Gurjar Samrat - Mihirkul Hoon
Gurjar Samrat Mihirkul Hoon - गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण |
'सम्राट मिहिरकुल हूण' गुर्जर सम्राट तोरमाण हूण के वीर पुत्र थे। तोरमाण पेशावर के राजा थे व गुप्तो से उनका टकराव होता रहता था। आधुनिक अफगान व पाक उनके साम्राज्य का भाग था। ये चौथी सदी( 450 ई०) की बात है। हूणो ने अन्तत: गुप्त साम्राज्य को ध्वस्त करके मिहिरकुल हूण के नेतृत्व में पूरे उत्तर भारत में हूण साम्राज्य का निर्माण(450ई० से 550 ईo ) किया ।मिहिरकुल हूण का अवन्ति के राजा यशोधर्मा औलिकर व गुप्त सम्राट बालादित्य से भी युद्ध हुआ, इस युद्ध में मिहिरकुल हूण को पराजय का मुहँ देखना पडा मगर यशोधर्मा व बालादित्य की संयुक्त सेना भी हूण साम्राज्य को हिला न सकी क्योंकि हूण सेना उस सदी की सबसे लडाकू व वीर सेना थी जिसका प्रकोप कोई भी शासक सहन नहीं कर पाता था।
इल युद्ध के बाद सम्राट मिहिरकुल हूण ने कश्मीर में अपनी राजधानी बनायी व पंजाब, अफगान,कश्मीर, बलूचिस्तान,राजस्थान आदि भूभाग पर हूण साम्राज्य बनाये रखा। इन्हीं हूणो की एक शाखा लाटव सौराष्ट्र ( गुजरात) चली जाती है, जो उत्तरपथ के समुद्री मार्ग पर कब्जा जमाती है, यहीं शाखा चालुक्य( सोलंकी) कहलाती है। इन्हीं के काल में इनके द्वारा शासित भूभाग को गुर्जरत्रा,गुर्जरात्र, गुर्जराष्ट्र नाम से पुकारा जाने लगता है। इनकी उपाधियाँ भी गुर्जराधिराज, गुर्जरेश्वर, गुर्जर नरेश थी।
हूण वंश शैव भक्त था व शिव की आराधना करते थे। परंपरागत रूप से वे सूर्य व अग्नि यानी मिहिर व अतर के उपासक थे मिहिरकुल का संस्कृत में अर्थ भी सूर्यवंशी(सूर्यपुत्र) होता है। तब जैन,बौद्ध धर्मो का भी बोलबाला था, व शास्त्रार्थ की स्वस्थ परंपरा थी। बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सिरमौर था, गुप्तो का भी उसे संरक्षण प्राप्त खा।
गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण बौद्धो से किसी कारणवश रुष्ट हो जाता है और उसका परिणाम यह होता है कि वह बौद्घो का नाश करने लगता है, हजारो बौद्घ मठो को नष्ट कर देता है, बौद्घ संतो को प्रताडित करता है व हिन्दू धर्म को प्राणवान कर देता है।
हजारो शिवालयो का निर्माण कराया जाता है। हूणकालीन सिक्को पर जयतु वृष लिखा है जोकि शिवजी का वाहन माना जाता है ।समकालीन ग्रन्थ मिहिरकुल को महायौद्धा, कठोर शासक, बडे साम्राज्य का स्वामी व बर्बर लिखते हैं। मिहिरकुल की बर्बरता व अत्याचार जैनो व बौद्घो के विरुद्घ हुआ था।
इल युद्ध के बाद सम्राट मिहिरकुल हूण ने कश्मीर में अपनी राजधानी बनायी व पंजाब, अफगान,कश्मीर, बलूचिस्तान,राजस्थान आदि भूभाग पर हूण साम्राज्य बनाये रखा। इन्हीं हूणो की एक शाखा लाटव सौराष्ट्र ( गुजरात) चली जाती है, जो उत्तरपथ के समुद्री मार्ग पर कब्जा जमाती है, यहीं शाखा चालुक्य( सोलंकी) कहलाती है। इन्हीं के काल में इनके द्वारा शासित भूभाग को गुर्जरत्रा,गुर्जरात्र, गुर्जराष्ट्र नाम से पुकारा जाने लगता है। इनकी उपाधियाँ भी गुर्जराधिराज, गुर्जरेश्वर, गुर्जर नरेश थी।
हूण वंश शैव भक्त था व शिव की आराधना करते थे। परंपरागत रूप से वे सूर्य व अग्नि यानी मिहिर व अतर के उपासक थे मिहिरकुल का संस्कृत में अर्थ भी सूर्यवंशी(सूर्यपुत्र) होता है। तब जैन,बौद्ध धर्मो का भी बोलबाला था, व शास्त्रार्थ की स्वस्थ परंपरा थी। बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सिरमौर था, गुप्तो का भी उसे संरक्षण प्राप्त खा।
गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण बौद्धो से किसी कारणवश रुष्ट हो जाता है और उसका परिणाम यह होता है कि वह बौद्घो का नाश करने लगता है, हजारो बौद्घ मठो को नष्ट कर देता है, बौद्घ संतो को प्रताडित करता है व हिन्दू धर्म को प्राणवान कर देता है।
हजारो शिवालयो का निर्माण कराया जाता है। हूणकालीन सिक्को पर जयतु वृष लिखा है जोकि शिवजी का वाहन माना जाता है ।समकालीन ग्रन्थ मिहिरकुल को महायौद्धा, कठोर शासक, बडे साम्राज्य का स्वामी व बर्बर लिखते हैं। मिहिरकुल की बर्बरता व अत्याचार जैनो व बौद्घो के विरुद्घ हुआ था।
जैन ग्रन्थ व बौद्घ साहित्य उसे कल्कि अवतार भी मानते हैं ।
साहित्यकार व इतिहासकार मानते हैं कि हूणो विशेषत: सम्राट मिहिरकुल हूण का भारतीय संस्कृति पर व्यापक प्रभाव पडा व उसने हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित करने में महान भूमिका निभायी।
प्रत्येक शिव चौदस को गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण की जयन्ति मनायी जाती है ।
साहित्यकार व इतिहासकार मानते हैं कि हूणो विशेषत: सम्राट मिहिरकुल हूण का भारतीय संस्कृति पर व्यापक प्रभाव पडा व उसने हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित करने में महान भूमिका निभायी।
प्रत्येक शिव चौदस को गुर्जर सम्राट मिहिरकुल हूण की जयन्ति मनायी जाती है ।
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