रविवार, 10 अप्रैल 2016

Gurjar Pratihar Rajvansh - गुर्जर प्रतिहार राजवंश




गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य और उसके प्रतापी सम्राट
उत्तर भारत में वर्धनवंश के पतन के बाद उत्तर भारत पर एकक्षत्र शासक गुर्जर प्रतिहार थे।
नागभट्ट नाम के एक गुर्जर नवयुवक ने इस नये गुर्जर साम्राज्य की नींव रखी। संभव है कि ये भडौच के गुर्जर प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र ।
पूरे उत्तर भारत में छोटे छोटे राज्य थे जो किसी भी बाह्य आक्रमण को विफल करने में पंगु बने हुए थे।

भडौच के गुर्जर प्रतिहार, वल्लभी के गुर्जर मैत्रक, वातापी के गुर्जर चालुक्य, भीनमाल के चपराणे,चित्तौड के मोरी गुर्जर,अजमेर के चेची व फिर चौहान, भटनेर के भाटी, बयाना के भडाणा, दिल्ली के तंवर,जालौर के प्रतिहार, वेंगी के चालुक्य ये सब गुर्जरो की शाखाए केवल गुर्जरत्रा तक सीमित थी। इन सबमें केवल बादामी के चालुक्य साम्राज्य के स्वामी थे। 
वह काल विश्व इतिहास में उथल पुथल का था, संस्कृति व सभ्यताओ पर अतिक्रमण का था।
अरब से उठने वाली इस्लामिक लपटो ने बहुत सी संस्कृतियो व सभ्यताओ को निगल कर उन स्थानो को इस्लामिक रंग में रंग दिया था। यह सब ज्यादातर तलवार व भय के बल पर हो रहा था। जो काम इसाइयो ने सदियो पहले यूरोप में किया था वहीं काम एशिया में अरब के खलीफा कर रहे थे।
अरब ने ईरान की विश्वप्रसिद्ध सभ्यता का खात्मा करके नया ईरान गढ दिया था, वहाँ के कुछेक पारसियो ने पलायन करके भारत में शरणागत होकर अपनी बेहद प्राचीन संस्कृति को लुप्त होने से बचा लिया।
इराक की महान सभ्यता अब इस्लामिक संस्कृति का केन्द्र बन गयी थी।
मिस्त्र की सभ्यता अब बदल गयी थी, तुर्की कबीले इस्लाम के नये सिपाहसलार थे, कुवैत,लीबिया पूरा का पूरा मध्य एशिया इस्लामिक संस्कृति में रंगता जा रहा था व अरब के खलीफा एक नये साम्राज्य के मालिक बन गये थे जो जिधर को रूख करता वहाँ की प्राचीन सभ्यता व विरासत को नष्ट करके नया रंगरूप दे देते।
बर्बरता,नरसंहार,बलात्कार,मारकाट,हाहाकार ये सब ही दिखाई देता था एशिया महाद्वीप में।
जो भी इस्लाम स्वीकारता वहीं एक नया युद्ध छेड देता किसी अन्य देश के खिलाफ जैसे कि तुर्की, मंगोल व अफगानिस्तान उदाहरण हैं।
खलीफाओ ने अरबी साम्राज्य को बेहद बडा व मजबूक बनाने के बाद आखिरकार भारत की ओर रूख किया। अरबी साम्राज्य बहुत ही बडा व संसाधनो से परिपूर्ण हो गया था। कई देश इसके अन्दर थे। अरबी सैनिको की वेशभूषा अस्त्र शस्त्रो से लैस थी वे हर प्रकार के हथियारो से शत्रु पर आक्रमण करते थे। लाखो की संख्या में सैनिक, बहुत से सैनिक दल, हजारो घुडसवार सब तरह की सैन्य शक्तियाँ अरबो के पास थी। यूरोप भी घुटने टेक रहा था तुर्की सैन्यदल के सामनेे। सब का लक्ष्य एक ही था।
भारत सदा से ही एक उत्सुकता का केन्द्र व पहेली की तरह रहा है जिसे हर कोई जानना समझना चाहता है।
अरबी यौद्धा किसी भी प्रकार से भारत को जीतना चाहते थे व बुतपरस्ती को खत्म करके इस्लामिक देश बनाना चाहते थे।
भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है जहाँ राजस्थान व गुजरात व दूर चलकर पंजाब है। गुजरात व राजस्थान को तब गुर्जरत्रा यानी गुर्जरदेश कहा जाता था जिसकी रक्षा का दायित्व वीर गुर्जरो पर था। ये इन्हीं की भूमि कही जाती थी।
अरबो की विशाल आँधी के सामने कुछ हजार वीर गुर्जर अपने रणनृत्य का प्रदर्शन करते हुए भिडे जिसे इतिहास राजस्थान के युद्ध जोकि गुर्जरो व अरबो के बीच हुए के नाम से जानता है। ये एक दो युद्ध नहीं बल्कि युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक वीर गुर्जरो व अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। जिसमें गुर्जरो ने अभूतपूर्व साहस व पराक्रम दिखाते हुए अरबो को बाहर खदेडा ।
भारत की हजारो साल से बनने वाली सभ्यता व संस्कृति को अरबो द्वारा होने वाली हानि से गुर्जरो ने बचाया व लगभग साढे तीन सौ सालो तर गुर्जर भारत के रक्षक व प्रहरी बने रहे ।
प्रतिहार यानी द्वारपाल।
इन आरम्भिक युद्धो में वीर गुर्जरो का नेतृत्व गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रतिहार प्रथम ने किया । नागभट्ट के नेतृत्व में चित्तौड के मोरी गुर्जर, बादामी के चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य गुर्जर, चौहाण,भडाणा, मैत्रक सबने अरबो को बुरी तरह हर बार पराजित किया।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने अरबी आक्रमण से होने वाली उथल पुथल व अस्त व्यस्तता का अवसर उठाते हुए बहुत से राज्यो को अपने अधीन करके गुर्जर साम्राज्य की स्थापना की।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने उज्जैन को नयी राजधानी बनाया। नागभट्ट ने भारतीय संस्कृति व सभ्यता के लिये जो किया वह अतुलनीय है। इसीलिये इन्हें राष्ट्रनायक की उपाधि से विभूषित किया जाता है।
राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर यह कथन उन्हीं के कारण चरितार्थ हुआ।
इसी समय गुर्जरो ने एक नये युद्धनृत्य की रचना की जिसे गुर्जर रणनृत्य कहा जाता है। गुर्जरो के संख्या बल में कम होने के कारण व शत्रुओ की विशाल सेना से भिडने से पूर्व यह नृत्य किया जाता था जिससे शत्रु को भ्रम होता था कि गुर्जर सेना बहुत अधिक है।
गुर्जर रणनृत्य कला पर आज भी रिसर्च जारी है!
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने के कारण ही गुर्जरों को वीर गुर्जर कहा जाता है!
अरबों को सफलकापूर्वक परास्त करने के कारण ही गुर्जरों को "राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर" कहा गया है!
बाद में गुर्जर प्रतिहार वंश में कई बेहद प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए जैसे कि गुर्जर सम्राट वत्सराज, गुर्जर सम्राट नागभट्ट द्वितीय, आदिवराह गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान, गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल, गुर्जर सम्राट महिपाल प्रथम आदि।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट का नाम सदा भारतीय संस्कृति संरक्षण के लिये याद किया जाता रहा रहेगा।
वे भारतीय इतिहास के महान यौद्धा

** गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य|  **

राजवंश - गुर्जर प्रतिहार वंश
वंश - सूर्यवंशी गुर्जर।

यूँ तो गुर्जर प्रतिहारो की उत्पत्ति पर कई सारे मत है,किन्तु उनमे से अधिकतर कपोल कल्पनाओं के अलावा कुछ नहीं है। प्राचीन साहित्यों में प्रतिहार का अर्थ "द्वारपाल" मिलता है। अर्थात यह वंश विश्व के मुकुटमणि भारत के पश्चिमी द्वारा अथवा सीमा पर शासन करने के चलते ही प्रतिहार कहलाया।

अब गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के बारे में जो भ्रांतियाँ है उनका निराकारण करते है। एक मान्यता यह है की ये वंश अबू पर्वत पर हुए यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुआ है,जो सरासर कपोल कल्पना है। हो सकता है अबू पर हुए यज्ञ में इस वंश की हाजिरी के कारण इस वंश के साथ साथ अग्निवंश की कथा रूढ़ हो गई हो। खैर अग्निवंश की मान्यता कल्पना के अलावा कुछ नहीं हो सकती और ऐसी कल्पित मान्यताये इतिहास में महत्त्व नहीं रखती।

अधिकांश  इतिहासकार,अग्निवंश के कुलो को गुर्जर मूल का होना स्वीकारते हैं ,यह प्रमाणित हो चुका है। इस वंश की उत्पत्ति के संबंध में प्राचीन साहित्य,ग्रन्थ और शिलालेख आदि क्या कहते है इस पर भी प्रकाश डालते है।

१)सोमदेव सूरी ने सन ९५९ में यशस्तिलक चम्पू में गुर्जरत्रा  का वर्णन किया है। वह लिखता है कि न केवल प्रतिहार बल्कि चावड़ा,चालुक्य,आदि गुर्जर वंश भी इस भूमि की रक्षा करते रहे व गुर्जरत्रा को एक वैभवशाली देश बनाये रखा।

२) विद्व शाल मंजिका,सर्ग १,श्लोक ६ में राजशेखर ने कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज महान के पुत्र महेंद्रपाल को रघुकुल तिलक अर्थात सूर्यवंशी गुर्जर बताया है।

३)कुमारपाल प्रबंध के पृष्ठ १११ पर भी गुर्जर देशदेश( गुर्जरत्रा)  का वर्णन है...

कर्णाटे,गुर्जरे लाटे सौराष्ट्रे कच्छ सैन्धवे।
उच्चाया चैव चमेयां मारवे मालवे तथा।।

४) महाराज कक्कुक का घटियाला शिलालेख भी इसे सूर्यवंशी वंश प्रमाणित करता है....अर्थात रघुवंशी गुर्जर

रहुतिलओ पड़ीहारो आसी सिरि लक्खणोत्रि रामस्य।
तेण पडिहार वन्सो समुणई एत्थ सम्प्तो।।

५) बाउक प्रतिहार के जोधपुर लेख से भी इनका रघुवंशी होना प्रमाणित होता है।(९ वी शताब्दी)

स्वभ्राता राम भद्रस्य प्रतिहार्य कृतं सतः।
श्री प्रतिहारवड शोयमत श्रोन्नतिमाप्युयात।

इस शिलालेख के अनुसार इस वंश का शासनकाल गुजरात में प्रकाश में आया था।

६) चीनी यात्री हुएन्त त्सांग ने गुर्जर राज्य की राजधानी पीलोमोलो,भीनमाल या बाड़मेर कहा है।है। वहाँ का तत्कालीन गुर्जर राजा व्याघ्रमुख चपराणा था।

७) गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान की ग्वालियर प्रशस्ति

मन्विक्षा कुक्कुस्थ(त्स्थ) मूल पृथवः क्ष्मापल कल्पद्रुमाः।
तेषां वंशे सुजन्मा क्रमनिहतपदे धाम्नि वज्रैशु घोरं,
राम: पौलस्त्य हिन्श्रं क्षतविहित समित्कर्म्म चक्रें पलाशे:।
श्लाध्यास्त्स्यानुजो सौ मधवमदमुषो मेघनादस्य संख्ये,
सौमित्रिस्तिव्रदंड: प्रतिहरण विर्धर्य: प्रतिहार आसी।
तवुन्शे प्रतिहार केतन भृति त्रैलौक्य रक्षा स्पदे
देवो नागभट: पुरातन मुने मुर्तिर्ब्बमूवाभदुतम।

अर्थात - सूर्यवंश में मनु,इश्वाकू,कक्कुस्थ आदि राजा हुए,उनके वंश में पौलस्त्य(रावण) को मारने वाले राम हुए,जिनका प्रतिहार उनका छोटा भाई सौमित्र(सुमित्रा नंदन लक्ष्मण) था,उसके वंश में नागभट्ट हुआ। इसी प्रशस्ति के सातवे श्लोक में वत्सराज के लिए लिखा है क़ि उस क्षत्रिय पुंगव(विद्वान्) ने बलपूर्वक भड़ीकुल का साम्राज्य छिनकर इश्वाकू कुल की उन्नति की।

८) देवो यस्य महेन्द्रपालनृपति: शिष्यों रघुग्रामणी:(बालभारत,१/११)

तेन(महिपालदेवेन)च रघुवंश मुक्तामणिना(बालभारत)

बालभारत में भी महिपालदेव को रघुवंशी कहा है।

९)ओसिया के महावीर मंदिर का लेख जो विक्रम संवत १०१३(ईस्वी ९५६) का है तथा संस्कृत और देवनागरी लिपि में है,उसमे उल्लेख किया गया है कि-

तस्या कार्षात्कल प्रेम्णालक्ष्मण: प्रतिहारताम ततो अभवत प्रतिहार वंशो राम समुव:।।६।।
तदुंदभशे सबशी वशीकृत रिपु: श्री वत्स राजोडsभवत।

अर्थात लक्ष्मण ने प्रेमपूर्वक उनके प्रतिहारी का कार्य किया,अनन्तर श्री राम से प्रतिहार वंश की उत्पत्ति हुई। उस प्रतिहार वंश में वत्सराज हुआ।

१०) गौडेंद्रवंगपतिनिर्ज्जयदुर्व्विदग्धसदगुर्ज्जरेश्वरदिगर्ग्गलतां च यस्य।
नीत्वा भुजं विहतमालवरक्षणार्त्थ स्वामी तथान्यमपि राज्यछ(फ) लानि भुंक्ते।।
-बडोदे का दानपत्र,Indian Antiquary।

११)ब्राह्मण उत्पत्ति के विषय में इस वंश के साथ द्विज,विप्र यह दो संज्ञाए प्रयुक्त की गई है,तो द्विज का अर्थ ब्राह्मण न होकर द्विजातिय(जनेउ) संस्कार से है न की ब्राह्मण से। ठीक इसी तरह विप्र का अर्थ भी विद्वान पंडित अर्थात "जिसने विद्वत्ता में पांडित्य हासिल किया है।
१२) कन्नड के महाकवि पम्प ने गुर्जर सम्राट महिपालदेव को दहाडता हुआ गुर्जर लिखा है पम्प महाभारत में।
१३) राष्ट्रकूट राजा अपने शिलालेखो में उन्हें गुर्जर राजा व गुर्जर वंश की ही लिखते हैं।
१४) अरब लेखक गुर्जरो को इस्लाम का सबसे बडा दुश्मन लिखते हैं । गुर्जर को अलजूजर लिखा है।
वराह को बौरा लिखते हैं।
१५) प्रतिहारो को हूण राजवंश के विघटन से जन्मा राजवंश माना जाता है। हूणो का दूसरा नाम मिहिर था व कुषाणो के देवो का नाम भी मिहिर ही था। सम्राट भोज महान मिहिर की उपाधि धारण करते हैं।
आज भी अजमेर के गुर्जर मिहिर पुकारे जाते हैं। मिहिर का मतलब है सूर्यदेव यानी सूर्यवंशी।सूर्यवंशी।
१६) राजौर से मिला शिलालेख भी उनके गुर्जर वंश के होने की पुष्टि करता है। गुर्जर प्रतिहार राजवंश लिखता है।

कन्नौज के आस पास गुर्जर प्रतिहार से ताल्लुक रखने वाले कुछ गाँव हैं जो खुद को गुर्जर राजाओ का ही वंशज मानते हैं। मगर अब वे राजपूत कहलाते हैं, इस तथ्य से भी यह पक्का हो जाता है कि राजपूतो के पूर्वज गुर्जर ही हैं व गुर्जर राजवंशो के अन्य जातियो से वैवाहिक व राजनैतिक सम्बन्धो का परिणाम ही एक नयी जाति बनकर निकला जो राजपूत कहलाये।
राजपूत गूजरी भाषा का शब्द है जिसका मतलब गुर्जरो के गैर गूजरियो से पैदा हुई सन्तान।

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 गुर्जर प्रतिहार वंश
संस्थापक-गुर्जर  राजा हरिशचंद्र
वास्तविक - नागभट प्रथम

राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेष में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई। इनकी उत्पति लक्ष्मण से हुई है। लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंष कहलाया। नगभट्ट प्रथम पश्चिम से होने वाले अरब आक्रमणों को विफल किया। नागभट्ट प्रथम के बाद वत्सराज शासक बना। वह प्रतिहार वंश का प्रथम शासक था जिसने त्रिपक्षीप संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष/त्रिराष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया।

त्रिपक्षीय संघर्ष:- 8 वीं से 10 वीं सदी के मध्य लगभग 200 वर्षो तक पष्चिम के प्रतिहार पूर्व के पाल और दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट वंश ने कन्नौज की प्राप्ति के लिए जो संघर्ष किया उसे ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा जाता है।


गुर्जर सम्राट नागभट द्वितीय:- वत्सराज के पश्चात् शक्तिशाली शासक हुआ उसने भी अरबों को पराजित किया किन्तु कालान्तर में उसने गंगा में डूब कर आत्महत्या कर ली।

गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान  - इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक इसने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर कन्नौज पर अपना अधिकार किया और प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया। मिहिरभोज की उपलब्धियों की जानकारी उसके ग्वालियर लेख से प्राप्त होती है।

(1) - आदिवराह की उपाधी धारण की।

(2) -आदिवराह नामक सोने चांदी के सिक्के जारी किये।

(3) - गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महानके पश्चात् महेन्द्रपाल शासक बना।

• गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक :
1. नागभट्ट प्रथम              730 से 760 ई० तक
2. देवराज गुर्जर           760 से 775 ई० तक 
3. वत्सराज वीर गुर्जर        775 से 810 ई० तक
4. नाग भट्ट द्वित्तीय           810 से 833 ई० तक
5. रामभद वीर गुर्जर          833 से 836 ई० तक
6. मिहिर भोज                836 से 885 ई० तक
7. महेंदर पाल गुर्जर          885 से 910 तक
8. महिपाल गुर्जर             912 से 944 तक
9. महेंदर पाल द्वितीय        944 से 984 तक
10. देव पाल गुर्जर            984 से 990 तक
11. विजयपाल गुर्जर          990 से 1005 तक
12. राज्यपाल गुर्जर           1005 से 1018 तक
11. त्रलोचन पाल गुर्जर       1018 से 1025 तक
12. यशपाल गुर्जर            1025 से 1036 तक

8वीं से 10वीं शताब्दी में उत्तर भारत में प्रसिद्ध गुर्जर क्षत्रिय वंश प्रतिहार था। राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों का मुख्य केन्द्र मारवाड़ था। पृथ्वीराज रासौ के अनुसार प्रतिहारों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से हुई है।
प्रतिहार का अर्थ है द्वारपाल प्रतिहार स्वयं को लक्ष्मण वंषीय सूर्यवंशी या रधुकुलवंशी मानते है। प्रतिहारों की मंदिर व स्थापत्य कला निर्माण शैली गुर्जरशैली या महामारू गुर्जर शैली कहलाती है। गुर्जर प्रतिहारों ने अरब आक्रमण कारीयों से भारत की रक्षा की अतः इन्हें "द्वारपाल"भी कहा जाता है।

गुर्जरात्रा  की राजधानी भीनमाल (जालौर) थी। मुहणौत नैणसी  के अनुसार प्रतिहारों की कुल 26 शाखाएं थी। जिसमें से मण्डोर व भीनमाल शाखा सबसे प्राचीन थी।
मण्डौर शाखा का संस्थापक - हरिशचंद्र था। गुर्जर प्रतिहारों की प्रारम्भिक राजधानी -मण्डौर है

1. गुर्जर सम्राट नागभट प्रथम :- नागभट प्रथम ने 730 ई. में अवन्ति व उज्जैन  में प्रतिहार वंश की स्थापना की तथा भीनमाल को प्रतिहारों की राजधानी बनाया।

2.गुर्जर सम्राट वत्सराज :- वत्सराज भीनमाल प्रतिहार वंष का वास्तिवक संस्थापक था। वत्सराज को रणहस्तिन की उपाधि प्राप्त थी। वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया। औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसके समय उद्योतन सूरी ने "कुवलयमाला" की रचना 778 में जालौर में की। औसियां के मंदिर गुर्जर मरू शैली में बने है।  औसियां का हरिहर मंदिर मरू गुर्जरशैली में बना है।

- औसियां राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था।
- औसिंया (जोधपुर)के मंदिर गुर्जर कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेष्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- जिनसेन ने "हरिवंश पुराण " की रचना की।
वत्सराज ने त्रिपक्षिय संर्घष की शुरूआत की तथा वत्सराज राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से पराजित हुआ।

त्रिपक्षिय/त्रिराष्ट्रीय संर्घष
कन्नौज को लेकर उत्तर भारत के गुर्जर, पूर्व में बंगाल का पाल वंश तथा दक्षिणी भारत का राष्ट्रकूट वंश के बीच 100 वर्षो तक के चले संघर्ष को त्रिपक्षिय संघर्ष कहा जाता है।

3.गुर्जर सम्राट नागभट द्वितीय :- सम्राट वत्सराज व गुर्जराणी  सुन्दरी देवी का पुत्र। नागभट द्वितीय ने अरब आक्रमणकारियों पर पूर्णतयः रोक लगाई। नागभट्ट द्वितीय ने गंगा समाधि ली। नागभट द्वितीय ने त्रिपक्षिय संघर्ष में कन्नौज को जीतकर सर्वप्रथम गुर्जरो की राजधानी बनाया।

4.चक्रवर्ती गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान (836-885 ई.):- मिहिर भोज को आदिवराह व प्रभास की उपाधि प्राप्त थी। मिहिरभोज वैष्णों धर्म का अनुयायी था। मिहिरभोज प्रतिहारों का सबसे अधिक शक्तिषाली राजा था। इस काल चर्माेत्कर्ष का काल था। मिहिर भोज ने सोने चांदी के द्रुम सिक्के चलवाये। मिहिरभोज को भोज प्रथम भी कहा जाता है। ग्वालियर प्रशक्ति मिहिरभोज के समय लिखी गई। 851 ई. में अरब यात्री सुलेमान ने मिहिरभोज के समय भारत यात्रा की। अरबीयात्री सुलेमान व कल्वण ने अपनी राजतरंगिणी (कष्मीर का इतिहास) में मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की। सुलेमान ने भोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है।

5.गुर्जर सम्राट महेन्द्रपालदेव  प्रथम  :- इसका गुरू व आश्रित कवि राजशेखर था। राजशेखर ने कर्पुर मंजरी, काव्य मिमांसा, प्रबंध कोष हरविलास व बाल रामायण की रचना की। राजशेखर ने महेन्द्रपाल प्रथम को निर्भय नरेष कहा है।

6. गुर्जर सम्राट महिपालदेव  प्रथम :- राजशेखर महिपाल प्रथम के दरबार में भी रहा। 915 ई. में अरब यात्री अली मसुदी ने गुर्जर व राजा को बोरा कहा है।

7. गुर्जर सम्राट राज्यपाल प्रतिहार :- 1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।

8.गुर्जर सम्राट यशपाल प्रतिहार :- 1036 ई. में गुर्जर प्रतिहारों का अन्तिम राजा यशपाल था। इसके बाद प्रतिहार गुर्जर स्वतंत्र हो गये और छोटे छोटे राज्यों में सिमट गये। कालान्तर में कुछ खुद को मुस्लिम शासको के डर के कारण राजपूत कहलाने लगे।

भीनमाल :- हेनसांग/युवाचांग न राजस्थान में भीनमाल व बैराठ की यात्रा की तथा अपने ग्रन्थ सियू की मे भीनमाल को पीलोमोलो  कहा है। गुर्जर देश के चप वंशीय गुर्जर राजा व्याघ्रमुख चपराणा के समय का प्रसिद्व गणितज्ञ व खगोलज्ञ ब्रहमागुप्त भीनमाल का रहने वाला था जिससे ब्रहमाण्ड की उत्पत्ति का सिद्धान्त " ब्रहमास्फुट सिद्धान्त )का प्रतिपादन किया।










30 टिप्‍पणियां:

  1. ये क्या हमको चूतिया समझ रखा है क्या । सारी तर्कों को अपने हिसाब से तोड दिया है।

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  2. in modern history result of battle of haldighati changes with a change in govt,people in power decide whether akbar won or maharana pratap.so history has become more of a political science
    however what will not change is rajour inscription of gurjar pratihars where they call themselves ""gurjara-pratiharan ""i.e the pratihar clan of the gurjars and the records of their contemporaries like arabs,pal,rastrakutas,rajshekhar,kannada poet pampa,suleiman,al masudi etc..

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  3. Pratihars known as Parihar Rajpoot Today.who originated by fire so he known as Agnivansi.Today four Rajpoot clans which originated by Agni is Parihar Rajpoot, Parmar Rajpoot, Chauhan Rajpoot and Solanki Rajpoot.Chalukya of Vatapi,Vengi is related with Solanki Rajpoot.So please gain more knowledge about the history of India.Do not change it.

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    1. Unknown sahab
      Agnivansh was a myth created by parmars.gurjar pratihar claimed descent from laxman Not from fire.
      Kya parmar gurjar pratiharo ki utpati ke baare mein khud un gurjaro pratiharo se jyadaa jante the ???
      Kannada rastrakuta bhi rajput,bengali pala bhi rajput,krishna bhi rajput,gurjar pratihar bhi rajput.kya roman empire bhi rajputo ki thi ????

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  4. राजा मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में वि. सं. 900 में प्रतिहार राजपूतों को सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण का वंशज बताया गया है।

    सौमित्रिस्तिव्रदंड : प्रतिहरण विधेर्य: प्रतिहार आसीत।।

    बाउक प्रतिहार के नौवीं शताब्दी के शिलालेखानुसार --

    स्वभ्राता रामभद्रस्य प्रतिहायॆ कृतयत:।।
    श्री प्रतिहार बडशोययतशचोतिमानुयात।।

    मित्रों ऐसे हजारों शिलालेखों और अभिलेखों मे प्रतिहार राजपूतों को सूर्यवंशी क्षत्रिय बताया है। क्योंकि अग्नि और सूर्य एक समान है जिस कारण ही प्रतिहार/परिहार राजपूत अग्निवंशी भी कहलाते है। पर यह मूलतः सूर्यवंशी क्षत्रिय है।

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  5. वीर गुर्जर - प्रतिहार राजाओ के ऐतिहासिक अभिलैख प्रमाण

    प्रतिहार एक उपाधि(tital) थी जो राष्ट्रकूट राजा ने गुर्जर राजा को दी थी👇👇👇👇👇👇👇

    1. सज्जन ताम्रपत्र (871 ई. ) :---
    अमोघ वर्ष शक सम्वत
    793 ( 871 ई . ) का
    सज्जन ताम्र पञ ) :---- I
    इस ताम्रपत्र अभिलेख मे लिखा है। कि राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुर्ग ने 754 ई. मे "हिरण्य - गर्भ - महादान " नामक यज्ञ किया अवांछित और खंडित दासवतारा गुफा शिलालेख का उल्लेख है कि दांतिदुर्ग ने उज्जैन में उपहार दिए थे और राजा का शिविर गुर्जरा महल उज्जैन में स्थित था (मजूमदार और दासगुप्त, भारत का एक व्यापक इतिहास)।
    अमोगवरास (साका संवत 793 = एडी 871) के संजन तांबे की प्लेट शिलालेख दांतिदुर्ग को उज्जैनिस दरवाजे के रखवाले (एल, वॉल्यूम XVIII, पृष्ठ 243,11.6-7)तो इस शुभ अवसर पर गुर्जर आदि राजाओ ने यज्ञ की सफलता पूर्वक सचालन हेतु यज्ञ रक्षक ( प्रतिहार ) का कार्य किया । ( अर्थात यज्ञ रक्षक प्रतिहारी का कार्य किया )और प्रतिहार नाम दिया
    ( " हिरणय गर्भ राज्यनै रुज्जयन्यां यदसितमा प्रतिहारी कृतं येन गुर्जरेशादि राजकम " )

    2. सिरूर शिलालेख ( :----
    यह शिलालेख गोविन्द - III के गुर्जर नागभट्ट - II एवम राजा चन्द्र कै साथ हुए युद्ध के सम्बन्ध मे यह अभिलेख है । जिसमे " गुर्जरान " गुर्जर राजाओ, गुर्जर सेनिको , गुर्जर जाति एवम गुर्जर राज्य सभी का बोध कराता है।
    ( केरल-मालव-सोराषट्रानस गुर्जरान )
    { सन्दर्भ :- उज्जयिनी का इतिहास एवम पुरातत्व - दीक्षित - पृष्ठ - 181 }

    3. बडोदा ताम्रपत्र ( 811 ई.) :---
    कर्क राज का बडोदा ताम्रपत्र शक स. 734 ( 811-812 ई ) इस अभिलेख मे गुर्जरैश्वर नागभट्ट - II का उल्लेख है ।
    ( गोडेन्द्र वगपति निर्जय दुविदग्ध सद गुर्जरैश्वर -दि गर्गलताम च यस्या नीतवा भुजं विहत मालव रक्षणार्थ स्वामी तथान्य राज्यदद फलानी भुडक्तै" )
    { सन्दर्भ :- इडियन एन्टी. भाग -12 पृष्ठ - 156-160 }
    4. बगुम्रा-ताम्रपत्र ( 915 ई. )
    इन्द्र - तृतीय का बगुम्रा -ताम्र पत्र शक सं. 837 ( 915 ई )
    का अभिलेख मे गुर्जर सम्राट महेन्द्र पाल या महिपाल को दहाड़ता गुर्जर ( गर्जदै गुर्जर - गरजने वाला गुर्जर ) कहा गया है ।
    ( धारासारिणिसेन्द्र चापवलयै यस्येत्थमब्दागमे । गर्जदै - गुर्जर -सगर-व्यतिकरे जीणो जनारांसति।)
    { सन्दर्भ :-
    1. बम्बई गजेटियर, भाग -1 पृष्ट - 128, नोट -4
    2. उज्जयिनी इतिहास तथा पुरातत्व, दीक्षित - पृष्ठ - 184 -185 }

    5. खुजराहो अभिलेख ( 954 ई. ) :----
    चन्दैल धगं का वि. स . 1011 ( 954 ई ) का खुजराहो शिलालैख सख्या -2 मे चन्देल राजा को मरु-सज्वरो गुर्जराणाम के विशेषण से सम्बोधित किया है ।
    ( मरू-सज्वरो गुर्जराणाम )
    { एपिग्राफिक इडिका - 1 पृष्ठ -112- 116 }

    6. गोहखा अभिलेख :--
    चैदिराजा कर्ण का गोहखा अभिलैख मे गुर्जर राजा को चेदीराजालक्ष्मणराजदैव दवारा पराजित करने का उल्लेख किया गया हे ।
    ( बगांल भगं निपुण परिभूत पाण्डयो लाटेरा लुण्ठन पटुज्जिर्जत गुज्जॆरेन्द्र ।
    काश्मीर वीर मुकुटाचित पादपीठ स्तेषु क्रमाद जनि लक्ष्मणराजदैव )
    { सन्दर्भ :- 1. एपिग्राफिक इडिका - 11 - पृष्ठ - 142
    2. कार्पस जिल्द - 4 पृष्ठ -256, श्लोक - 8 }

    7. बादाल स्तम्भ लैख:--
    नारायण पाल का बादाल सत्म्भ लैख के श्लोक संख्या 13 के अनुसार गुर्जर राजा राम भद्रदैव ( गुर्जर - नाथ) के समय दैवपाल ने गुर्जर- प्रतिहार के कुछ प्रदेश पर अधिकार कर लिया था ।
    ( उत्कीलितोत्कल कुलम हत हूण गर्व खव्वीकृत द्रविड गुर्जर-नाथ दप्पर्म )
    { सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका - 2 पृष्ठ - 160 - श्लोक - 13 }

    8. राजोरगढ अभिलेख ( 960 ई. ) :--
    गुजॆर राजा मथन दैव का वि. स. ( 960 ई ) का राजोर गढ ( राज्यपुर ) अभिलेख मे महाराज सावट के पुत्र गुर्जर प्रतिहार मथनदैव को गुर्जर वंश शिरोमणी तथा समस्त जोतने योग्य भूमि गुर्जर किसानो के अधीन उल्लेखित है ।
    ( श्री राज्यपुराव सिथ्तो महाराजाधिराज परमैश्वर श्री मथनदैवो महाराजाधिरात श्री सावट सूनुग्गुज्जॆर प्रतिहारान्वय ...... स्तथैवैतत्प्रतयासन्न श्री गुज्जॆर वाहित समस्त क्षैत्र समेतश्च )

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  6. गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत

    कर्नल जेम्स टोड कहते है राजपूताना कहलाने वाले इस विशाल रेतीले प्रदेश राजस्थान में, पुराने जमाने में राजपूत जाति का कोई चिन्ह नहीं मिलता परंतु मुझे सिंह समान गर्जने वाले गुर्जरों के शिलालेख मिलते हैं।

    पं बालकृष्ण गौड लिखते है जिसको कहते है रजपूति इतिहास तेरहवीं सदी से पहले इसकी कही जिक्र तक नही है और कोई एक भी ऐसा शिलालेख दिखादो जिसमे रजपूत शब्द का नाम तक भी लिखा हो। लेकिन गुर्जर शब्द की भरमार है, अनेक शिलालेख तामपत्र है, अपार लेख है, काव्य, साहित्य, भग्न खन्डहरो मे गुर्जर संसकृति के सार गुंजते है ।अत: गुर्जर इतिहास को राजपूत इतिहास बनाने की ढेरो सफल-नाकाम कोशिशे कि गई।

    इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज  थे।

    लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।

    स्मिथ ने कहा गुर्जर वंश, जिसने उत्तरी भारत में बड़े साम्राज्य पर शासन किया, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, गुर्जरा जाति का था।

    डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा के वंशज हैं।

    डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों व अन्य अग्निवंशीय राजपूतों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हैं।
    जैकेसन ने गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है
    राजपूत गुर्जर साम्राज्य के सामंत थे गुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किए

    (गुर्जर वंश के शिलालेख)👇👇👇👇
    नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है ।राजजर शिलालेख" में वर्णित "गुर्जारा प्रतिहारवन" वाक्यांश से। यह ज्ञात है कि प्रतिहार गुर्जरा वंश से संबंधित थे।

    ब्रोच ताम्रपत्र 978 ई० गुर्जर कबीला(जाति)
    का सप्त सेंधव अभिलेख हैं

    पाल वंशी,राष्ट्रकूट या अरब यात्रियों के रिकॉर्ड ने प्रतिहार शब्द इस्तेमाल नहीं किया बल्कि गुर्जरेश्वर ,गुर्जरराज,आदि गुरजरों परिवारों की पहचान करते हैं।

    बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से हुआ है।
    राजोरगढ़ (अलवर जिला) के मथनदेव के अभिलेख (959 ईस्वी ) में स्पष्ट किया गया है की प्रतिहार वंशी गुर्जर जाती के लोग थे

    नागबट्टा के चाचा दड्डा प्रथम को शिलालेख में "गुर्जरा-नृपाती-वाम्सा" कहा जाता है, यह साबित करता है कि नागभट्ट एक गुर्जरा था, क्योंकि वाम्सा स्पष्ट रूप से परिवार का तात्पर्य है।
    महिपाला,विशाल साम्राज्य पर शासन कर रहा था, को पंप द्वारा "गुर्जरा राजा" कहा जाता है। एक सम्राट को केवल एक छोटे से क्षेत्र के राजा क्यों कहा जाना चाहिए, यह अधिक समझ में आता है कि इस शब्द ने अपने परिवार को दर्शाया।

    भडोच के गुर्जरों के विषय दक्षिणी गुजरात से प्राप्त नौ तत्कालीन ताम्रपत्रो में उन्होंने खुद को गुर्जर नृपति वंश का होना बताया

    प्राचीन भारत के की प्रख्यात पुस्तक ब्रह्मस्फुत सिद्धांत के अनुसार 628 ई. में श्री चप
    (चपराना/चावडा) वंश का व्याघ्रमुख नामक गुर्जर राजा भीनमाल में शासन कर रहा था

    9वीं शताब्दी में परमार जगददेव के जैनद शिलालेख में कहा है कि गुर्जरा योद्धाओं की पत्नियों ने अपनी सैन्य जीत के
    परिणामस्वरूप अर्बुडा की गुफाओं में आँसू बहाए।

    । मार्कंदई पुराण,स्कंध पुराण में पंच द्रविडो में गुर्जरो जनजाति का उल्लेख है।

    के.एम.पन्निकर ने"सर्वे ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री "में लिखा है गुर्जरो ने चीनी साम्राज्य फारस के शहंसाह,मंगोल ,तुर्की,रोम ,मुगल और अरबों को खलीफाओं की आंधी को देश में घुसने से रोका और प्रतिहार (रक्षक)की उपाधि पायी,सुलेमान ने गुर्जरो को ईसलाम का बड़ा दुश्मन बताया था।

    लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था।
    इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना ​​है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।

    लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती
    (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा ​​तोमर था

    गुर्जर साम्राज्य अनेक भागों में विभक्त हो गया ।इनमें से मुख्य भागों के नाम थे:

    शाकम्भरी (सांभर) के चाहमान (चौहान)
    दिल्ली के तौमर
    मंडोर के गुर्जर प्रतिहार
    बुन्देलखण्ड के कलचुरि
    मालवा के परमार
    मेदपाट (मेवाड़) के गुहिल
    महोवा-कालिजंर के चन्देल
    सौराष्ट्र के चालुक्य

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  7. ब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड में एक श्लोक है -

    क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह”

    अर्थात् क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होवे उसे राजपूत कहते हैं।

    वैश्य पुरुष और शूद्र कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ।

    सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ व संस्कृत के विद्वान् पं० चिन्तामणि विनायक वैद्य के मतानुसार ई० सन् 800 से 1100 के बीच राजपुत्र बने हैं।

    प्राचीन ग्रन्थों में न तो राजपूत जाति का उल्लेख है और न राजपूताने* का।

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    1. Abe gand se nikle hua tusre samaj ko gali dene se phle teri maa bahan ki soch chuthadi ke aaranoudey singh pratihar ke pass aaj se leke mahir bhoj tk ki vanshawali he gandu sb bataya jayega or tere ye world teri gand me ghusede jayenge agar rajput dusri orato ki olad he to kshatriyon ne tumko raaj Kyo ni diya Kyo ki dasiputr he Tu esliye nhi diya gandu se nikla he lode Tu

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  8. चीनी यात्री हेन सांग ने भीनमाल का बड़े अच्छे रूप में वर्णन किया है। उसने लिखा है कि “भीनमाल का 20 वर्षीय नवयुवक क्षत्रिय राजा अपने साहस और बुद्धि के लिए प्रसिद्ध है और वह बौद्ध-धर्म का अनुयायी है। यहां के चापवंशी गुर्जर बड़े शक्तिशाली और धनधान्यपूर्ण देश के स्वामी हैं।”

    हेन सांग (629-645 ई.) के अनुसार सातवी शताब्दी में दक्षिणी गुजरात में भड़ोच राज्य भी विधमान था| भड़ोच राज्य के शासको के कई ताम्र पत्र प्राप्त हुए हैं, जिनसे इनकी वंशावली और इतिहास का पता चलता हैं| इन शासको ने स्वयं को गुर्जर राजाओ के वंश का माना हैं| मंडोर के प्रतिहारो और उनके समकालीन भड़ोच के गुर्जरों की वंशावली के तुलान्तामक अध्ययन से पता चलता हैं कि इन वंशो के नामो में कुछ समानताए हैं| भड़ोच के ‘गुर्जर नृपति वंश’ के संस्थापक का नाम तथा मंडोर के प्रतिहार वंश के संस्थापक हरिचन्द्र के चौथे पुत्र का नाम एक ही हैं- दद्द| कुछ इतिहासकार इन दोनों के एक ही व्यक्ति मानते हैं| दोनों वंशो के शासको के नामो में एक और समानता ‘भट’ प्रत्यय की हैं| भट का अर्थ योद्धा होता हैं| मंडोर के प्रतिहारो में भोग भट, नर भट और नाग भट हैं तो भड़ोच के गुर्जर वंश में जय भट नाम के ही कई शासक हैं| दोनों वंशो के शासको के नामो की समानताओ के आधार पर इतिहासकार भड़ोच के गुर्जर वंश को मंडोर के प्रतिहारो की शाखा मानते हैं| किन्तु इसमें आपत्ति यह हैं कि भड़ोच के गुर्जर अपने अभिलेखों में महाभारत के पात्र ‘भारत प्रसिद्ध कर्ण’ को अपना पूर्वज मानते हैं नाकि मंडोर के प्रतिहारो की तरह रामायण के पात्र लक्ष्मण को|

    Padho thang se Pratihar ek tital tha mandore or Bhadouch ke Gurjar Pratihar apne ko alag alag vansh ka khete h padho thang se

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  9. गुर्जरदेश
    यशोधर्मन विक्रमादित्य" मालवा या उज्जैन के गुर्जर शासक थे। उनकी राजधानी मंदसौर में थी।

    वह गुर्जरों के चाप वंश से था। उसने गुप्त राजाओं के सामंत के रूप में मालवा पर शासन किया। इस चैप राजवंश ने बाद में सामंतों के रूप में वल्लभी के मैत्रिकों की सेवा की।

    प्रसिद्ध कवि कालीदास उनके दरबार में थे। (और चंद्रगुप्त -2 के दरबार में नहीं।) कुछ विद्वानों का दावा है कि कालिदास का विक्रमादित्य यह यशोधर्मन ही था।

    यशोधरमन द्वारा "गुर्जरदेश" नाम की स्थापना 480 ई। में की गई थी (पहले यह गुजरात था), वह अपने उपनाम से चप था जैसा कि वसंतगढ़ में स्तंभ के शिलालेख में लिखा गया था। मंदसौर और नालंदा के पिल्लर शिलालेखों के अनुसार, उन्हें गुर्जरदेश के संस्थापक के रूप में उल्लेख किया गया था। उन्होंने 528 ईस्वी में हुना राजा मिहिरगुल को हराने के बाद नरपति गुर्जर की उपाधि ली।

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  10. गुर्जर दुनिया की एक महान जाति है। गुर्जर ऐतिहासिक काल से भारत पर शासन कर रहे थे, बाद में कुछ गुर्जर की औलाद को मध्यकाल में राजपूत कहा जाता था। राजपूत, मराठा, जाट और अहीर, क्षत्रियों के उत्तराधिकारी हैं। वे विदेशी नहीं हैं। हम सभी को छोड़कर कोई भी समुदाय क्षत्रिय नहीं कहलाता है। उस क्षत्रिय जाति को कैसे खत्म किया जा सकता है जिसमें राम और कृष्ण पैदा हुए थे। हम सभी राजपूत, मराठा, जाट और अहीर सितारे हैं, जबकि गुर्जर क्षत्रिय आकाश में चंद्रमा हैं। गुर्जर की गरिमा मानव शक्ति से परे है .. (शब्द - ठाकुर यशपाल सिंह राजपूत

    गुर्जर तंवर राजाओ की औलाद से तंवर राजपूत और तोमर राजपूत बने(शब्द महेंदर सिंह खेतासर राजपूत)

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    1. Teri bahan ka bhosda teri ka 😜
      Maratha rajputon ke bad ke he loade gawar or sun gurjar koi jati nhi hoti prachin time ka gujrat ka itahaas dekh gandu vha rhne wali har jaati gurjar lagti thi apne jati ke aage gay bhainse charne me rh gya chuthdi ke abhi to ye ni pta ki maratha kb aaye or chandrama ban gya gun wahh hiro or rajputo ke shabd bata rha he are rajput ki chudais vanshawali la fir bolna ki kon kiski olad he naam to aate jate rhte he bata vanshawali gandu veer banna he ab teko maratha kb aaye ye pta ni he usko gandu or tanwar lga liya ye bilkul tanwar rajputon ki den he

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  11. [04/12/2018, 17:44] jai radhey krishna🙏: श्री के० एम० मुन्शी ने स्वीकार किया है कि छठी शताब्दी के प्रारम्भ से पहले अर्थात् शकराजा रुद्रदामा आदि के समय गुर्जर प्रदेश, गुर्जरात्रा अर्थात् गुजरात नाम का कोई प्रदेश नहीं था, और यह भी स्वीकार किया है कि सन् 500 ई० के तुरन्त पश्चात् ही आबू पर्वत के चारों ओर का विस्तृत क्षेत्र ‘गुर्जर प्रदेश’ के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हो गया। उस समय आबू के चारों ओर ऐसे कुलों का समूह बसता था, जिनका रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, भाषा एवं रीति-रिवाज एक थे, और वह शुद्ध आर्य संस्कृति से ओत-प्रोत थे। उनके प्रतिहार, परमार, चालुक्य (सोलंकी) व चौहान आदि वंशों के शासक, वीर विजेता अपनी विजयों के साथ अपनी मातृभूमि गुर्जर देश या गुर्जरात्रा आदि का नाम (गुर्जर) चारों ओर के भूखण्डों में ले गये। गुर्जर देश गुर्जरात्रा या गुजरात की सीमाएं स्थायी नहीं थीं, बल्कि वे गुर्जर राजाओं के राज्य विस्तार के साथ घटती बढती रहती थीं। उससे भी गुर्जर जाति ही सिद्ध होती है और देश (गुर्जर देश) की सीमाएं उक्त जाति के राज्य विस्तार के साथ ही घटती बढती रहती थीं1।

    गूजर शब्द पहली बार सन् 585 ई० में सुना गया, जब हर्षवर्धन के पिता प्रभाकरवर्धन ने इनको पराजित किया। उससे पहले गूजर नाम प्रकाशित नहीं था। गुजरात प्रान्त का नाम भी दसवीं शताब्दी के बाद पड़ा, इससे पहले इस प्रान्त का नाम लॉट था

    जिस देश के व्यक्ति शत्रुओं के आक्रमणों और परिश्रम आदि को नष्ट करने वाले हों उन साहसी सूरमाओं को गुर्जर कहा जाता है। शत्रु के लिए युद्ध में भारी पड़ने के कारण इन्हें पहले गुरुतर कहा गया, किसी के मतानुसार बड़े व्यक्ति के नाते गुरुजन कहकर अपभ्रंश स्वरूप ‘गुर्जर’ शब्द का चलन हुआ। पं० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार प्राचीनकाल में गुर्जर नामक एक राजवंश था। अपने मूल पुरुषों के गुणों के आधार पर इस वंश का नाम गुर्जर पड़ा था। उस पराक्रमी गुर्जर के नाम पर उनके अधीन देश ‘गुर्जर’, ‘गुर्जरात्रा’ और ‘गुर्जर देश’ प्रसिद्ध हुए।

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  12. HISTORY OF RAJASTHAN

    After the sack of Delhi Muhammad Ghori appointed Kootubudin Aibak,a slave, as his victory of Delhi and left for Ghor. Kootubudin placed one "Gola" (Salve, born from Gujjar Chauhan prince with slave mother) upon the throne of Ajmer mistaking this of the last appellation of the natural brother of the last Hindu Gujjar Chauhan King. This Gola could not claim that he was a Gujjar since he was not born from a Gujjar mother and hence informed that he is a Rajput (which is a true statement since he was son of king but not from the queen). This fact is recorded by Ferrista, a Muslim scholar and translated by Dow.

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  13. पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है । वर्ष 1191 - 93 ई . के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित ' जयानक ' ने की । इस ग्रंथ के माध्यम से पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी मिलती है । इस ग्रंथ में पृथ्वी राज चौहान को गुर्जर ही बताया गया है ।

    इतिहासकार जितेश कुमार 7065307196


    सोमेश्वर सूर गुज्जर नरेस ।मालवी राज सब जग्ग बेस ॥कं० ॥६१३ मारू धजादू भहीन थान ।घल भोमि लई बस्न चाहवान ॥दिल्लेस व्या वर घरेस ।तिह अध्अ भया दिल्ले नरेस ॥ई० ॥६१४ श्रानन्द राज नंदन सु सोम ।मारिया दखनि तिन किया हाम॥निय पुर सु नयर सुर लग्गि धोम ।आनन्द केोति अजमेर भाम ॥० ॥१५ ॥०
    ॥३१६ ॥॥सोलेश्वर जी की शूरता का संक्षेप वर्णन
    ॥कवित्त ।जिछि सोमेसर ।सूर जित्ते पुरसानी ॥जिहि सामेसर सूर ।चढिवि गु्जर धर भानी ।

    ( 1 . 11 ) बमन् . लेखहस्तः पुमान्माप्तो देव गुर्जरमण्डला ॥ आकएयेति प्रतीहारभारती भारतेश्वरः

    ( 1 . 14 ) पदैः . गूर्जरोपज्ञमाचरख्यौ घोरं गोरिपराभवम् ॥ मुखे प्रसादस्य संबादेन प्रिथैरल्पैः पदै

    : ( 0 . 13 ) स दूतो गूर्जराणामुपज्ञाथ ज्ञानं , प्रथमं गूर्जरैरेव कृतमित्यर्थः गोरीणां म्लेच्छानां पराभवं कथि

    ( 1 . 9 ) राहितरणरणकैः प्रेतनाथस्य याव ईर्गे गूर्जराणां नृतनुभिरसुरैर्नवलाख्ये निमग्रम् . पृथ्वीराज ( 1 . 10 ) स्य तावन्निखिलदिगभयारम्भसंरम्भसीमा भीमा भूभङ्गभङ्गी विरचनसमयं कार्मुकस्याचचक्षे ।

    ( 1 . 9 ) डारत्नं गूर्जरेन्द्रं तदीयं दौहित्रं प्राप्य रक्षन्छुमार पालस्सत्यार्थनामाभून् . कुमारोप्राप्तराज्यो रा ( 19 ) जपुनस्सोमेश्वरस्तस्य पाल नानाम सार्थकम् . कुमारपालस्तदीयो भ्रातृपुत्रः । । 11 . प्रथमस्सुध

    ( 1 . 14 ) मितीव यः . गुर्जरं मूलराजाख्यं कन्यादुर्गमीविशत् ॥ तपस्विना बराकेण तपोधने ( 1 . 15 ) न च स्वच्छं यशोंशुकमनेन त्यक्तमितीव मूलराजनामानं गुर्जरं कन्थाख्यं दुगै चीरं च

    16 ) त्वादिति भावः पृथिवीभृच्छब्दस्य श्लिष्टत्वादुक्तिसंगतिः ॥ अथ गूर्जरराजमर्जितानां मुकुटाल ( . 7 ) करण कुमारपातः . अधिगत्यं सुतासुतं तदीयं परिरक्षनभवयथार्थनामा

    गूर्जरेन्द्रो जयसिंहस्तस्मै यां दत्तवान्सा काञ्चनदेवी रात्रौ च दिने । सामं सोमेश्वरसंज्ञम

    ( 1 . 3 ) युरिति भावः । । . अवीचिभागो मरुभूमिनामा खण्डो द्युलोकस्य च गूर्जराख्यः . परी ( 14 ) क्षणायेव दिशि मत्तीच्या मेकीकृतौ पाशधरेण यौ द्वौ ॥ तयोर्द्वयोरप्युदिते नरेन्द्र ( 1 . 5 ) तं वव्रतुस्तुन्यगुणे महिप्यौ . रसातलस्वर्गभवे इब द्वे त्रिलोचनं चन्द्रकलात्रिसर्गे ॥ ८ . 6 ) मरुसंक्षितोवीचिनामा नरकैकदेशस्तथा गूर्जरनामा स्वर्गखण्ड इसि द्वौ खण्डौ प ( 1 . 7 ) विमदिशि बरुणेन परीक्षार्थमिव स्थापिती यौ तयोर्द्वयोमरु गूर्जरयोरुत्पन्ने समगु


    य गुर्जरं कर्ण तमश्वं प्राप्य मालवः . लब्ध्वानूरुस्सूर्यरथं करोति व्योमलधनम् ॥ ( 11 ) तमश्वं प्राप्य मालव : कर्णाख्यं गूर्जरमजयत् सूर्यरथं लब्वानूरुराका शलङ्घनं करो ति ॥ पृथ्वीराजस्मुतस्तस्मात्ततो - ~ - रभूत . कुमारब्रह्मचारी हि कुमारो मद

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  14. 11 वीं शताब्दी के कवि धनपाल जैन की तिलकमंजरी पुस्तक में भोज परमार गुर्जर राजवंश के प्रमाण


    वासिष्ठस्म कृतस्मयो वरशतैरस्त्यग्निकुण्डोद्भवो ।भूपालः परमार इत्यभिधया ख्यातो महीमण्डले ॥अद्याप्युद्गतहर्षगद्गदगिरो गायन्ति यस्यार्बुदे ।विश्वामित्रजयोज्झितस्य भुजयोर्विस्फूजितं गुर्जराः ॥३

    (हिंदी में अनुवाद)

    राजा भोज का वश पर वसिष्ठ की स्त्री अरुन्धती रोने लगी ।उसकी ऐसी अवस्था को देख मुनि को क्रोध चढ़ गया और उसने अथर्व मंत्र पढ़ कर आहुति के द्वारा अपने अग्निकुंड से एक वीर उत्पन्न किया ।वह वीर शत्रुओं का नाशकर वसिष्ठ की गाय को वापिस ले आया ।इससे प्रसन्न होकर मुनि ने उसका नाम परमार रखा और उसे एक छत्र देकर राजा बना दिया ।धनपाल ' नामक कवि ने वि० सं० १०७० ( ई० स० १०१३ ) के करीब राजा भोज की आज्ञा से तिलकमञ्जरी नामक गद्य काव्य लिखा था ।उसमें लिखा है : आबू पर्वत पर के गुर्जर लोग , वसिष्ठ के अग्निकुंड से उत्पन्न हुए और विश्वामित्र को जीतनेवाले , परमार नामक नरेश के प्रताप को अब तक भी स्मरण किया करते हैं ।गिरवर ( सिरोही राज्य ) के पाट नारायण के मन्दिर के वि० सं० १३४४ ( ई० सं० १९८७ ) के लेख में इस वंश के मूल पुरुष का नाम उत्पन्न होने के स्थान पर वसिष्ठ की नन्दिनी गाय के हुकार से पल्हव , शक , यवन , आदि म्लेच्छों काउत्पन्न होना लिखा है : तस्या हुंभारवोत्कृष्टाः पल्हवाः शतशो नृप ॥१८ ॥भूय एवासृजद्घोराच्छकाम्यवनमिश्रितान्

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  15. Hello ye Khatana भाड़ bhadana kha se aa gye. Goojar aur gurjar me farak hai. Ye jo list di hai khatna bhadana ye bhed bakri charane wale charvahe hain . गुर्जर प्रतिहार वंश राजपूतों से है ना कि भेड़ बकरी charane वाले kanjaro se

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    1. राजपूत गुर्जर प्रतिहार वंश से है..ये कोई लिस्ट नहीं है ये इतिहास है ...गुर्जर आए थे 6वी शताब्दी में और राजपूत आए थे 13वी शताब्दी में अगर थे तो पहले का उनका इतिहास कहां है...राजा के बेटे को अगर राजपूत कहा जाता है तो इस हिसाब से तो आगे जाकर शूद्रों ने भी राज किया था उनके बेटे भी राजपूत ....सिर्फ महाराणा सांगा के उल्लेख में वे राजपूत है उनका परिवार राजपूत है बेशक लेकिन प्रिथिवराज के संदर्भ में एक वीर गुर्जर शाशक थे

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    2. सिर्फ राजा के घर में पैदा हुआ राजा नहीं होता उसके लिए गुण और साहस भी होना चाहिए पन्नाधाय भी गुर्जरी थी ..जहां इतिहास में कहा था कि गुर्जरों ने राजपूत को जन्म दिया है...और जहां एक दूसरी तरफ जयपुर का भी राजा था आमेर का जिसने अकबर के सामने घुटने टेक दिए थे....वो उन चरवाहों से भी बुरे हुए इस हिसाब से

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    5. Bilkul right enke bap dada us time Kyo ni bole jb enki OBC me kiya or rajputo ko raj kese mila enko Kyo ni diya ye kuch ni ab banna thakur banege or jhaki marenge 🤣 or ye chutke ko bolo or smjhao ki raja ka put rajput khlata he jaise hanuman jiko pawan putr or anjaniput kha gya ye gawar dasiyo ke puto ko rajput bol raha he or unko raaj bhi dilwa rha he to ye kha the enko Kyo ni raaj diya 🤣🤣🤣 gandu khi ka khi khi se topic copy kr late he or udte firte he

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  16. भाई जी बहुत बहुत खुशी हुई आपको देखकर कि कोई भाई इतनी नॉलेज रखता है गुर्जरों के बारे में मतलब हद हो गई मैंने पहली बार पढ़ा है और देखा है हमारे ग्रुप है गुर्जरों का हम गाजियाबाद से है हमारे यहां तो काफी गांव में गुर्जरों के अपने पूरे क्षेत्र में दिल्ली एनसीआर में अपना पूरा मैटर है तो आप हमें जो है आपको जो हमसे जुड़ सकते हो तो बहुत-बहुत धन्यवाद यह मेरा नंबर है 999 000 0661 हमें आपसे मिलकर बात कर कर बहुत बहुत खुशी होगी भाई जी एक बार आप जुड़े तो हम शायद मतलब हम जुड़ेंगे आप से सॉरी तो अगर जो हम आप से जुड़ सकते हैं तो कृपया कर बताइए कैसे जुड़े आपसे कैसे आपसे बातचीत हो तो एक बार हम बैठ सकते हैं तो यहां से तो बहुत अच्छा होगा हमारे गुर्जर समाज के लिए हम गाजियाबाद से पार्षद है इंदिरापुरम से गवर्नमेंट में भी है हम कृपया कर आप हम से जुड़े बताइए हमें हम आपसे कैसे जुड़ सकते हैं बहुत-बहुत धन्यवाद चौधरी अनीश कसाना

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  17. Achha to ye khne ka mtlb he ki gurjro se rajput hua to rajputo ne kyo ni kbhi apne aapko gurjar kha or rhi bat gurjro ki 6 shatabdee ki to kha se aaye the bhai 6 shadabdi me batao jara rajput to gurjro se bata rhi ho to aap kha se aaye the or 13 shatabdi jo tumhare purwaj the unko Kyo ni rajgadi pr bithaya langde lule the kya 🤣🤣

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  18. Or bad me kon se shudra ne raaj kiya ye to batao itihaaskaar bhai jara hume

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