Nagabhata II |
• उत्तराधिकार = 3rd गुर्जर प्रतिहार शासक
• राज = 810 - 833 ई०
• पूर्वज = गुर्जर सम्राट वत्सराज प्रतिहार
• वारिस = गुर्जर सम्राट रामभद्र प्रतिहार
• वंश = गुर्जर प्रतिहार राजवंश
नागभट्ट द्वितीय (795 से 833 ई.), वत्सराज का पुत्र एवं उसका उत्तराधिकारी था।
वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. के लगभग गंगा की घाटी पर हमला किया, और कन्नौज पर अधिकार कर लिया। वहाँ के राजा को गद्दी से उतार दिया और वह अपनी राजधानी कन्नौज ले आया।
उसने गुर्जर प्रतिहार वंश की प्रतिष्ठा को बहुत आगे बढ़ाया।
ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने कन्नौज से चक्रायुध को भगाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
नागभट्ट द्वितीय ने सम्राट की हैसियत से 'परभट्टारक', 'महाराजाधिराज' तथा 'परमेश्वर' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।मुंगेर के नजदीक उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया था, परन्तु उसे राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय से हार खानी पड़ी।
ग्वालियर अभिलेखों में नागभट्ट द्वितीय को 'तुरुष्क', 'किरात', 'मत्स्य', 'वत्स' का विजेता कहा गया है।
चन्द्रप्रभास कृत 'प्रभावकचरित' से जानकारी मिलती है कि, नागभट्ट द्वितीय ने पवित्र गंगा नदी में जल समाधि के द्वारा अपना प्राण त्याग किया।
नागभट्ट द्वितीय के बाद कुछ समय (833 से 836 ई.) के लिए उसका पुत्र रामभद्र गद्दी पर बैठा।
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ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने कन्नौज से चक्रायुध को भगाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
नागभट्ट द्वितीय ने सम्राट की हैसियत से 'परभट्टारक', 'महाराजाधिराज' तथा 'परमेश्वर' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।मुंगेर के नजदीक उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया था, परन्तु उसे राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय से हार खानी पड़ी।
ग्वालियर अभिलेखों में नागभट्ट द्वितीय को 'तुरुष्क', 'किरात', 'मत्स्य', 'वत्स' का विजेता कहा गया है।
चन्द्रप्रभास कृत 'प्रभावकचरित' से जानकारी मिलती है कि, नागभट्ट द्वितीय ने पवित्र गंगा नदी में जल समाधि के द्वारा अपना प्राण त्याग किया।
नागभट्ट द्वितीय के बाद कुछ समय (833 से 836 ई.) के लिए उसका पुत्र रामभद्र गद्दी पर बैठा।
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उसने गुर्जर प्रतिहार वंश की प्रतिष्ठा को बहुत आगे बढ़ाया।
ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने कन्नौज से चक्रायुध को भगाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
नागभट्ट द्वितीय ने सम्राट की हैसियत से 'परभट्टारक', 'महाराजाधिराज' तथा 'परमेश्वर' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।मुंगेर के नजदीक उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया था, परन्तु उसे राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय से हार खानी पड़ी।
ग्वालियर अभिलेखों में नागभट्ट द्वितीय को 'तुरुष्क', 'किरात', 'मत्स्य', 'वत्स' का विजेता कहा गया है।
चन्द्रप्रभास कृत 'प्रभावकचरित' से जानकारी मिलती है कि, नागभट्ट द्वितीय ने पवित्र गंगा नदी में जल समाधि के द्वारा अपना प्राण त्याग किया।
नागभट्ट द्वितीय के बाद कुछ समय (833 से 836 ई.) के लिए उसका पुत्र रामभद्र गद्दी पर बैठा।
ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उसने कन्नौज से चक्रायुध को भगाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
नागभट्ट द्वितीय ने सम्राट की हैसियत से 'परभट्टारक', 'महाराजाधिराज' तथा 'परमेश्वर' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।मुंगेर के नजदीक उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया था, परन्तु उसे राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय से हार खानी पड़ी।
ग्वालियर अभिलेखों में नागभट्ट द्वितीय को 'तुरुष्क', 'किरात', 'मत्स्य', 'वत्स' का विजेता कहा गया है।
चन्द्रप्रभास कृत 'प्रभावकचरित' से जानकारी मिलती है कि, नागभट्ट द्वितीय ने पवित्र गंगा नदी में जल समाधि के द्वारा अपना प्राण त्याग किया।
नागभट्ट द्वितीय के बाद कुछ समय (833 से 836 ई.) के लिए उसका पुत्र रामभद्र गद्दी पर बैठा।
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