंश माना जाता है। हूणो का दूसरा नाम मिहिर था व कुषाणो के देवो का नाम भी मिहिर ही था। सम्राट भोज महान मिहिर की उपाधि धारण करते हैं।
आज भी अजमेर के गुर्जर मिहिर पुकारे जाते हैं। मिहिर का मतलब है सूर्यदेव यानी सूर्यवंशी।सूर्यवंशी।
१६) राजौर से मिला शिलालेख भी उनके गुर्जर वंश के होने की पुष्टि करता है। गुर्जर प्रतिहार राजवंश लिखता है।

कन्नौज के आस पास गुर्जर प्रतिहार से ताल्लुक रखने वाले कुछ गाँव हैं जो खुद को गुर्जर राजाओ का ही वंशज मानते हैं। मगर अब वे राजपूत कहलाते हैं, इस तथ्य से भी यह पक्का हो जाता है कि राजपूतो के पूर्वज गुर्जर ही हैं व गुर्जर राजवंशो के अन्य जातियो से वैवाहिक व राजनैतिक सम्बन्धो का परिणाम ही एक नयी जाति बनकर निकला जो राजपूत कहलाये।
राजपूत गूजरी भाषा का शब्द है जिसका मतलब गुर्जरो के गैर गूजरियो से पैदा हुई सन्तान।

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 गुर्जर प्रतिहार वंश
संस्थापक-गुर्जर  राजा हरिशचंद्र
वास्तविक - नागभट प्रथम

राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेष में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई। इनकी उत्पति लक्ष्मण से हुई है। लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंष कहलाया। नगभट्ट प्रथम पश्चिम से होने वाले अरब आक्रमणों को विफल किया। नागभट्ट प्रथम के बाद वत्सराज शासक बना। वह प्रतिहार वंश का प्रथम शासक था जिसने त्रिपक्षीप संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष/त्रिराष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया।

त्रिपक्षीय संघर्ष:- 8 वीं से 10 वीं सदी के मध्य लगभग 200 वर्षो तक पष्चिम के प्रतिहार पूर्व के पाल और दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट वंश ने कन्नौज की प्राप्ति के लिए जो संघर्ष किया उसे ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा जाता है।


गुर्जर सम्राट नागभट द्वितीय:- वत्सराज के पश्चात् शक्तिशाली शासक हुआ उसने भी अरबों को पराजित किया किन्तु कालान्तर में उसने गंगा में डूब कर आत्महत्या कर ली।

गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान  - इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक इसने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर कन्नौज पर अपना अधिकार किया और प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया। मिहिरभोज की उपलब्धियों की जानकारी उसके ग्वालियर लेख से प्राप्त होती है।

(1) - आदिवराह की उपाधी धारण की।

(2) -आदिवराह नामक सोने चांदी के सिक्के जारी किये।

(3) - गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महानके पश्चात् महेन्द्रपाल शासक बना।

• गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक :
1. नागभट्ट प्रथम              730 से 760 ई० तक
2. देवराज गुर्जर           760 से 775 ई० तक 
3. वत्सराज वीर गुर्जर        775 से 810 ई० तक
4. नाग भट्ट द्वित्तीय           810 से 833 ई० तक
5. रामभद वीर गुर्जर          833 से 836 ई० तक
6. मिहिर भोज                836 से 885 ई० तक
7. महेंदर पाल गुर्जर          885 से 910 तक
8. महिपाल गुर्जर             912 से 944 तक
9. महेंदर पाल द्वितीय        944 से 984 तक
10. देव पाल गुर्जर            984 से 990 तक
11. विजयपाल गुर्जर          990 से 1005 तक
12. राज्यपाल गुर्जर           1005 से 1018 तक
11. त्रलोचन पाल गुर्जर       1018 से 1025 तक
12. यशपाल गुर्जर            1025 से 1036 तक

8वीं से 10वीं शताब्दी में उत्तर भारत में प्रसिद्ध गुर्जर क्षत्रिय वंश प्रतिहार था। राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों का मुख्य केन्द्र मारवाड़ था। पृथ्वीराज रासौ के अनुसार प्रतिहारों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से हुई है।
प्रतिहार का अर्थ है द्वारपाल प्रतिहार स्वयं को लक्ष्मण वंषीय सूर्यवंशी या रधुकुलवंशी मानते है। प्रतिहारों की मंदिर व स्थापत्य कला निर्माण शैली गुर्जरशैली या महामारू गुर्जर शैली कहलाती है। गुर्जर प्रतिहारों ने अरब आक्रमण कारीयों से भारत की रक्षा की अतः इन्हें "द्वारपाल"भी कहा जाता है।

गुर्जरात्रा  की राजधानी भीनमाल (जालौर) थी। मुहणौत नैणसी  के अनुसार प्रतिहारों की कुल 26 शाखाएं थी। जिसमें से मण्डोर व भीनमाल शाखा सबसे प्राचीन थी।
मण्डौर शाखा का संस्थापक - हरिशचंद्र था। गुर्जर प्रतिहारों की प्रारम्भिक राजधानी -मण्डौर है

1. गुर्जर सम्राट नागभट प्रथम :- नागभट प्रथम ने 730 ई. में अवन्ति व उज्जैन  में प्रतिहार वंश की स्थापना की तथा भीनमाल को प्रतिहारों की राजधानी बनाया।

2.गुर्जर सम्राट वत्सराज :- वत्सराज भीनमाल प्रतिहार वंष का वास्तिवक संस्थापक था। वत्सराज को रणहस्तिन की उपाधि प्राप्त थी। वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया। औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसके समय उद्योतन सूरी ने "कुवलयमाला" की रचना 778 में जालौर में की। औसियां के मंदिर गुर्जर मरू शैली में बने है।  औसियां का हरिहर मंदिर मरू गुर्जरशैली में बना है।

- औसियां राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था।
- औसिंया (जोधपुर)के मंदिर गुर्जर कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेष्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- जिनसेन ने "हरिवंश पुराण " की रचना की।
वत्सराज ने त्रिपक्षिय संर्घष की शुरूआत की तथा वत्सराज राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से पराजित हुआ।

त्रिपक्षिय/त्रिराष्ट्रीय संर्घष
कन्नौज को लेकर उत्तर भारत के गुर्जर, पूर्व में बंगाल का पाल वंश तथा दक्षिणी भारत का राष्ट्रकूट वंश के बीच 100 वर्षो तक के चले संघर्ष को त्रिपक्षिय संघर्ष कहा जाता है।

3.गुर्जर सम्राट नागभट द्वितीय :- सम्राट वत्सराज व गुर्जराणी  सुन्दरी देवी का पुत्र। नागभट द्वितीय ने अरब आक्रमणकारियों पर पूर्णतयः रोक लगाई। नागभट्ट द्वितीय ने गंगा समाधि ली। नागभट द्वितीय ने त्रिपक्षिय संघर्ष में कन्नौज को जीतकर सर्वप्रथम गुर्जरो की राजधानी बनाया।

4.चक्रवर्ती गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान (836-885 ई.):- मिहिर भोज को आदिवराह व प्रभास की उपाधि प्राप्त थी। मिहिरभोज वैष्णों धर्म का अनुयायी था। मिहिरभोज प्रतिहारों का सबसे अधिक शक्तिषाली राजा था। इस काल चर्माेत्कर्ष का काल था। मिहिर भोज ने सोने चांदी के द्रुम सिक्के चलवाये। मिहिरभोज को भोज प्रथम भी कहा जाता है। ग्वालियर प्रशक्ति मिहिरभोज के समय लिखी गई। 851 ई. में अरब यात्री सुलेमान ने मिहिरभोज के समय भारत यात्रा की। अरबीयात्री सुलेमान व कल्वण ने अपनी राजतरंगिणी (कष्मीर का इतिहास) में मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की। सुलेमान ने भोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है।

5.गुर्जर सम्राट महेन्द्रपालदेव  प्रथम  :- इसका गुरू व आश्रित कवि राजशेखर था। राजशेखर ने कर्पुर मंजरी, काव्य मिमांसा, प्रबंध कोष हरविलास व बाल रामायण की रचना की। राजशेखर ने महेन्द्रपाल प्रथम को निर्भय नरेष कहा है।

6. गुर्जर सम्राट महिपालदेव  प्रथम :- राजशेखर महिपाल प्रथम के दरबार में भी रहा। 915 ई. में अरब यात्री अली मसुदी ने गुर्जर व राजा को बोरा कहा है।

7. गुर्जर सम्राट राज्यपाल प्रतिहार :- 1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।

8.गुर्जर सम्राट यशपाल प्रतिहार :- 1036 ई. में गुर्जर प्रतिहारों का अन्तिम राजा यशपाल था। इसके बाद प्रतिहार गुर्जर स्वतंत्र हो गये और छोटे छोटे राज्यों में सिमट गये। कालान्तर में कुछ खुद को मुस्लिम शासको के डर के कारण राजपूत कहलाने लगे।

भीनमाल :- हेनसांग/युवाचांग न राजस्थान में भीनमाल व बैराठ की यात्रा की तथा अपने ग्रन्थ सियू की मे भीनमाल को पीलोमोलो  कहा है। गुर्जर देश के चप वंशीय गुर्जर राजा व्याघ्रमुख चपराणा के समय का प्रसिद्व गणितज्ञ व खगोलज्ञ ब्रहमागुप्त भीनमाल का रहने वाला था जिससे ब्रहमाण्ड की उत्पत्ति का सिद्धान्त " ब्रहमास्फुट सिद्धान्त )का प्रतिपादन किया।