नागभट्ट नाम के एक गुर्जर नवयुवक ने इस नये गुर्जर साम्राज्य की नींव रखी। संभव है कि ये भडौच के गुर्जर प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र ।
पूरे उत्तर भारत में छोटे छोटे राज्य थे जो किसी भी बाह्य आक्रमण को विफल करने में पंगु बने हुए थे।
भडौच के गुर्जर प्रतिहार, वल्लभी के गुर्जर मैत्रक, वातापी के गुर्जर चालुक्य, भीनमाल के चपराणे,चित्तौड के मोरी गुर्जर,अजमेर के चेची व फिर चौहान, भटनेर के भाटी, बयाना के भडाणा, दिल्ली के तंवर,जालौर के प्रतिहार, वेंगी के चालुक्य ये सब गुर्जरो की शाखाए केवल गुर्जरत्रा तक सीमित थी। इन सबमें केवल बादामी के चालुक्य साम्राज्य के स्वामी थे।
अरब से उठने वाली इस्लामिक लपटो ने बहुत सी संस्कृतियो व सभ्यताओ को निगल कर उन स्थानो को इस्लामिक रंग में रंग दिया था। यह सब ज्यादातर तलवार व भय के बल पर हो रहा था। जो काम इसाइयो ने सदियो पहले यूरोप में किया था वहीं काम एशिया में अरब के खलीफा कर रहे थे।
अरब ने ईरान की विश्वप्रसिद्ध सभ्यता का खात्मा करके नया ईरान गढ दिया था, वहाँ के कुछेक पारसियो ने पलायन करके भारत में शरणागत होकर अपनी बेहद प्राचीन संस्कृति को लुप्त होने से बचा लिया।
मिस्त्र की सभ्यता अब बदल गयी थी, तुर्की कबीले इस्लाम के नये सिपाहसलार थे, कुवैत,लीबिया पूरा का पूरा मध्य एशिया इस्लामिक संस्कृति में रंगता जा रहा था व अरब के खलीफा एक नये साम्राज्य के मालिक बन गये थे जो जिधर को रूख करता वहाँ की प्राचीन सभ्यता व विरासत को नष्ट करके नया रंगरूप दे देते।
बर्बरता,नरसंहार,बलात्कार,मारकाट,हाहाकार ये सब ही दिखाई देता था एशिया महाद्वीप में।
जो भी इस्लाम स्वीकारता वहीं एक नया युद्ध छेड देता किसी अन्य देश के खिलाफ जैसे कि तुर्की, मंगोल व अफगानिस्तान उदाहरण हैं।
खलीफाओ ने अरबी साम्राज्य को बेहद बडा व मजबूक बनाने के बाद आखिरकार भारत की ओर रूख किया। अरबी साम्राज्य बहुत ही बडा व संसाधनो से परिपूर्ण हो गया था। कई देश इसके अन्दर थे। अरबी सैनिको की वेशभूषा अस्त्र शस्त्रो से लैस थी वे हर प्रकार के हथियारो से शत्रु पर आक्रमण करते थे। लाखो की संख्या में सैनिक, बहुत से सैनिक दल, हजारो घुडसवार सब तरह की सैन्य शक्तियाँ अरबो के पास थी। यूरोप भी घुटने टेक रहा था तुर्की सैन्यदल के सामनेे। सब का लक्ष्य एक ही था।
भारत सदा से ही एक उत्सुकता का केन्द्र व पहेली की तरह रहा है जिसे हर कोई जानना समझना चाहता है।
अरबी यौद्धा किसी भी प्रकार से भारत को जीतना चाहते थे व बुतपरस्ती को खत्म करके इस्लामिक देश बनाना चाहते थे।
भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है जहाँ राजस्थान व गुजरात व दूर चलकर पंजाब है। गुजरात व राजस्थान को तब गुर्जरत्रा यानी गुर्जरदेश कहा जाता था जिसकी रक्षा का दायित्व वीर गुर्जरो पर था। ये इन्हीं की भूमि कही जाती थी।
अरबो की विशाल आँधी के सामने कुछ हजार वीर गुर्जर अपने रणनृत्य का प्रदर्शन करते हुए भिडे जिसे इतिहास राजस्थान के युद्ध जोकि गुर्जरो व अरबो के बीच हुए के नाम से जानता है। ये एक दो युद्ध नहीं बल्कि युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक वीर गुर्जरो व अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। जिसमें गुर्जरो ने अभूतपूर्व साहस व पराक्रम दिखाते हुए अरबो को बाहर खदेडा ।
भारत की हजारो साल से बनने वाली सभ्यता व संस्कृति को अरबो द्वारा होने वाली हानि से गुर्जरो ने बचाया व लगभग साढे तीन सौ सालो तर गुर्जर भारत के रक्षक व प्रहरी बने रहे ।
इन आरम्भिक युद्धो में वीर गुर्जरो का नेतृत्व गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रतिहार प्रथम ने किया । नागभट्ट के नेतृत्व में चित्तौड के मोरी गुर्जर, बादामी के चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य गुर्जर, चौहाण,भडाणा, मैत्रक सबने अरबो को बुरी तरह हर बार पराजित किया।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने अरबी आक्रमण से होने वाली उथल पुथल व अस्त व्यस्तता का अवसर उठाते हुए बहुत से राज्यो को अपने अधीन करके गुर्जर साम्राज्य की स्थापना की।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट ने उज्जैन को नयी राजधानी बनाया। नागभट्ट ने भारतीय संस्कृति व सभ्यता के लिये जो किया वह अतुलनीय है। इसीलिये इन्हें राष्ट्रनायक की उपाधि से विभूषित किया जाता है।
इसी समय गुर्जरो ने एक नये युद्धनृत्य की रचना की जिसे गुर्जर रणनृत्य कहा जाता है। गुर्जरो के संख्या बल में कम होने के कारण व शत्रुओ की विशाल सेना से भिडने से पूर्व यह नृत्य किया जाता था जिससे शत्रु को भ्रम होता था कि गुर्जर सेना बहुत अधिक है।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने के कारण ही गुर्जरों को वीर गुर्जर कहा जाता है!
अरबों को सफलकापूर्वक परास्त करने के कारण ही गुर्जरों को "राष्ट्र रक्षक वीर गुर्जर" कहा गया है!
बाद में गुर्जर प्रतिहार वंश में कई बेहद प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए जैसे कि गुर्जर सम्राट वत्सराज, गुर्जर सम्राट नागभट्ट द्वितीय, आदिवराह गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान, गुर्जर सम्राट महेन्द्रपाल, गुर्जर सम्राट महिपाल प्रथम आदि।
गुर्जर सम्राट नागभट्ट का नाम सदा भारतीय संस्कृति संरक्षण के लिये याद किया जाता रहा रहेगा।
** गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य| **
राजवंश - गुर्जर प्रतिहार वंश
वंश - सूर्यवंशी गुर्जर।
यूँ तो गुर्जर प्रतिहारो की उत्पत्ति पर कई सारे मत है,किन्तु उनमे से अधिकतर कपोल कल्पनाओं के अलावा कुछ नहीं है। प्राचीन साहित्यों में प्रतिहार का अर्थ "द्वारपाल" मिलता है। अर्थात यह वंश विश्व के मुकुटमणि भारत के पश्चिमी द्वारा अथवा सीमा पर शासन करने के चलते ही प्रतिहार कहलाया।
अब गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के बारे में जो भ्रांतियाँ है उनका निराकारण करते है। एक मान्यता यह है की ये वंश अबू पर्वत पर हुए यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुआ है,जो सरासर कपोल कल्पना है। हो सकता है अबू पर हुए यज्ञ में इस वंश की हाजिरी के कारण इस वंश के साथ साथ अग्निवंश की कथा रूढ़ हो गई हो। खैर अग्निवंश की मान्यता कल्पना के अलावा कुछ नहीं हो सकती और ऐसी कल्पित मान्यताये इतिहास में महत्त्व नहीं रखती।
अधिकांश इतिहासकार,अग्निवंश के कुलो को गुर्जर मूल का होना स्वीकारते हैं ,यह प्रमाणित हो चुका है। इस वंश की उत्पत्ति के संबंध में प्राचीन साहित्य,ग्रन्थ और शिलालेख आदि क्या कहते है इस पर भी प्रकाश डालते है।
१)सोमदेव सूरी ने सन ९५९ में यशस्तिलक चम्पू में गुर्जरत्रा का वर्णन किया है। वह लिखता है कि न केवल प्रतिहार बल्कि चावड़ा,चालुक्य,आदि गुर्जर वंश भी इस भूमि की रक्षा करते रहे व गुर्जरत्रा को एक वैभवशाली देश बनाये रखा।
२) विद्व शाल मंजिका,सर्ग १,श्लोक ६ में राजशेखर ने कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज महान के पुत्र महेंद्रपाल को रघुकुल तिलक अर्थात सूर्यवंशी गुर्जर बताया है।
३)कुमारपाल प्रबंध के पृष्ठ १११ पर भी गुर्जर देशदेश( गुर्जरत्रा) का वर्णन है...
कर्णाटे,गुर्जरे लाटे सौराष्ट्रे कच्छ सैन्धवे।
उच्चाया चैव चमेयां मारवे मालवे तथा।।
४) महाराज कक्कुक का घटियाला शिलालेख भी इसे सूर्यवंशी वंश प्रमाणित करता है....अर्थात रघुवंशी गुर्जर
रहुतिलओ पड़ीहारो आसी सिरि लक्खणोत्रि रामस्य।
तेण पडिहार वन्सो समुणई एत्थ सम्प्तो।।
५) बाउक प्रतिहार के जोधपुर लेख से भी इनका रघुवंशी होना प्रमाणित होता है।(९ वी शताब्दी)
स्वभ्राता राम भद्रस्य प्रतिहार्य कृतं सतः।
श्री प्रतिहारवड शोयमत श्रोन्नतिमाप्युयात।
इस शिलालेख के अनुसार इस वंश का शासनकाल गुजरात में प्रकाश में आया था।
६) चीनी यात्री हुएन्त त्सांग ने गुर्जर राज्य की राजधानी पीलोमोलो,भीनमाल या बाड़मेर कहा है।है। वहाँ का तत्कालीन गुर्जर राजा व्याघ्रमुख चपराणा था।
७) गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान की ग्वालियर प्रशस्ति
मन्विक्षा कुक्कुस्थ(त्स्थ) मूल पृथवः क्ष्मापल कल्पद्रुमाः।
तेषां वंशे सुजन्मा क्रमनिहतपदे धाम्नि वज्रैशु घोरं,
राम: पौलस्त्य हिन्श्रं क्षतविहित समित्कर्म्म चक्रें पलाशे:।
श्लाध्यास्त्स्यानुजो सौ मधवमदमुषो मेघनादस्य संख्ये,
सौमित्रिस्तिव्रदंड: प्रतिहरण विर्धर्य: प्रतिहार आसी।
तवुन्शे प्रतिहार केतन भृति त्रैलौक्य रक्षा स्पदे
देवो नागभट: पुरातन मुने मुर्तिर्ब्बमूवाभदुतम।
अर्थात - सूर्यवंश में मनु,इश्वाकू,कक्कुस्थ आदि राजा हुए,उनके वंश में पौलस्त्य(रावण) को मारने वाले राम हुए,जिनका प्रतिहार उनका छोटा भाई सौमित्र(सुमित्रा नंदन लक्ष्मण) था,उसके वंश में नागभट्ट हुआ। इसी प्रशस्ति के सातवे श्लोक में वत्सराज के लिए लिखा है क़ि उस क्षत्रिय पुंगव(विद्वान्) ने बलपूर्वक भड़ीकुल का साम्राज्य छिनकर इश्वाकू कुल की उन्नति की।
८) देवो यस्य महेन्द्रपालनृपति: शिष्यों रघुग्रामणी:(बालभारत,१/११)
तेन(महिपालदेवेन)च रघुवंश मुक्तामणिना(बालभारत)
बालभारत में भी महिपालदेव को रघुवंशी कहा है।
९)ओसिया के महावीर मंदिर का लेख जो विक्रम संवत १०१३(ईस्वी ९५६) का है तथा संस्कृत और देवनागरी लिपि में है,उसमे उल्लेख किया गया है कि-
तस्या कार्षात्कल प्रेम्णालक्ष्मण: प्रतिहारताम ततो अभवत प्रतिहार वंशो राम समुव:।।६।।
तदुंदभशे सबशी वशीकृत रिपु: श्री वत्स राजोडsभवत।
अर्थात लक्ष्मण ने प्रेमपूर्वक उनके प्रतिहारी का कार्य किया,अनन्तर श्री राम से प्रतिहार वंश की उत्पत्ति हुई। उस प्रतिहार वंश में वत्सराज हुआ।
१०) गौडेंद्रवंगपतिनिर्ज्जयदुर्व्विदग्धसदगुर्ज्जरेश्वरदिगर्ग्गलतां च यस्य।
नीत्वा भुजं विहतमालवरक्षणार्त्थ स्वामी तथान्यमपि राज्यछ(फ) लानि भुंक्ते।।
-बडोदे का दानपत्र,Indian Antiquary।
११)ब्राह्मण उत्पत्ति के विषय में इस वंश के साथ द्विज,विप्र यह दो संज्ञाए प्रयुक्त की गई है,तो द्विज का अर्थ ब्राह्मण न होकर द्विजातिय(जनेउ) संस्कार से है न की ब्राह्मण से। ठीक इसी तरह विप्र का अर्थ भी विद्वान पंडित अर्थात "जिसने विद्वत्ता में पांडित्य हासिल किया है।
१२) कन्नड के महाकवि पम्प ने गुर्जर सम्राट महिपालदेव को दहाडता हुआ गुर्जर लिखा है पम्प महाभारत में।
१३) राष्ट्रकूट राजा अपने शिलालेखो में उन्हें गुर्जर राजा व गुर्जर वंश की ही लिखते हैं।
१४) अरब लेखक गुर्जरो को इस्लाम का सबसे बडा दुश्मन लिखते हैं । गुर्जर को अलजूजर लिखा है।
वराह को बौरा लिखते हैं।
१५) प्रतिहारो को हूण राजवंश के विघटन से जन्मा राजवंश माना जाता है। हूणो का दूसरा नाम मिहिर था व कुषाणो के देवो का नाम भी मिहिर ही था। सम्राट भोज महान मिहिर की उपाधि धारण करते हैं।
आज भी अजमेर के गुर्जर मिहिर पुकारे जाते हैं। मिहिर का मतलब है सूर्यदेव यानी सूर्यवंशी।सूर्यवंशी।
१६) राजौर से मिला शिलालेख भी उनके गुर्जर वंश के होने की पुष्टि करता है। गुर्जर प्रतिहार राजवंश लिखता है।
कन्नौज के आस पास गुर्जर प्रतिहार से ताल्लुक रखने वाले कुछ गाँव हैं जो खुद को गुर्जर राजाओ का ही वंशज मानते हैं। मगर अब वे राजपूत कहलाते हैं, इस तथ्य से भी यह पक्का हो जाता है कि राजपूतो के पूर्वज गुर्जर ही हैं व गुर्जर राजवंशो के अन्य जातियो से वैवाहिक व राजनैतिक सम्बन्धो का परिणाम ही एक नयी जाति बनकर निकला जो राजपूत कहलाये।
राजपूत गूजरी भाषा का शब्द है जिसका मतलब गुर्जरो के गैर गूजरियो से पैदा हुई सन्तान।
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गुर्जर प्रतिहार वंश
संस्थापक-गुर्जर राजा हरिशचंद्र
वास्तविक - नागभट प्रथम
राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेष में प्रतिहार वंश की स्थापना हुई। इनकी उत्पति लक्ष्मण से हुई है। लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंश प्रतिहार वंष कहलाया। नगभट्ट प्रथम पश्चिम से होने वाले अरब आक्रमणों को विफल किया। नागभट्ट प्रथम के बाद वत्सराज शासक बना। वह प्रतिहार वंश का प्रथम शासक था जिसने त्रिपक्षीप संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष/त्रिराष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया।
त्रिपक्षीय संघर्ष:- 8 वीं से 10 वीं सदी के मध्य लगभग 200 वर्षो तक पष्चिम के प्रतिहार पूर्व के पाल और दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट वंश ने कन्नौज की प्राप्ति के लिए जो संघर्ष किया उसे ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा जाता है।
गुर्जर सम्राट नागभट द्वितीय:- वत्सराज के पश्चात् शक्तिशाली शासक हुआ उसने भी अरबों को पराजित किया किन्तु कालान्तर में उसने गंगा में डूब कर आत्महत्या कर ली।
गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान - इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक इसने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर कन्नौज पर अपना अधिकार किया और प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया। मिहिरभोज की उपलब्धियों की जानकारी उसके ग्वालियर लेख से प्राप्त होती है।
(1) - आदिवराह की उपाधी धारण की।
(2) -आदिवराह नामक सोने चांदी के सिक्के जारी किये।
(3) - गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महानके पश्चात् महेन्द्रपाल शासक बना।
• गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक :
1. नागभट्ट प्रथम 730 से 760 ई० तक
2. देवराज गुर्जर 760 से 775 ई० तक
3. वत्सराज वीर गुर्जर 775 से 810 ई० तक
4. नाग भट्ट द्वित्तीय 810 से 833 ई० तक
5. रामभद वीर गुर्जर 833 से 836 ई० तक
6. मिहिर भोज 836 से 885 ई० तक
7. महेंदर पाल गुर्जर 885 से 910 तक
8. महिपाल गुर्जर 912 से 944 तक
9. महेंदर पाल द्वितीय 944 से 984 तक
10. देव पाल गुर्जर 984 से 990 तक
11. विजयपाल गुर्जर 990 से 1005 तक
12. राज्यपाल गुर्जर 1005 से 1018 तक
11. त्रलोचन पाल गुर्जर 1018 से 1025 तक
12. यशपाल गुर्जर 1025 से 1036 तक
8वीं से 10वीं शताब्दी में उत्तर भारत में प्रसिद्ध गुर्जर क्षत्रिय वंश प्रतिहार था। राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों का मुख्य केन्द्र मारवाड़ था। पृथ्वीराज रासौ के अनुसार प्रतिहारों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से हुई है।
प्रतिहार का अर्थ है द्वारपाल प्रतिहार स्वयं को लक्ष्मण वंषीय सूर्यवंशी या रधुकुलवंशी मानते है। प्रतिहारों की मंदिर व स्थापत्य कला निर्माण शैली गुर्जरशैली या महामारू गुर्जर शैली कहलाती है। गुर्जर प्रतिहारों ने अरब आक्रमण कारीयों से भारत की रक्षा की अतः इन्हें "द्वारपाल"भी कहा जाता है।
गुर्जरात्रा की राजधानी भीनमाल (जालौर) थी। मुहणौत नैणसी के अनुसार प्रतिहारों की कुल 26 शाखाएं थी। जिसमें से मण्डोर व भीनमाल शाखा सबसे प्राचीन थी।
मण्डौर शाखा का संस्थापक - हरिशचंद्र था। गुर्जर प्रतिहारों की प्रारम्भिक राजधानी -मण्डौर है
1. गुर्जर सम्राट नागभट प्रथम :- नागभट प्रथम ने 730 ई. में अवन्ति व उज्जैन में प्रतिहार वंश की स्थापना की तथा भीनमाल को प्रतिहारों की राजधानी बनाया।
2.गुर्जर सम्राट वत्सराज :- वत्सराज भीनमाल प्रतिहार वंष का वास्तिवक संस्थापक था। वत्सराज को रणहस्तिन की उपाधि प्राप्त थी। वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया। औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसके समय उद्योतन सूरी ने "कुवलयमाला" की रचना 778 में जालौर में की। औसियां के मंदिर गुर्जर मरू शैली में बने है। औसियां का हरिहर मंदिर मरू गुर्जरशैली में बना है।
- औसियां राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था।
- औसिंया (जोधपुर)के मंदिर गुर्जर कालीन है।
- औसियां को राजस्थान को भुवनेष्वर कहा जाता है।
- औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
- जिनसेन ने "हरिवंश पुराण " की रचना की।
वत्सराज ने त्रिपक्षिय संर्घष की शुरूआत की तथा वत्सराज राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से पराजित हुआ।
त्रिपक्षिय/त्रिराष्ट्रीय संर्घष
कन्नौज को लेकर उत्तर भारत के गुर्जर, पूर्व में बंगाल का पाल वंश तथा दक्षिणी भारत का राष्ट्रकूट वंश के बीच 100 वर्षो तक के चले संघर्ष को त्रिपक्षिय संघर्ष कहा जाता है।
3.गुर्जर सम्राट नागभट द्वितीय :- सम्राट वत्सराज व गुर्जराणी सुन्दरी देवी का पुत्र। नागभट द्वितीय ने अरब आक्रमणकारियों पर पूर्णतयः रोक लगाई। नागभट्ट द्वितीय ने गंगा समाधि ली। नागभट द्वितीय ने त्रिपक्षिय संघर्ष में कन्नौज को जीतकर सर्वप्रथम गुर्जरो की राजधानी बनाया।
4.चक्रवर्ती गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान (836-885 ई.):- मिहिर भोज को आदिवराह व प्रभास की उपाधि प्राप्त थी। मिहिरभोज वैष्णों धर्म का अनुयायी था। मिहिरभोज प्रतिहारों का सबसे अधिक शक्तिषाली राजा था। इस काल चर्माेत्कर्ष का काल था। मिहिर भोज ने सोने चांदी के द्रुम सिक्के चलवाये। मिहिरभोज को भोज प्रथम भी कहा जाता है। ग्वालियर प्रशक्ति मिहिरभोज के समय लिखी गई। 851 ई. में अरब यात्री सुलेमान ने मिहिरभोज के समय भारत यात्रा की। अरबीयात्री सुलेमान व कल्वण ने अपनी राजतरंगिणी (कष्मीर का इतिहास) में मिहिरभोज के प्रशासन की प्रसंशा की। सुलेमान ने भोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है।
5.गुर्जर सम्राट महेन्द्रपालदेव प्रथम :- इसका गुरू व आश्रित कवि राजशेखर था। राजशेखर ने कर्पुर मंजरी, काव्य मिमांसा, प्रबंध कोष हरविलास व बाल रामायण की रचना की। राजशेखर ने महेन्द्रपाल प्रथम को निर्भय नरेष कहा है।
6. गुर्जर सम्राट महिपालदेव प्रथम :- राजशेखर महिपाल प्रथम के दरबार में भी रहा। 915 ई. में अरब यात्री अली मसुदी ने गुर्जर व राजा को बोरा कहा है।
7. गुर्जर सम्राट राज्यपाल प्रतिहार :- 1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।
8.गुर्जर सम्राट यशपाल प्रतिहार :- 1036 ई. में गुर्जर प्रतिहारों का अन्तिम राजा यशपाल था। इसके बाद प्रतिहार गुर्जर स्वतंत्र हो गये और छोटे छोटे राज्यों में सिमट गये। कालान्तर में कुछ खुद को मुस्लिम शासको के डर के कारण राजपूत कहलाने लगे।
भीनमाल :- हेनसांग/युवाचांग न राजस्थान में भीनमाल व बैराठ की यात्रा की तथा अपने ग्रन्थ सियू की मे भीनमाल को पीलोमोलो कहा है। गुर्जर देश के चप वंशीय गुर्जर राजा व्याघ्रमुख चपराणा के समय का प्रसिद्व गणितज्ञ व खगोलज्ञ ब्रहमागुप्त भीनमाल का रहने वाला था जिससे ब्रहमाण्ड की उत्पत्ति का सिद्धान्त " ब्रहमास्फुट सिद्धान्त )का प्रतिपादन किया।