मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

भारत को सोने की चिडिया की संज्ञा गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज के शासनकाल मे मिली थी | Bharat (Ancient India) was first adressed as Golden Bird in reign of Gurjar Pratihar King Mihir Bhoj

भारत को सोने की चिडिया की संज्ञा गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज के शासनकाल मे मिली थी

Bharat (Ancient India) was first adressed as Golden Bird in reign of Gurjar Pratihar King Mihir Bhoj
सौने की चिडिया | Golden Bird

गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णू के अवतार के तौर पर जाना जाता है।इनके पूर्वज गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रथम ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और गुर्जर साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।
मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की दूनिया कि सर्वश्रेष्ठ सेना थी । इनके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यइनके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी
भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में इन्हे गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे गुर्जर सम्राट भोज, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है।
विश्व की सुगठित और विशालतम सेना भोज की थी-इसमें 8,00,000 से  ज्यादा पैदल करीब 90,000 घुडसवार,, हजारों हाथी और हजारों रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिर भोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।

गुर्जर प्रतिहारोने अरबों से 300 वर्ष तक लगभग 200 से ज्यादा युद्ध किये जिसका परिणाम है कि हम आज यहां सुरक्षित है। यहां अनेको गुर्जर राजवंशो ने समयानुसार शासन किया और अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्य चकित किया। भारत देश हमेशा ही गुर्जर प्रतिहारो का रिणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के लिए न्यौछावर किया है। जिसे सभी विद्वानों ने भी माना है कि गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य ने दस्युओं, डकैतों, इराकी,मंगोलो , तुर्कों अरबों से देश को बचाए रखा और
देश की स्वतंत्रता पर आँच नहीं आई।

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बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

जुनबिल हूण ( गुर्जर की खाप श्वेत हूण की एक शाखा ) | Zunbil Hun (Branch of White Hun Gurjars)

जुनबिल हूण ( गुर्जर की खाप श्वेत हूण की एक शाखा )

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जुनबिल हूणो ने लगभग ढाई सौ सालो तक हिन्दुकुश पर्वत के उत्तर में राज किया। ये भाग आजका अफगानिस्तान का बडा भूभाग है।
इन्हें जुन्बिल क्यों कहा जाता था ? गुर्जर हूणो की यह शाखा एक जून देवता की पूजा करती थी यह जून देव सूर्यदेव यानी मिहिर का दूसरा रूप है। जून भगवान की पूजा करने के कारण ही ये जुन्बिल कहलाये।
तत्कालीन जुन्बिल साम्राज्य में जून का एक बेहद सुन्दर व बडा मन्दिर भी था जिसे बाद में अरब आक्रमणकारियो ने तोड दिया था। यह हूणो की वह शाखा थी जो जाबुलिस्तान में थी व इनकी एक शाखा ने गुर्जरदेश में जाबुलपुर यानी जालौर बसाया। 610 ई० से 710 ई० तक जुन्बिलो व अरब आक्रमणकारियो के बीच युद्ध चले । जुन्बिलो ने कई भीषण युद्धो में हराकर अरबो को भगाया मगर ईस्लामिक साम्राज्य की बढती ताकत धार्मिक उन्माद से हर बार आ रही थी ।

जुनबिल हूणो को आज इतिहास में भुला दिया गया है जो कि गुर्जरो के पराक्रम को कम करने का कुत्सित प्रयास है।
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